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Rudraprayag: 5 साल में ही जर्जर हो गए अलकनंदा और मंदाकिनी संगम पर बने घाट, मलबे में दब गए किनारे
रुद्रप्रयाग में नदियों के घाटों की स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन साफ-सफाई की प्लानिंग कर रहा है. यहां के हालात के कारण पर्यटक और श्रद्धालु घाटों की तरफ जाने से कतरा रहे हैं.
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Uttarakhand News: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) जनपद का धार्मिक और पर्यटन के क्षेत्र में विशेष महत्व है. जनपद में जहां विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के अलावा द्वितीय केदार मदमहेश्वर और तृतीय केदार तुंगनाथ विराजमान हैं. वहीं मिनी स्वीजरलैंड के रूप में विख्यात पर्यटन स्थल चोपता भी है. इतना ही नहीं जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा (Alaknanda) और केदारनाथ धाम से आने वाली मंदाकिनी (Mandakini) नदी का संगम भी होता है. रुद्रप्रयाग पंच प्रयागों में से एक प्रयाग माना जाता है. पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आवजाही के बावजूद घाटों की स्थिति जस-की-तस है और वे धीरे-धीरे जर्जर हो रहे हैं.
ग्रामीष्मकाल में रुद्रप्रयाग के धार्मिक स्थलों में लाखों की संख्या में यात्री पहुंचते हैं तो शीतकाल में यहां पर्यटकों की भरमार रहती है. यहां आने-वाले तीर्थ यात्री और पर्यटकों गंगा आरती, योग और ध्यान में हिस्सा लेते हैं. इसके लिए अलकनंदा और मंदाकिनी नदी किनारे बनाए गए घाट खंडहर में तब्दील हो गए हैं. 2017 में ही इन घाटों का निर्माण हुआ था, लेकिन पांच वर्षों में ही यह घाट जाने के लायक नहीं रह गए हैं. नमामि गंगे परियोजना के तहत रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय में अलकनंदा नदी किनारे और अलकनंदा-मंदाकिनी के संगम स्थल पर घाट बनाए गए थे, जो कि मलबे में दबे हुए हैं.
कभी जलमग्न तो कभी मलबे में दब जाते हैं घाट
चार महीने यह घाट नदियों के बढ़ते जल स्तर के कारण जलमग्न रहते हैं तो बाकी समय यह घाट मलबे में दबे रहते हैं. घाट निर्माण का मुख्य उददेश्य था कि यहां पहुंचने वाले पर्यटक और यात्री इन घाटों का रुख करें जिससे योग और साधना को बढ़ावा मिले, लेकिन घाटों की सुध न लिए जाने से कोई भी इन घाटों की ओर नहीं जा रहा है. इन घाटों से जहां नदियों की सुंदरता बढ़नी थी, लेकिन अब इससे नदियों की सुंदरता धूमिल हो रही है. दूर से ही ये घाट मलबे में ढंके दिखाई दे रहे हैं. जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने कहा कि मलबा होने के कारण घाट का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. नगरपालिका के साथ मिलकर यह कार्ययोजना बनाई जा रही है कि किस प्रकार से घाटों की सफाई की जाए और बरसात में बहकर आई रेत का किस प्रकार से इस्तेमाल किया जाए.
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