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Rampur Bypoll: रामपुर में टूट जाएगा आजम खान का तिलिस्म! पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी की नजर, जानें- क्या है रणनीति?
Rampur Bypoll: मंत्री दानिश अंसारी ने कहा कि पसमांदा मुसलमान सरकार की योजनाओं का लाभार्थी वर्ग है. उसे बिना भेदभाव के योजनाओं का लाभ मिल रहा है. धीरे-धीरे उसके मन में बीजेपी के प्रति भरोसा बढ़ा है.
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Rampur By-Election 2022: अपने राजनीतिक जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे समाजवादी पार्टी (SP) के वरिष्ठ नेता आजम खान (Azam Khan) का आखिरी किला ढहाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) उनके सबसे मजबूत वोट बैंक यानी पसमांदा मुस्लिम (Pasmanda Muslim) मतदाताओं में सेंध लगाने की भरसक कोशिश कर रही है. सत्तारूढ़ भाजपा पसमांदा मुसलमानों को सरकारी योजनाओं का लाभार्थी वर्ग मानकर राज्य में जगह-जगह सम्मेलन कर रही है. इसे बीजेपी की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. जिसका केंद्र इस वक्त रामपुर (Rampur Bypoll) विधानसभा क्षेत्र बन चुका है.
पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी की नजर
राजनीतिक पार्टियों से मिले आंकड़े के मुताबिक रामपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल तीन लाख 88 हजार मतदाता हैं. उनमें से करीब दो लाख 27 हजार यानी लगभग 60 प्रतिशत मुस्लिम हैं. इनमें से तकरीबन 80 हजार पठान, 18 हजार सैयद और 12 हजार तुर्क मतदाताओं को छोड़ दें तो बाकी एक लाख 17 हजार मतदाता पसमांदा यानी पिछड़े वर्ग के हैं. भाजपा इसी तबके को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. उसकी इस कोशिश को इस बात से बल मिल रहा है कि मुसलमानों का यही तबका सरकारी योजनाओं का सबसे बड़ा लाभार्थी है. यह वर्ग कई पीढ़ियों से आजम खां का मतदाता भी रहा है.
उत्तर प्रदेश सरकार के एकमात्र मुस्लिम मंत्री अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी कहते हैं कि आजम खान ने रामपुर के भोले-भाले मुस्लिम वर्ग को अपने लच्छेदार भाषणों में उलझा कर उनके वोट हासिल किए लेकिन सक्षम होने के बावजूद उनका जीवन स्तर बेहतर करने के लिए कुछ भी नहीं किया. खुद भी पसमांदा समाज से आने वाले अंसारी इन दिनों रामपुर में डेरा डाले हुए हैं. रामपुर के पसमांदा मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दौरे करके भाजपा के पक्ष में मतदान की अपील कर रहे हैं.
दानिश अंसारी ने आरोप लगाया कि आजम खान ने मुसलमानों के बूते सफलता हासिल की और उसके बाद सिर्फ अपना स्वार्थ साधा. लेकिन अब यह तिलिस्म टूट चुका है. अंसारी ने कहा कि पसमांदा मुस्लिम यह जान गए हैं कि उनका भला भाजपा की ही सरकार में हो रहा है. पसमांदा मुसलमान सरकार की योजनाओं का लाभार्थी वर्ग है और उसे बिना किसी भेदभाव के योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ मिल रहा है. धीरे-धीरे उसके मन में भाजपा के प्रति भरोसा बढ़ रहा है. इस बार भाजपा पसमांदा मुसलमानों के सहारे रामपुर में कामयाबी का झंडा गाड़ेगी.
क्या टूटेगा आजम खान का तिलिस्म
रामपुर विधानसभा उपचुनाव में आजम खां का तिलिस्म तोड़ने की हर संभव कोशिश कर रही भाजपा ने पिछली 12 नवंबर को अल्पसंख्यक पसमांदा सम्मेलन आयोजित किया था. भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और रामपुर के पूर्व सांसद मुख्तार अब्बास नकवी को भी मुस्लिम मतदाताओं तक पहुंच बनाने के लिए मैदान में उतारा है. वह पसमांदा मुसलमानों के बाहुल्य वाले क्षेत्रों में ‘खिचड़ी पंचायत’ कर माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि बीजेपी की ये कोशिश कितनी कामयाब होगी इस पर पसमांदा मुस्लिम नेताओं की राय अलग-अलग है. जहां तक पसमांदा मतदाताओं का सवाल है तो वे किसे वोट देना है, इसे लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं.
