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प्रयागराज में गंगा की रेत में दफनाए जा रहे शव, कब्रिस्तान में बदले घाट, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा प्रशासन

प्रयागराज में सरकारी विभागों की लापरवाही के कारण गंगा की रेत पर फिर से बड़ी संख्या में शवों को दफनाया जा रहा है. मेयरके मुताबिक इस बारे में लोगों को अभियान चलाकर जागरूक किया जा रहा है.

UP News: संगम नगरी प्रयागराज में रूढ़िवादी परंपरा, दकियानूसी सोच और नगर निगम समेत दूसरे सरकारी विभागों की लापरवाही गंगा नदी के लिए एक बार फिर से बड़ी मुसीबत बन रही है. यहां गंगा की रेत पर फिर से बड़ी संख्या में शवों को दफनाया जा रहा है. गंगा किनारे के जिन घाटों पर चिताएं सजती थीं, दाह संस्कार होते थे, वहां बड़ी संख्या में शवों को दफनाए जाने से ये घाट अब कब्रिस्तान में तब्दील होते नजर आ रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि सरकारी अमला सब कुछ जानते हुए भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर लापरवाह बना हुआ है और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों की धज्जियां उड़वा रहा है. 

सरकारी अमले की यह लापरवाही तब देखने को मिल रही है, जब मानसून सिर पर है. बारिश के बाद जलस्तर बढ़ते ही मिट्टी में दफन ये शव कब्र से बाहर आकर गंगा में बहने लगेंगे और नदी को प्रदूषित करेंगे. ये लाखों लोगों की जिंदगी और उनकी सेहत के लिए खतरे का सबब बनेंगे. मोक्षदायिनी गंगा में शवों के तैरने की तस्वीरें सामने आने पर हायतौबा मचेगी और नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए लाखों का बजट बनेगा, उसका बंदरबांट होगा. इस मामले को लेकर अब सियासत भी शुरू हो गई है. विपक्षी पार्टियों ने शमशान के कब्रिस्तान बनने को लेकर सरकार पर सियासी निशाना भी साधा है. 

कोर्ट ने दिया था आदेश
धार्मिक मान्यताओं की वजह से संगम नगरी में गंगा के घाटों पर अंतिम संस्कार का खासा महत्व है. यहां आस-पास के तमाम जिलों के साथ ही एमपी और दूसरे अन्य राज्यों के लोग भी अंतिम संस्कार करने के लिए आते हैं. सनातन परंपरा में दाह संस्कार के साथ ही शवों को कब्र बनाकर उनमे दफन किये जाने की भी परंपरा है, लेकिन हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के तमाम आदेश है कि गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए उसके किनारे शवों को कतई न दफनाया जाए. 

इसके बावजूद संगम नगरी प्रयागराज में एक बार फिर से बड़ी संख्या में शवों को गंगा किनारे नहीं बल्कि उसकी रेती पर ही दफनाया जा रहा है. फाफामऊ से लेकर श्रृंगवेरपुर और अरैल से लेकर छतनाग घाटों पर रोजाना तमाम शव दफन किये जा रहे हैं. फाफामऊ समेत कई जगहों की तस्वीर देखकर इनके शमशान घाट नहीं बल्कि कब्रिस्तान होने का एहसास होता है. अकेले फाफामऊ घाट पर सैकड़ों की संख्या में शव दफनाए गए हैं. कई कब्र तो अब एकदम मोक्षदायनी गंगा की धारा के करीब ही बनाई गई हैं.  


प्रयागराज में गंगा की रेत में दफनाए जा रहे शव, कब्रिस्तान में बदले घाट, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा प्रशासन 

चिंता का सबब यह है कि कुछ ही दिनों में मानसून दस्तक देने वाला है. बारिश होने पर जैसे ही गंगा का जलस्तर बढ़ेगा, ये सारे शव कब्र से बाहर आ जाएंगे और नदी में तैरते हुए नजर आने लगेंगे. इससे गंगा का जल प्रदूषित होगा. उसे पीने, आचमन करने व डुबकी लगाने वालों की सेहत व जिंदगी पर इसका असर होगा. शवों को गंगा की रेती में दफनाने वाले लोग ज़्यादातर आसपास के ही होते हैं. कुछ लोग रूढ़िवादी परम्पराओं के चलते शवों को गंगा में दफन करते हैं तो कुछ लोग दकियानूसी सोच के चलते. 

