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चारधाम यात्रा के स्थगित होने से टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को झटका

कोरोना की दूसरी लहर से टूरिज्म सेक्टर पर संकट गहरा गया है. ऐसे में पर्यटन के लिए लोगों की मनपसंदीदा जगहों में से एक उत्तराखंड में चार धाम यात्रा स्थगित कर दी गई है.

बिजनेस के लिहाज से गर्मी की छुट्टियां सबसे बड़ा सीजन माना जाता है. इस मौसम में आम तौर पर होटलों, टैक्सी चालकों, रेस्टोरेंट इत्यादि को मुनाफा होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू पर्यटन का 65 फीसद बिजनेस मई और जून के महीने में आता है.

लेकिन पिछला पूरा सीजन ही कोविड की भेंट चढ़ गया था, और अब इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर से टूरिज्म सेक्टर पर संकट गहरा गया है. ऐसे में पर्यटन के लिए लोगों की मनपसंदीदा जगहों में से एक उत्तराखंड में चार धाम यात्रा स्थगित कर दी गई है. हाईकोर्ट नैनीताल की फटकार के बाद उत्तराखंड सरकार ने बदरीनाथ-केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा 29 जून को रद्द कर दी. पर्यटन उद्योग के लिए ये किसी झटके से कम नहीं जो इस आस में थे कि शायद धीमी गति से ही सही, उनका व्यवसाय पटरी पर आ जाएगा अब पूरी तरह से उम्मीद खो चुके हैं.

टूरिज्म सेक्टर से जुड़े तीन अलग-अलग वर्गों और कारोबारियों से एबीपी न्यूज ने एक्सक्लूसिव बातचीत की. डेढ़ साल से भारी नुक्सान झेल रही होटल इंडस्ट्री के अलावा टैक्सी चालकों की पीढ़ा और रेस्टोरेंट इंडस्ट्री का हाल भी हमने जानने की कोशिश इस रिपोर्ट में की है.

कोरोना संक्रमण से बचने के लिए चार धाम यात्रा को रद्द किया गया

उत्तराखंड, जिसे देव भूमि भी कहा जाता है, कोरोना की मार से अछूता नहीं है. चार धाम यात्रा 1 जुलाई से तीन जिलों के लिए शुरू होने वाली थी लेकिन पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना वायरस महामारी के चलते और बीमारी के संक्रमण से बचने के लिए यात्रा को रद्द कर दिया गया है. इसका असर उत्तराखंड में देखने को मिलता है. जहां टूरिज्म पूरी तरह से ठप पड़ा है, ऐसे वातावरण में किन चुनौतियों के बाद पर्यटन से जुड़े अपने व्यवसाय को जिंदा रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं हजारों , लाखों उद्योग या लगु उद्योगों से जुड़े लोग.

होटल इंडस्ट्री का बुरा हाल-

संदीप पवार ने कुछ सालों पहले एक आलीशान होटल पहाड़ों की गोद, कनातल में बनाया. यहां से नीला आसमान नजर आता है और 12 महीने ठंड रहती है. लेकिन करोड़ों रुपए लगाने के बाद कोरोना की मार ऐसी पड़ी की 7 हजार के कमरे को 50 परसेंट डिस्काउंट पर देने के बाद भी होटल के कमरे खाली पड़े हैं.होटल पाइन क्वीन होटल के मालिक  पवार कहते हैं कि "स्तिथि बहुत खराब है. अकाउंट NPA पड़े हैं, सैलरी कहां से दें ये चुनौती है. 100 दिन का यहां गर्मियों की छुट्टियों का प्राइम सीजन होता है वो पूरा बर्बाद हो गया है.

किश्त नहीं दे पा रहे हैं, बैंक द्वारा जल्दी किश्त देने का दबाव भी है. एक दो दिन होटल चल रहा है, उसमे कोई खर्च नही निकल रहा. हमारे पास 12 स्टाफ है. आज कल 6 या 7 ही रखे हैं. मानवता के नाते बाकी स्टाफ को 50 प्रतिशत सैलरी पर रखा है. " परेशानियां अब इतनी बढ़ गई हैं कि होटल के मालिक ईएमआई तक चुकाने में सक्षम नहीं हैं "मेरा होटल यहां सबसे बड़ा है. मैं बैंक फाइनेंस से होटल बनाया है. लेकिन 3 से 4 लाख की मेरी इंस्टॉलमेंट नही निकल पा रही है.सीजन में हमारा कमरा 5 से 7 हजार तक में उठता है अब कम से कम दाम में भी खाली पड़े हैं."

यही हाल टेहरी के होटल का भी है. 11 महीने की 7 लाख लीज किसी भी हाल में चुकानी है लेकिन होटल का एक कमरा भी उठा नही है. होटल के मालिक का ये सोच कर बुरा हाल है कि अब काम कर रहे लोगों की पगार देने के लिए किसके आगे हाथ फैलाएं.

होटल ग्रैंड सिमौर के मालिक गिरबीर सिंह नेगी कहते हैं कि होटल 22 तारीख से खुला है तब से मुश्किल से एक या दो रूम ही उठ पाते हैं बाकी खाली रहता है. यहां कुल 11 कमरे हैं. आम तौर पर ये सीजन बहुत अच्छा रहता था. अप्रैल से घूमने फिरने वालों की भीड़ होती थी. पिछले साल से बहुत बुरे हाल हैं. कुछ वर्कर रखे हैं , उनकी सैलरी देना भी मुश्किल है. "मेंटेन करना मजबूरी है, बंद कर के रख दिया तो ठीक करने में और पैसा लगेगा. इधर उधर से पैसे लेकर वर्कर की सैलरी दे रहे हैं. पिछले साल होटल खुला नही था लेकिन 7 हजार का बिजली का बिल आया था. चार धाम यात्रा से बहुत फायदा होता है. 11 महीने की 7 लाख लीज जाती है , एग्रीमेंट के मुताबिक वो पैसा तो देना ही देना है."

