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इजरायल और ईरान को रोकें वैश्विक ताकतें, बारूद के ढेर पर बैठे पश्चिम एशिया में शांति अत्यंत महत्वपूर्ण

हिंसक संघर्षों और सांप्रदायिक तनावों के लिए कुख्यात क्षेत्र पश्चिम एशिया एक बार फिर उबाल पर है . हालिया घटना में 13 अप्रैल को इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इजराइल पर सैकड़ों ड्रोन और मिसाइलें दागी. दरअसल यह हमला 1 अप्रैल को  सीरिया के दमिश्क में उसके वाणिज्य दूतावास पर इजरायली हवाई हमले के प्रतिशोध में था जिसमें उसके शीर्ष सैन्य अधिकारियों सहित कई ईरानी मारे गए थे. इज़राइल पर "ऑपरेशन ट्रुथफुल प्रॉमिस" नाम के इस अभूतपूर्व हमले में ईरान ने लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात की थी, जो लगभग 2,000 किलोमीटर की दूरी तय करने में सक्षम थीं. इस हमले ने ईरान की रणनीति में बदलाव को भी चिह्नित किया है क्योंकि अतीत में वह इजराइल के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पश्चिम एशिया के उग्रवादी इस्लामी समूहों, जैसे की हिजबुल्लाह, हौती और हमास द्वारा इजराइल के साथ छद्म युद्ध करने पर बहुत अधिक निर्भर था.

पहले से बिगड़े थे हालात

देखा जाए तो यह क्षेत्र पहले से ही युद्ध के रूप में एक बड़ी तबाही के मुहाने पर था  जब 7 अक्टूबर 2023 को इज़राइल पर इस्लामी फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने आतंकवादी हमला कर दिया था, जिसमें लगभग 1200 इज़राइली मारे गए थे. हमास द्वारा इस हमले में बंधक बनाए गए इज़रायली नागरिकों को मुक्त कराने के और 'हमास आतंकवादियों का पूर्ण रूप से सफाया' करने लिए इज़रायली सेना ने गाजा में ज़मीनी आक्रमण शुरू कर दिया था. तब से युद्ध जारी है और अब तक हजारों फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और कई अपने घरों से बेघर हो कर शरणार्थी कैम्पों में रहने को मजबूर हो चुके हैं. कई देशों के दबाव के बावजूद इजराइल ने युद्धविराम से इनकार कर दिया है. इससे पश्चिम एशिया में मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं. ईरान द्वारा किया गया हालिया मिसाइल हमला पश्चिम एशियाई राज्यों के बीच संघर्ष में एक नए अध्याय का प्रतीक है.

ईरान द्वारा इज़राइल पर रातोंरात लॉन्च किए गए लगभग सभी 300 ड्रोन और मिसाइलों को उसकी मिसाइल-रोधी रक्षा प्रणाली द्वारा मार गिराया गया, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन का भी समर्थन प्राप्त है. ईरानी मिसाइलों को गिराने में सऊदी और जॉर्डन के समर्थन की खबरें भी सामने आई हैं. वैसे तो इज़राइल पर हमला करके ईरान सार्वजनिक रूप से जवाबी कार्रवाई करने और इस्राइली सैन्य कार्रवाई को और अधिक भड़काने से बचने के बीच संतुलन बनाने में कामयाब रहा है, परन्तु यह नीति कब तक कारगर रहेगी, इसे लेकर संशय बना हुआ है. इस हमले ने दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि ईरान भविष्य में इज़राइल के साथ अपने छद्म युद्ध को बढ़ाने के लिए अपनी सीमाएं लाँघ सकता है.

