मोदी का कांग्रेस पर हमला: 'फैमिली फर्स्ट' से 'नेशन फर्स्ट' तक का सफर | ABP NEWS
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने राजनीति का एक ऐसा मॉडल तैयार किया था जिसमें झूठ, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण का मेल था. मोदी ने अपनी सरकार के 'नेशन फर्स्ट' दृष्टिकोण पर जोर दिया और कहा कि उन्होंने विकास के लिए एक नया मॉडल दिया है जो सैचुरेशन एप्रोच पर आधारित है. उन्होंने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का भी उल्लेख किया.क्योंकि वो इतना बड़ा दल एक परिवार को समर्पित हो गया है।उसके लिए सबका साथ सबका विकास संभव ही नहीं है।सभापति जी, कांग्रेस ने राजनीति का एक ऐसा मॉडल तैयार किया था जिसमें झूठ फरीद भ्रष्टाचार, परिवारवाद, पुष्टिकरण सबका गालमेल था।जहाँ सबका गालमेल हो वहाँ सबका साथ हो ही नहीं सकता।आदरणीय सभापति जी, कांग्रेस की मॉडल में सर्वोपरि है फैमिली फर्स्ट और इसलिए।उनकी नीती रीती उनकी वाणी, उनका बर्तन उस एक चीज़ को संभालने में खपता रहा है 2014 के बाद।देश ने हमें सेवा करने का अवसर दिया और मैं उस देश की जनता का आभारी हूँ।हमें तीसरी बार लगातार ये तीसरी बार जनता यहाँ पहुंचाती है इतने बड़े देश में।इतनी वाइब्रेंट डेमोक्रेसी हो, वाइब्रेंट मीडिया हो, हर प्रकार की बातें बताने की छूट हो, उसके बावजूद भी देश दूसरी बार तीसरी बार हमें सेवा करने का मॉडल बनाती है।उसका कारण देश की जनता ने हमारे विकास के मॉडल को परखा है, समझा है और समर्थन दिया है और हमारा एक का अगर मुझे एक शब्द में कहना है तो मैं ये कहूंगा नेशन फर्स्ट किसी एक उम्दा भावना और समर्पित भाव से हमने लगातार अपनी नीतियों में, अपने कार्यक्रम में, हमारी वाणी में, वर्तन में इसी एक बात को मानदंड मान करके देश की सेवा करने का प्रयास किया है और आदरणीय सहवती कि मैं बड़े गर्व के साथ भी कहता हूँ बड़े संतोष के साथ कहता हूँ। एक लंबे अरसे तक पांच छः दशक तक देश के सामने ऑल्टर्नेट मॉडल क्या हो? तराजू पर तौलने का कोई अवसर ही नहीं मिला था लंबे अर्से के बाद 2014 के बाद देश को। एक ऑल्टर्नेट मॉडल क्या हो सकता है ऑल्टरनेट काम कार्यशैली क्या हो सकती है, प्रायोरिटी क्या हो सकती है इसका एक नया मॉडल देखने को मिला है और ये नया मॉडल पुष्टिकरण नहीं संतुष्टिकरण पर भाग था। पहले की मॉडल में खास करके कांग्रेस के कालखंड में तुष्टिकरण हर चीज़ में तुष्टिकरण यही उनका एक प्रकार से औषधि बन गई थी। उनकी राजनीति को करने की और उन्होंने स्वार्थनीति राजनीति देश ने सबका एक घोटाला करके रखा हुआ था। तरीका ये होता था कि छोटे तबके को कुछ दे देना और बाकियों को तरसाकर रखना और जब चुनाव आए तब कहना देखो उनका मिला है। शायद आपको भी मिल जाएगा और इस प्रकार से झुनझुना बांटते रहना, लोगों के आँखों पर पट्टी बांध करके अपनी राजनीतिक सियासत को चलाए रखना। ताकि चुनाव के समय वोट की खेती हो सके, यही कार्य चलता रहा आदरणीय सलावती जी हमारी कोशिश रही है कि भारत के पास जो भी संसाधन हैं उन संसाधनों का ओप्टीमम यूटिलाइजेशन किया गया।भारत के पास जो समय है उस समय का भी बर्बादी से बचा करके पल पल का उपयोग देश की प्रगति के लिए।जन सामान्य के कल्याण के लिए उसी पर वो खर्च हो और इसलिए हमने एक एप्रोच अपनाया सैचुरेशन का अप्रोच।प्यार उतने ही लंबे करने जितनी चद्दर हो, लेकिन जो योजना बने, जिनके लिए वो योजना बने उनको वो शत प्रतिशत उसका बेनिफिट होना चाहिए।किसी को दिया, किसी को नहीं दिया, किसी को लटकाकर के रखा और उसको हमेशा प्रताड़ित करते रखना और उसको निराशा की गर्त में धकेल देना।उस सिचुएशन से हमने बाहर आकर के सैच्युरेशन एप्रोच की ओर हमारे काम को आगे बढ़ाया है बीते दशक में हमने हर स्तर पर सबका साथ, सबका विकास की भावना को जमीन पर उतारा है और वो आज देश में जीस प्रकार से बदलाव नजर रहा है।फल के रूप में हम अनुभव करने लगे हैं।हमारे गवर्नेंस का भी मूल मंत्र यही रहा है।सबका साथ सबका विकास हमारी ही सरकार ने एससी एसटी एक्ट को मजबूत बनाकर दलित और आदिवासी समाज के सम्मान और उनकी सुरक्षा के संबंध में अपनी प्रतिबद्धता भी दिखाई और हमने उसे बढ़ाया आदरणीय सभापति जी, आज जातिवाद का जहर फैलाने के लिए भरपूर प्रयास हो रहा है, लेकिन तीन तीन दशक तक दोनों सदन के ओबीसी, एमपीएस और सभी दलों के ओबीसी एमपीएस सरकारों से मांग करते रहे थे कि ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए, ठुकरा दिया गया, इंकार किया गया क्योंकि शायद उस समय।उनकी राजनीति कोई सूट नहीं करता होगा क्योंकि तुष्टिकरण की राजनीति के और फैमिली फंस की राजनीति में जब वो बैठेगा तब तक वो चर्चा के हित में भी नहीं आता है आदरणीय सभावती जी ये मेरा सौभाग्य है कि हम सबने मिल करके तीन तीन दशक से मेरे ओबीसी समाज ने जीस बात के लिए मांगे की आशाएं रखीं। जीसको निराश करके रखा गया था। हमने आकर के इस आयोग को संवैधानिक नजर।


























