UP: इलाहाबाद HC का निचली अदालतों के अधिकारियों को निर्देश, अमर्यादित शब्दों के प्रयोग से करें परहेज
UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने आदेशों और गवाहों के बयानों में अनुचित या अमर्यादित शब्दों के प्रयोग से परहेज करें.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने आदेशों और गवाहों के बयानों में अनुचित या अमर्यादित शब्दों के प्रयोग से परहेज करें. न्यायमूर्ति हरवीर सिंह की पीठ ने यह निर्देश विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) वाराणसी के एक आदेश पर टिप्पणी करते हुए दिया. कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी जिला जजों को भेजने का निर्देश भी दिया है, ताकि भविष्य में इसका अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके.
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) और हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) दोनों ही पहले भी यह निर्देश दे चुके हैं कि न्यायिक आदेशों और बयान दर्ज करते समय “शालीन और मर्यादित भाषा” का उपयोग होना चाहिए. न्यायिक अधिकारी का आचरण और भाषा उसकी गरिमा का प्रतीक होती है. न्यायमूर्ति ने कहा कि अभद्र या अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल न केवल न्यायिक गरिमा के विपरीत है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को भी प्रभावित करता है.
वाराणसी के विशेष न्यायाधीश के आदेश पर HC की टिप्पणी
मामला अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक प्रकरण से जुड़ा है. वाराणसी के विशेष न्यायाधीश ने एक आदेश और एक गवाह के बयान में असम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया था. इसी आधार पर उच्च न्यायालय ने यह व्यापक निर्देश जारी किए हैं. कोर्ट ने कहा कि प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारी ऐसी भाषा के उपयोग से बचें और अपने आदेशों में पद की मर्यादा झलकनी चाहिए.
पुनरीक्षण याचिका पर अदालत ने दी अपनी राय
कोर्ट विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी) अधिनियम द्वारा दर्ज शिकायत को खारिज करने के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने पाया कि गवाहों के बयानों में पर्याप्त सुसंगतता नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया आरोप सिद्ध हों. अन्य गवाहों ने शिकायतकर्ता के कथनों का समर्थन नहीं किया था, इसलिए निचली अदालत का आदेश सही पाया गया.
आखिर पूरा मामला क्या है?
शिकायतकर्ता संत्रीपा सिंह ने आरोप लगाया था कि विपक्षी पक्ष ने उसे तमंचा दिखाकर मंगलसूत्र छीन लिया था और उसके खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम की धाराओं में मामला दर्ज होना चाहिए था. लेकिन वाराणसी की विशेष अदालत ने 7 अगस्त 2024 को धारा 203 सीआरपीसी के तहत शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी कि आरोप साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य मौजूद नहीं है.
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका को निरस्त कर दिया, साथ ही सभी न्यायिक अधिकारियों को भविष्य में भाषा की मर्यादा बनाए रखने का सख्त निर्देश दिया.
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Source: IOCL

