इजरायल का जवाबी हमला

इस लेख के लिखे जाने तक, इज़राइल कैबिनेट अभी भी इस बात पर बहस कर रही थी कि ईरान द्वारा उस पर किए गए पहले हमले के खिलाफ कैसे प्रतिक्रिया दी जाए, लेकिन अनाधिकारिक रूप से खबरे आ रही हैं कि इजराइल ने ईरान के हमले के जवाब में ईरान के इस्फ़हान प्रांत में मौजूद हवाई अड्डे पर हमला कर दिया है.  बता दें कि अमेरिका पहले ही ईरान पर पलटवार करने के लिए इजरायल के साथ शामिल होने से इनकार कर चुका है. राष्ट्रपति बिडेन इजरायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को स्पष्ट संदेश चुके हैं कि चूंकि ईरान के हमले को विफल कर दिया गया है, इसलिए इजरायल की जीत हुई है और इसलिए उसे ईरानी धरती पर सैन्य हमलों का जवाब देकर इसे और अधिक नहीं बढ़ाना चाहिए. इस बीच G7 देशों के नेताओं ने इजरायल के प्रति अपना समर्थन जताया है और हमले के लिए ईरान की निंदा की है, लेकिन साथ ही इजरायल से जवाबी कार्रवाई न करने का आग्रह भी किया है.

विश्लेषकों का तर्क है कि ईरान का हमला इज़राइल के लिए पश्चिमी समर्थन हासिल करने और ईरान विरोधी गठबंधन को मजबूत करने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा, अगर भविष्य में ऐसा कोई गठबंधन बनता है तो. अभी तक तो ऐसा लग रहा था की इजराइल तुरंत जवाबी कार्यवाही नहीं करेगा.  इसके बजाय इज़राइल ईरान के राजनयिक और सुरक्षा प्रतिष्ठान में प्रमुख हस्तियों की लक्षित हत्याओं के विकल्प को चुनेगा. परन्तु हालात तेज़ी से बदल रहे हैं और आगे क्या होने वाला है इसको लेकर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी.

भारत के लिए पश्चिम एशियाई चुनौती

भारत के लिए इस हमले की खबर बिल्कुल भी अच्छी नहीं है. ऐतिहासिक रूप से भारत के अरब जगत के साथ-साथ ईरान के साथ भी मधुर संबंध रहे हैं. शीत युद्ध के बाद भारत ने इज़राइल के साथ भी सुसंगत संबंध विकसित किए हैं जो पीएम मोदी के दस वर्ष के कार्यकाल में और अधिक मज़बूत हो गए हैं. मोदी के नेतृत्व में भारत इस क्षेत्र के तीनों परस्पर विरोधी ब्लॉकों- सुन्नी अरब दुनिया, शिया ईरान और यहूदी राज्य इज़राइल के साथ मधुर संबंध बनाए रखने में सफल रहा है. अगर इज़राइल इस हमले के बाद कोई बड़ी जवाबी कार्रवाई करने का फैसला करता है, तो इज़राइल और ईरान के बीच तनाव बढ़ने के साथ भारत के लिए अपने रणनीतिक संतुलन के इस बेहतरीन कार्य को जारी रखने में बहुत कठिनाई होगी. पश्चिम एशिया न केवल उन लाखों भारतीय प्रवासियों का घर है जो अरबों डॉलर अपनी मातृभूमि को वापस भेजते हैं, बल्कि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहलू है.

इजराइल की जवाबी कार्रवाई की स्थिति में भारत की समुद्री सुरक्षा से भी समझौता हो जाएगा. इजराइल के गाजा युद्ध के विरुद्ध दुनिया को संदेश देने के लिए ईरान द्वारा समर्थित यमन के हौती विद्रोही लाल सागर में पहले ही समुद्री व्यापार में व्यवधान पैदा कर चुके हैं, जिससे भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है. इसलिए, भारत चाहेगा कि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो जाए. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले ही दोनों देशों के विदेश मंत्रियों से बात कर चुके हैं और विवाद के निपटारे के लिए सैन्य की बजाय कूटनीतिक समाधान को मौका देने की बात कह चुके हैं.

