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उत्तराखंड: OBC आरक्षण पर आयोग ने सीएम धामी को सौंपी रिपोर्ट, 7499 ग्राम पंचायतों में ओबीसी आरक्षण तय!

CM Dhami: उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण दिए जाने को लेकर आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट पर सरकार जल्द बड़ा फैसला ले सकती है.

Uttarakhand News: उत्तराखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण दिए जाने की प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है. राज्य सरकार द्वारा गठित एकल सदस्यीय समर्पित आयोग के अध्यक्ष बीएस वर्मा ने गुरुवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस रिपोर्ट में 2011 की जनगणना के आधार पर पंचायतों में ओबीसी आबादी के अनुपात के अनुसार आरक्षण तय किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, जिन ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों में ओबीसी की आबादी अधिक है, वहां आरक्षण का प्रतिशत भी ज्यादा होगा. वहीं, जहां ओबीसी जनसंख्या कम है, वहां उनके लिए आरक्षित सीटों की संख्या भी कम होगी. आयोग ने राज्य की 7499 ग्राम पंचायतों, 358 जिला पंचायत वार्डों, 89 क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के पदों और 2974 क्षेत्र पंचायत वार्डों के लिए ओबीसी आरक्षण की सिफारिश की है.

रिपोर्ट सौंपने के दौरान कैबिनेट मंत्री भी रहे मौजूद
गौरतलब है कि यह आयोग की तीसरी रिपोर्ट है. इससे पहले, 14 अगस्त 2022 को आयोग ने हरिद्वार जिले के लिए अपनी पहली रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इस बार की रिपोर्ट में शेष 12 जिलों की ग्राम पंचायतों के आरक्षण का निर्धारण किया गया है. आयोग की इस रिपोर्ट पर सरकार की मंजूरी मिलने के बाद ओबीसी आबादी को ध्यान में रखकर आरक्षण दिया जाएगा.

रिपोर्ट सौंपने के दौरान कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, गणेश जोशी, राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, विधायक खजानदास, सविता कपूर, बृजभूषण गैरोला, सचिव पंचायतीराज चन्द्रेश यादव, निदेशक पंचायतीराज निधि यादव, अपर सचिव पंचायतीराज पन्ना लाल शुक्ला, सदस्य सचिव डीएस राणा और उप निदेशक मनोज कुमार तिवारी सहित कई अधिकारी उपस्थित रहे.

रिपोर्ट स्वीकार करने पर ओबीसी वर्ग को मिलेगा लाभ
आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, लेकिन इसे लागू करने का अंतिम निर्णय राज्य सरकार को लेना है. यदि सरकार इस रिपोर्ट को स्वीकार करती है, तो आगामी पंचायत चुनावों में ओबीसी वर्ग को तय संख्या में आरक्षित सीटें मिलेंगी. रिपोर्ट में ओबीसी आरक्षण की गणना 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर की गई है. चूंकि 2021 की जनगणना अभी तक पूरी नहीं हुई है, इसलिए आयोग को पुराने आंकड़ों पर ही निर्णय लेना पड़ा.

राज्य में हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी 12 जिलों की ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 27 नवंबर 2024 को समाप्त हो गया था. क्षेत्र पंचायतों का कार्यकाल 29 नवंबर को और जिला पंचायतों का कार्यकाल 1 दिसंबर को समाप्त हुआ था. इन पंचायतों के चुनाव 2019 में हुए थे. हरिद्वार जिले में पंचायत चुनाव 2022 में संपन्न हुआ था, इसलिए वहां की पंचायतें अभी कार्यरत हैं. वर्तमान में पंचायत प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में है. 

सरकार को रिपोर्ट पर लेना होगा जल्द फैसला
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पंचायतों में ओबीसी आरक्षण की स्थिति का अध्ययन करने और उसके लिए उपयुक्त व्यवस्था बनाने के उद्देश्य से एकल सदस्यीय समर्पित आयोग का गठन किया था. इस आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या, उनके सामाजिक-आर्थिक हालात और पंचायतों में उनके प्रतिनिधित्व की स्थिति का आकलन करे और अपनी सिफारिशें दे.

अब जब आयोग की रिपोर्ट सरकार को मिल गई है, तो सरकार इस पर अंतिम निर्णय लेगी. अगर इस रिपोर्ट को मंजूरी मिलती है, तो जल्द ही पंचायत चुनावों की घोषणा हो सकती है. यदि सरकार रिपोर्ट में कुछ बदलाव चाहती है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा. पंचायत चुनावों में देरी से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए सरकार पर जल्दी निर्णय लेने का दबाव है.

OBC वर्ग के लोगों ने रिपोर्ट का समर्थन किया
ओबीसी समुदाय से जुड़े संगठनों ने इस रिपोर्ट को सकारात्मक कदम बताया है. उनका कहना है कि यदि इस रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण लागू किया जाता है, तो पंचायतों में ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और उन्हें विकास योजनाओं में अधिक भागीदारी का मौका मिलेगा. हालांकि, कुछ संगठनों का यह भी मानना है कि 2011 की जनगणना पुरानी हो चुकी है और नए आंकड़ों के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए था.

उत्तराखंड की 7499 ग्राम पंचायतों में ओबीसी आरक्षण को लेकर अब तस्वीर साफ हो गई है. आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है और अब सरकार को इस पर निर्णय लेना है. यदि रिपोर्ट को स्वीकार किया जाता है, तो आगामी पंचायत चुनावों में ओबीसी समुदाय को जनसंख्या अनुपात के आधार पर आरक्षण मिलेगा. इससे पंचायतों में ओबीसी प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और सामाजिक संतुलन स्थापित करने में मदद मिलेगी. अब सभी की नजरें सरकार के फैसले पर टिकी हैं.

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