Rare Earths पर चीन के बैन से भारत की ऑटो इंडस्ट्री को कितना होगा नुकसान? रिपोर्ट में हुआ खुलासा
Rare Earths Ban: चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट्स पर लगाए गए प्रतिबंध का भारत की ऑटो इंडस्ट्री पर कितना असर पड़ेगा? आइए जानें देश में कितना वाहन अभी भी इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) पर निर्भर हैं.

China Rare Earths Ban: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती पॉपुलैरिटी के बीच चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर लगाए गए बैन से एक नई चिंता सामने आई है, लेकिन एक ताजा रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि इस बैन का असर भारत की पूरी ऑटो इंडस्ट्री पर बहुत कम रहेगा.
दरअसल, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत में अभी भी 95% गाड़ियाँ इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) यानी पेट्रोल और डीजल से चलती हैं.
रिपोर्ट क्या कहती है?
नुवामा संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट्स पर लगाया गया प्रतिबंध मुख्य रूप से डिफेंस सेक्टर को ध्यान में रखकर किया गया है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव इलेक्ट्रिक वाहनों पर पड़ेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे पहले इसका असर इलेक्ट्रिक पैसेंजर गाड़ियों पर, फिर हाइब्रिड मॉडल्स और उसके बाद इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स पर दिखाई देगा. हालांकि पारंपरिक पेट्रोल और डीजल इंजन वाली गाड़ियों (ICE) पर इसका असर बहुत ही मामूली होगा, क्योंकि इन गाड़ियों में रेयर अर्थ मटेरियल्स (REM) का इस्तेमाल बेहद कम मात्रा में होता है.
भारत में EV का प्रतिशत कितना है?
भारत में ईवी बाजार की स्थिति देखें तो, टू-व्हीलर सेगमेंट में ईवी की हिस्सेदारी सिर्फ 7% है, जबकि पैसेंजर व्हीकल सेगमेंट में यह केवल 3% तक सीमित है. हालांकि वित्त वर्ष 2023 से 2025 के बीच ईवी सेगमेंट में 25% की सालाना वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन यह वृद्धि अभी बहुत ही छोटे स्केल पर हो रही है.
ईवी बनाम ICE गाड़ियों में REM का उपयोग
ईवी और ICE गाड़ियों में REM के उपयोग की तुलना करें तो, रिपोर्ट बताती है कि एक इलेक्ट्रिक वाहन में औसतन 0.8 किलोग्राम REM का उपयोग होता है, हाइब्रिड वाहनों में यह 0.5 किलोग्राम होता है, जबकि पारंपरिक ICE वाहनों में केवल 0.1 किलोग्राम REM की आवश्यकता होती है.
किन रेयर अर्थ तत्वों पर बैन लगा है?
चीन ने जिन 7 रेयर अर्थ एलिमेंट्स के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाया है, उनमें समेरियम, गैडोलिनियम, टरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेशियम, स्कैंडियम और यट्रियम शामिल हैं. ये सभी मैग्नेट्स निर्माण में इस्तेमाल होते हैं, जिनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, एयरोस्पेस तकनीक और भारी औद्योगिक मशीनों में किया जाता है. चीन फिलहाल Global Rare Earth Processing पर 90% से ज्यादा नियंत्रण रखता है, जिससे उसकी Global supply chain पर मजबूत पकड़ है.
अब नई व्यवस्था के तहत, कंपनियों को इन तत्वों की आपूर्ति के लिए चीन से एंड-यूजर सर्टिफिकेट लेना होगा, जिसकी प्रक्रिया करीब 45 दिनों की हो सकती है. इससे ईवी निर्माण की सप्लाई चेन में थोड़ी देरी और अनिश्चितता देखी जा सकती है, लेकिन पेट्रोल और डीजल वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग पर इसका कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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Source: IOCL





















