आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को मायावती ने क्यों दिखाया बाहर का रास्ता? सामने आई ये वजह
UP Politics: बसपा चीफ मायावती ने अपने समधी और आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब इसकी वजह सामने आ रही है.

UP Politics: बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ और मेरठ के नेता नितिन सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है. सूत्रों की मानें तो पिछले छः महीने से बहन जी अपने समधी और पार्टी नेता अशोक से काफी नाराज बताई जा रही थीं. इसके पीछे पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि शादी के बाद से आकाश के ससुर की महत्वाकांक्षा काफ़ी बढ़ गई थी और वो अपने अधिकार क्षेत्र से इतर भी पार्टी में हस्तक्षेप करने लगे थे.
कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भी जिन लोगों की पैरवी कर उन्होंने टिकट दिलवाया वो भी हारे और बाद में पार्टी छोड़कर भी चले गये या पार्टी के अंदर रहकर पार्टी का नुक़सान करने में लगे रहे. इसके साथ ही डॉक्टर अशोक लखनऊ में BSP के दूसरे पॉवर सेंटर बन रहे थे.इनके घर बसपा नेताओं के आने जाने और पैरवी करने वालों की संख्या भी बढ़ने लगी थी. धीरे धीरे इन सभी बातों की जानकारी मायावती तक पहुंच रही थी.
सूत्रों की मानें तो मायावती ने सिद्धार्थ को दिल्ली बुलाकर अपने हद में रहने की हिदायत भी दी थी लेकिन वो इससे बाज नहीं आ रहे थे. पार्टी में मायावती के बाद सतीश मिश्रा और दूसरे कद्दावर नेताओं को भी सिद्धार्थ का ये व्यवहार हजम नहीं हो रहा था. मायावती ने अपने भाई आनंद को भी इस बात को लेकर आगाह किया था कि पार्टी के सिद्धार्थ की वजह से पार्टी के दूसरे बड़े नेता घुटन महसूस कर रहे हैं. लेकिन बार-बार समझाने बुझाने के बाद जब सिद्धार्थ पर इन बातों का असर नहीं हुआ तो मायावती ने आज अपने चिर परिचित अन्दाज में डॉक्टर को बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसके बाद पार्टी हल्के में सन्नाटा पसरा हुआ है.
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अशोक सिद्धार्थ का सियासी सफर कैसा?
अशोक सिद्धार्थ मायावती के बेहद करीबी और खास माने जाते रहे हैं. वह फर्रुखाबाद स्थित कायमगंज के निवासी हैं. मायावती के कहने पर ही उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और बसपा में शामिल हो गए थे.
अशोक ने मेडिकल कॉलेज झांसी से आर्थोमेट्री में डिप्लोमा किया था. डॉ. सिद्धार्थ का जन्म 5 जनवरी 1965 को हुआ था. वह सरकारी सेवा के दौरान वामसेफ में विधानसभा, जिला व मंडल अध्यक्ष पदों पर रह चुके हैं. उन्होंने वर्ष 2007 में जनपद कन्नौज के गुरसहायगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनाती के दौरान इस्तीफा दे दिया था और बसपा में शामिल हो गए थे. पार्टी की ओर से वह पहली बार 2009 तथा दूसरी बार 2016 में एमएलसी रहे हैं.
वह बसपा में कानपुर-आगरा जोनल कोऑर्डिनेटर जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी रहे हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय सचिव का पद के अलावा कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल सहित पांच राज्यों का प्रभार भी संभाला है. वहीं, डॉ. सिद्धार्थ की पत्नी सुनीता सिद्धार्थ वर्ष 2007 से लेकर 2012 तक राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं.
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