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UP Election 2022: क्या पूर्वांचल में सपा की खोई हुई जमीन वापस दिला पाएंगे ओमप्रकाश राजभर

UP Election 2022: ओमप्रकाश राजभर और अखिलेश यादव ने 2022 का विधानसभा चुनाव एक साथ मिलकर लड़ने की घोषणा की है. आइए जानते हैं कि यह गठबंधन पूर्वांचल के इलाकों में बीजपी को कितनी चुनौती दे पाएगा.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव (SP Chief Akhilesh Yadav) ने बुधवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ में एक चुनावी रैली को संबोधित किया. रैली का आयोजन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने अपने 19वें स्थापना दिवस पर किया था. अखिलेश और सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) की 20 अक्तूबर को मुलाकात हुई थी. उसी दिन दोनों दलों ने घोषणा की थी कि वो एक साथ चुनाव (UP Assembly Election 2022) लड़ेंगे. सुभासपा ने पिछला चुनाव बीजेपी (BJP) के साथ लड़ा था. रानीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मउ की रैली में शामिल होकर अखिलेश यादव ने अपनी खोई हुई जमीन की खोज शुरू की है. 

इससे पहले सपा ने जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल के साथ मिलकर पश्चिमी यूपी में अपनी पैठ मजबूत की है. माना जा राह है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम के इलाके में बीजेपी को नुकसान हो सकता है. सपा इसे अपने पक्ष में करने के फिराक में है. बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया था. 

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सपा की नजर और बीजेपी की रणनीति

पश्चिम के बाद सपा की नजर पूर्वांचल के उन इलाकों पर है, जहां पहले उसे सफलता मिलती थी. लेकिन नरेंद्र मोदी के लहर में ये इलाके उसके हाथ से निकल गए. ओमप्रकाश राजभर के जरिए सपा उन इलाकों को फिर से हासिल करना चाहती है. राजभर ने जिस मउ में अपना स्थापना दिवस मनाया, उसके आसपास के जिलों में राजभरों की आबादी अधिक है. इसे देखते हुए ही बीजेपी ने राजभर से समझौता किया था. इसका उसे फायदा भी हुआ था. सपा भी राजभर के जरिए वही फायदा उठाना चाहती है. 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से समझौता तोड़ लिया था. लेकिन उनके इस कदम से पहले ही बीजेपी ने तीन राजभर नेता तैयार कर लिए थे. बीजेपी ने वाराणसी के शिवपुर विधानसभा सीट से चुने गए अपने विधायक अनिल राजभर को प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया. बीजेपी ने बलिया के आरएसएस के कार्यकर्ता पुराने कार्यकर्ता सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजा. वहीं घोसी लोकसभा सीट पर बीजेपी को पहली बार जीत दिलाने वाले हरि नारायण राजभर को बीजेपी ने 2019 में फिर टिकट दिया था. लेकिन वो बसपा के अतुल राय से हार गए थे. बीजेपी की इन कोशिशों से सवाल यह उठता है कि ओमप्रकाश राजभर पर अब कितने राजभर विश्वास करते हैं. पूर्वांचल के कुशीनगर, देवरिया, गाजीपुर, मऊ, घोसी, बलिया, अंडेकरनगर, इलाहाबाद, वाराणसी और चंदौली जैसे जिलों में राजभरों की अच्छी खासी आबादी है. 

पूर्वांचल की राजनीति   

बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 2017 के चुनाव में 124 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पूर्वांचल के इन जिलों में राजभर के अलावा निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह जैसी जातियों की भी अच्छी खासी आबादी है. निषाद वोटों के लिए बीजेपी ने निषाद पार्टी से समझौता कर रखा है. लेकिन बीजेपी की सहयोगी अपना दल में विभाजन हो गया है. अपना दल (सोनेलाल) बीजेपी के तो अपना दल (कमेरावादी) ओम प्रकाश राजभर के साथ है. अब यह देखना होगा कि समझौते के बाद सपा ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ किस तरह तालमेल बिठाते हैं. इस मोर्चे में कई ऐसे छोटे दल हैं, जो जातीय आधार पर पूर्वांचल में कई सीटों पर अच्छा प्रभाव रखते हैं. 

केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इसलिए सभी दल उत्तर प्रदेश में खासा जोर लगाते हैं. विधानसभा की 33 फीसदी सीटें पूर्वांचल के 28 जिलों में हैं. इन 28 जिलों में कुल 164 सीटें हैं. अगर 2017 के चुनाव के परिणाम की बात करें तो इन 164 सीटों में से 115 सीटें अकेले बीजेपी ने जीती थीं. इसके अलावा सपा ने 17, बसपा ने 14 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं. और 16 सीटें छोटे दलों के खाते में गई थीं.

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