जानिए पसमांदा मुस्लिम समाज की राय
पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय महासचिव अंजुम अली का कहना है कि रामपुर विधानसभा उपचुनाव में पसमांदा मुसलमानों का वही वर्ग आजम का साथ छोड़ेगा जो उनसे बहुत नाराज है. इसके अलावा कुछ खास उलटफेर हो जाएगा, ऐसा नहीं लगता. उन्होंने कहा कि भाजपा भले ही पसमांदा मुसलमानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के दावे कर रही हो लेकिन यह सच्चाई नहीं है.
दूसरी ओर, ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन कहते हैं कि आजम खां ने पसमांदा मुसलमानों को नवाबों का डर दिखाते हुए उन्हें अपना वोट बैंक बनाया लेकिन जब सत्ता में आए तो उनके प्रति खुद ही नवाबों जैसा रवैया अख्तियार किया. मुस्लिम यादव समीकरण साध कर प्रदेश में चार बार सत्ता में रह चुकी सपा का सबसे ताकतवर मुस्लिम नेता होने के बावजूद आजम खां ने पसमांदा मुसलमानों के भले के लिए कोई ठोस काम नहीं किया.
उन्होंने कहा कि सपा ने मुसलमानों की कुल आबादी में 85 प्रतिशत भागीदारी होने के बावजूद पसमांदा मुसलमानों को कभी महत्वपूर्ण पदों पर नहीं बैठाया. मुसलमान आमतौर पर भाजपा को वोट नहीं देते लेकिन इसके बावजूद उसने न सिर्फ सरकार में, बल्कि विभिन्न आयोगों और संस्थानों में पसमांदा मुसलमानों को वाजिब हक दिया है. यह स्वाभाविक है कि जो हमें हक देगा हम उसी का साथ देंगे.
क्या कहते हैंं मुस्लिम जानकार
रामपुर की सियासत की गहरी समझ रखने वाले राजनीतिक प्रेक्षक फजल शाह फजल ने कहा कि आजम खां ने रामपुर के पसमांदा मुसलमानों के अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के लिए उसी तरह काम किया जैसे कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संस्थापक कांशीराम और मायावती ने किया था. आजम ने दबे कुचले मुसलमानों को उनके साथ हुए कथित जुल्म का डर दिखाकर रामपुर के नवाब परिवार के खिलाफ लामबंद किया और नवाब खानदान को सबक सिखाने वाले मसीहा की छवि बनाई. इस कवायद के बाद रामपुर के मुस्लिम मतदाताओं में आजम खां की जो पकड़ बनी उसने उन्हें 10 बार विधानसभा और एक बार लोकसभा तक पहुंचाया.
भाजपा द्वारा पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने की भरसक कोशिश के बारे में उन्होंने कहा कि यह सच है कि लाभार्थी वर्ग ने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को जमकर वोट दिए लेकिन रामपुर का चुनाव ज्यादातर व्यक्तित्व के आधार पर होता है. ऐसे में भाजपा को इसका कितना फायदा होगा यह तो वक्त ही बताएगा. शाह ने कहा कि पसमांदा मुसलमान आजम खां में अपना मसीहा देखते रहे लेकिन उनके हालात ज्यादा नहीं बदले, फिर भी खां के व्यक्तित्व को देखते हुए यह तबका उनके ही साथ रहा.
उन्होंने कहा कि खां को इस साल के शुरू में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में सहानुभूति का फायदा मिला था लेकिन वह हमदर्दी इस उपचुनाव में भी जारी रहेगी इस पर संदेह है. आजम ने पांच महीने पहले रामपुर लोकसभा उप चुनाव हार चुके आसिम राजा को रामपुर विधानसभा उपचुनाव में भी उम्मीदवार बनाया है, इससे लोगों में कहीं ना कहीं नाराजगी है, क्योंकि राजा शम्सी नामक अगड़ी जाति से हैं और रामपुर में इस तबके के मतदाताओं की संख्या महज चार हजार है.
भड़काऊ भाषण देने के मामले में आजम खां को तीन साल की सजा सुनाये जाने के बाद उनकी सदस्यता समाप्त किए जाने के चलते इस सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है. इसके तहत आगामी पांच दिसंबर को मतदान होगा.
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