तमाम लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके सामने आर्थिक संकट होता है और वह पैसों को बचाने के लिए दाह संस्कार के बजाय गंगा में कब्र तैयार कर शवों को दफन कर देते हैं. दाह संस्कार करने में हजारों रूपये का खर्च आता है, जबकि गरीब लोग खुद अपने हाथों ही कब्र खोदकर शव दफना देते हैं. भू समाधि देने के बाद उस पर फूल-रामनामी चादर व चुनरी चढ़ाकर अपनी बेबसी व लाचारी पर आंसू बहाते हैं.   

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कागजों पर बनी है कमेटी
शहरी इलाके में गंगा की रेती पर शवों को दफन करने से रोकने की जिम्मेदारी नगर निगम की होती है. जिला प्रशासन और पुलिस महकमा नगर निगम की मदद करता है. कहने को नगर निगम ने शवों को दफनाने से रोकने के लिए कागजों पर एक कमेटी बना दी है, लेकिन यह कहीं नजर नहीं आती. दावा किया जाता है कि लोग रात के अंधेरे में चोरी छिपे शवों को दफना जाते हैं, लेकिन घाटों की तस्वीरें सरकारी अमले की दावों को मुंह चिढ़ाते हुए नजर आती हैं. 


प्रयागराज में गंगा की रेत में दफनाए जा रहे शव, कब्रिस्तान में बदले घाट, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा प्रशासन

दस दिनों पहले ही मेयर की कुर्सी पर बैठे गणेश केसरवानी के मुताबिक इस बारे में लोगों को अभियान चलाकर जागरूक किया जा रहा है, रोका जा रहा है. इसके साथ ही इस बात की भी व्यवस्था की जा रही है कि गरीबों को संस्थाओं की मदद से मुफ्त दाह संस्कार की सुविधा दिलाई जा सके. प्रयागराज के शहरी इलाके में दो विद्युत् शवदाह गृह भी हैं, लेकिन अक्सर यह खराब ही रहते हैं और इन पर ताला लटका नजर आता है. इनके बारे में ज्यादा प्रचार प्रसार भी नहीं हुआ है.  

सरकारी अमले की लापरवाही को सामने रखकर विपक्षी दल सरकार पर निशाना साध रहे हैं. सपा के विधायक डा० मान सिंह यादव का कहना है कि बीजेपी और उसकी सरकारें धार्मिक भावनाओं के सहारे लोगों का वोट तो ले लेती हैं, लेकिन गंगा नदी को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है. गंगा के नाम पर सिर्फ पैसों की लूट खसोट होती है और उसे प्रदूषण से रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की जाती है. सपा विधायक मान सिंह यादव ने इसे बेहद गंभीर और शर्मनाक मामला बताते हुए इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की बात कही है. उन्होंने कहा कि बीजेपी और उसकी सरकारों को गंगा मइया से माफी मांगनी चाहिए नहीं तो वह उन्हें अभिशप्त कर देंगी. 

दो साल पहले कोरोना के सेकेंड फेज में भी इसी तरह बड़ी संख्या में शवों को गंगा की रेती में दफन किया गया था. उस वक्त खूब हाहाकार मचा था. देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में यह मामला सुर्ख़ियों में आया था. विदेशी मीडिया ने दफनाए गए शवों को कोरोना के मृतकों को शव की अफवाह फैलाकर सरकार पर आंकड़ों को छिपाने का गंभीर आरोप लगाया था. सरकारी अमले को उस वक़्त जवाब देते नहीं बना था. सरकारी अमला शायद इस बार भी ऐसे ही किसी हाहाकार का इंतजार कर रहा है और इसीलिये फिलहाल कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है. 

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