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मोदी की सबसे बड़ी जीत, अमित भाई शाह की नीति के आगे सारे नेता फेल
भाजपा की शानदार जीत ने सियासत के तमाम समीकरणों को बदल दिया है। करिश्माई प्रदर्शन के पीछे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अहम भूमिका मानी जा रही है। उनके संगठन कौशल से पार्टी लगातार नई उपलब्धि हासिल कर रही है।
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लखनऊ, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी की चमत्कारिक जीत से विपक्ष और विरोधी सब हैरान है। इस विजय के बाद मोदी एक बार फिर महानायक बनकर उभरे हैं। इस करिश्माई जीत के पीछे एक नायक जिसका जिक्र किये बिना राजनीति ये अध्याय पूरा नहीं हो सकता। हम बात कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की। अगर 2014 की मोदी की जीत आंखें खोलने वाली थी तो 2019 की जीत आंखें फाड़ देने वाली है।
अमित शाह को मौजूदा दौर का चाणक्य कहा जाता है। ये उपमा उन्हें यूं ही नहीं दी गई है। इसके पीछे भाजपा का सम्मोहित करने वाला प्रदर्शन है। शाह के संगठन कौशल ने गैरकांग्रेस वाद की जमीन तैयार की और नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की शपथ ली। भले ही मोदी देश दुनिया की खबरों की सुर्खियां में हों, लेकिन पर्दे के पीछे रहनेवाले सूत्रधार अमित शाह की नीतियां और अंतिम कार्यकर्ता तक पहुंच उन्हें औरों से अलग बनाती है।
बेहतरीन रणनीतिकार
अमित शाह संगठन को लेकर बेहद गंभीर माने जाते हैं। उनका अनुशासन सेना की तरह है। भाजपा के कार्यकर्ता भी इसी तर्ज पर काम करते हैं। वे शुरु से ही बूथ मैनेजमेंट के मास्टर माने जाते हैं। गुजरात हो या 2014 के लोकसभा चुनाव, इस हुनर के चलते अमित शाह ने अपना लोहा मनवाया। पार्टी ने शाह के कौशल के भांपते हुये उन्हें लगातार नई जिम्मेदारियां दीं।
लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण राज्य है। अमित शाह के पार्टी संगठन और बूथ प्रबंधन की व्यूह रचना से यूपी में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और 80 में से 73 सीटें जीतीं। इस शानदार जीत ने अमित शाह को राजनीति का सबसे बड़ा योद्धा बना दिया।
उनके प्रभारी रहते हुए महज दो साल में पार्टी का वोट शेयर राज्य में करीब ढाई गुना बढ़ गया। 2014 के चुनावों में शाह भाजपा के चुनावी कमेटी के सदस्य थे और उन्होंने जनसंपर्क, बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचने और नए वोटरों को जोड़ने को जिम्मेदारी दी गई थी।
पोल एजेंट से पार्टी अध्यक्ष तक
अमित शाह गुजराती हैं, लेकिन उनका जन्म मुंबई में हुआ था। अहमदाबाद में वह आरएसएस सदस्य बने। एबीवीपी के लिए काम किया और 1984-85 में भाजपा में औपचारिक तौर पर शामिल हुये। पहली बार पार्टी ने उन्हें अहमदाबाद के नारायणपुर वार्ड में पोल एजेंट बनाया था। पोल एजेंट रहने के दौरान ही उन्होंने राजनीति का गणित समझना शुरू कर दिया था।
इसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और फिर गुजरात भाजपा के उपाध्यक्ष तक वह एक के बाद एक सीढ़ियां चढ़ते गए। जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं तक उनकी पहुंच और उनसे निजी तौर पर जुड़े रहने के कारण उनकी छवि बाकी नेताओं से अलग बनी। जब गुजरात में मोदी युग शुरू हुआ तो उन्हें गृह मंत्रालय दिया गया।
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