ईरानी हमलों की सफलता

यह हमला सफल हुआ या नहीं, इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं है. एक ओर जहाँ ईरानियों का तर्क यह है कि कमजोर वायुसेना के बावजूद उसने इज़राइल पर हमला कर के अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर दिया है, तो वहीँ दूसरी ओर इज़राइलियों ने लगभग 99% मिसाइलों का अवरोधन करने जिसमे उसे तथाकथित रूप से जॉर्डन और सऊदी अरब का साथ मिला को अपने जीत को जीत के रूप में दर्शाया है. ईरान के अंदर एक बड़े इज़रायली हमले की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि अतीत में इज़रायल ने बार-बार साइबर हमलों और उसके वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और वैज्ञानिकों की हत्या के साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रहार किया है. जहां तक अरब जगत की बात है, उसे यह डर है कि इजरायल और ईरान की सैन्य शक्ति के प्रदर्शन के कारण पहले से ही क्षतिग्रस्त क्षेत्र पर एक और क्षेत्रीय युद्ध का क्या असर हो सकता है. और अगर ऐसा हुआ तो इसके क्षेत्रीय के अलावा विश्वव्यापी प्रभाव भी होंगे. ईरान और इज़राइल के बीच क्षेत्रीय संघर्ष न केवल खाड़ी देशों बल्कि अमेरिका, रूस और चीन को इसमें शामिल होने उपरांत इसके वैश्विक टकराव में बदलने की क्षमता रखता है.

सभी को आना होगा साथ

इस संघर्ष के आसपास की समकालीन भू-राजनीति इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. यह संघर्ष ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों का बिगुल बज चुका है और वहां की दोनों पार्टियाँ- डेमोक्रेट और रिपब्लिकन अमेरिकी विदेश नीति को एक महत्वपूर्ण चुनावी एजेंडा बनाने के लिए तैयार हैं, जिसमें पश्चिम एशिया एक महत्वपूर्ण पहलू है. देखा जाए तो ईरान और इजराइल को लेकर अमरीकी नीति को लेकर दोनों दलों में सैधांतिक रूप से कोई विशेष अंतर नहीं है. अक्टूबर 2023 में युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिका ने अपने सहियोगी देशों  के साथ-साथ डेमोक्रेटिक पार्टी के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग द्वारा गाजा में इजरायल द्वारा की गयी कार्रवाई की भारी आलोचना के बावजूद इजरायल को उसके जमीनी हमले में समर्थन देना जारी रखा है. ऐसे में कम से कम बिडेन तो नहीं चाहेंगे कि यह संघर्ष एक पूर्ण युद्ध में बदल जाए जिसमें अमेरिका को न चाहते हुए भी शामिल होना पड़े.

इस बात की संभावना थी कि ईरान के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से पहले इज़राइल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव खत्म होने और ट्रम्प जैसे किसी व्यक्ति के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने का इंतजार कर सकता है परन्तु जिस तरह से समाचार आ रहे हैं की इजराइल ने ईरान के इस्फ़हान प्रांत में हवाई अड्डे और एक सैन्य अड्डे के ऊपर हवाई हमला किया है, उससे पश्चिम एशिया में एक युद्ध की सम्भावना बढ़ती जा रही है. ऐसे समय में जब विश्व के एक दूसरे हिस्से में रूस और यूक्रेन के बीच पहले से ही दो साल से अधिक समय से युद्ध चल रहा है जिससे पूरे विश्व, विशेष रूप से विकासशील देशों को भारी आर्थिक झटका लगा है, दुनिया एक और संघर्ष को दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति तक बढ़ने का जोखिम नहीं उठा सकती है. वैश्विक समुदाय और चीन एवं रूस जैसे देशों को साथ आ कर यह सुनिश्चित करने के लिए काम करना चाहिए कि मतभेदों को सुलझाने के लिए राजनयिक तरीकों के लिए जगह बनी रहे और दोनों पक्ष सावधानी एवं  संयम बरतें. यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत अपनी विश्वसनीयता और संघर्षों में एक तटस्थ शक्ति होने के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ दोनों पक्षों को एक मंच पर लाने का प्रयास करे ताकि उसके अपने भू-राजनीतिक, आर्थिक और ऊर्जा हितों से समझौता न हो. एक भी गलती पूरे विश्व के लिए बड़ा नुकसान पैदा कर सकती है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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