टैक्सी चालकों का बुरा हाल -

मार सिर्फ होटल इंडस्ट्री पर नही पड़ी है. टैक्सी चलाने वाले लोगों का भी यही हाल है. आम व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की हिफाजत को प्राथमिकता देते हुए घरों में कैद है, ऐसे में एक जगह से दूसरी जगह जाने वालों की गिनती ना के बराबर है तो भला ये गाड़ियां चलें भी तो कहां और कैसे. टैक्सी वालों के लिए दोहरी मार इसलिए भी है क्योंकि डीजल के दाम उत्तराखंड में 90.22 पहुंच गए हैं.

टैक्सी यूनियन  चंबा के सचिव अनिल बेलवाल कहते हैं कि दो साल से चार धाम यात्रा नही हुई है जिस वजह से हमारी गाड़ियां खड़ी की खड़ी हैं. लोगों की किश्तें टूट गई हैं, इंश्योरेंस के लिए लगातार फोन आते रहते हैं , खड़ी गाड़ियों का टैक्स चुका रहे हैं.

हमारे स्टैंड पर 200 गाड़ियां हैं जिनमे से मुश्किल से 20 गाड़ियां चल पा रही हैं. 200 ड्राइवर भी हैं, वो बेचारे भी आज कल दिहाड़ी ,मजदूरी कर रहे हैं किसी के पास काम नही है.

सिर्फ इमरजेंसी वाले लोग आ रहे हैं, कोई बीमार हो तो , या सरकारी काम से आने वाला व्यक्ति. उतना पैसा भी गाड़ी के ईंधन और मेंटेनेंस में चला जाता है.

इनमे से 10 से 15 गाड़ियां ऐसी हैं जो लॉक डाउन से पहले नई खरीदी गई थीं, उन्हे चलाने का मौका तक नहीं मिल पाया है. उन गाड़ियों की इंस्टॉलमेंट भी बढ़ रही है, टैक्स तक जा रहा है.

टैक्सी ड्राइवर ध्यान सिंह बताते हैं कि जब से लॉक डाउन हुआ तब से बहुत मुश्किल हो गई है. तेल हर रोज महंगा हो रहा है जिससे दोहरी मार पड़ रही है. मैने इस गाड़ी के लिए डेढ़ लाख का लोन लिया है. अभी 60 हजार चुकाना बाकी है. धंधा चल रहा होता तो कर्ज निकल जाता.

टैक्स भी देना है, इंश्योरेंस भी भरना पड़ेगा.

दूसरे टैक्सी ड्राइवर धर्मेंद्र कहते हैं कि लगभग 2 साल से गाड़ी खड़ी है. थोड़ी बहुत चल रही है. इस सीजन में आसानी से 6 हजार तक कमा लेते थे, अब कुछ भी नही है. घर कर्ज से चल रहा है. ड्राइवर सृगुणा नंद पंत अपने बच्चों की स्कूल की फीस चुकाने के लिए टैक्सी चलाते हैं लेकिन अब फीस भी नही चुका पा रहे हैं. एबीपी न्यूज से बातचीत में वो कहते हैं कि "इस टाइम तक एडवांस बुकिंग होती थी. हम लोग इस टाइम हरिद्वार होते थे जहां से सवारी लेकर चलते थे. पहले 3 हजार तक तेल काट कर बच जाते थे. घर में मेरे बच्चे हैं जिनकी फीस तक नही दे पा रहा हूं. हमारी गाड़ियों की उम्र सरकार बढ़ा दे तो हमारे बच्चे दो साल और पढ़ जाएंगे."

रेस्टोरेंट इंडस्ट्री को भी नुकसान - नो प्रॉफिट नो लॉस पर चल रहा है बिजनेस

रेस्टोरेंट से जुड़े लोगों का थोड़ा बहुत कारोबार स्थानीय लोगों के कारण चल रहा है , अगर यह क्षेत्र भी पूरी  तरफ से बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों पर निर्भर होता तो मुश्किलें और ज्यादा हो सकती थीं.

वेलकम रेस्टोरेंट के मालिक  राजेंद्र सिंह कहते हैं कि हमारी कुर्सियां कभी ऐसे खाली नही रहती थीं , रेस्टोरेंट के बाहर भी भीड़ होती थी.

जब मार्केट खुलती है तो थोड़े बहुत लोग आते हैं. कोरोना से पहले भरण पोषण होता था. अब सब अव्यवस्थित हो गया है. ये सीजन का टाइम है , इस समय अच्छा चलता था लेकिन इस बार ऐसा नही है. मुनाफा निकालना तो दूर है बस नुकसान ना हो इसकी कोशिश चलती है हर रोज.

उत्तराखंड में कोरोना महामारी को रोकने के लिए वीकेंड कर्फ्यू अब भी जारी है साथ ही दुकानें , फल सब्जी के ठेले इत्यादि शाम 6 बजे के बाद बंद हो जाते हैं. महामारी से उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था आहत है, और हम बस अब उम्मीद ही कर सकते हैं कि जल्द से जल्द लोगों का काम धंधा वापस पटरी पर आए और उन्हें मुहाफा हो.

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