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Udaipur: उदयपुर की सुरक्षा के लिए महाराणाओं ने बनाए थे 5 दरवाजे, शहर से 15 KM दूर आज भी हैं मौजूद

Mewar capital Udaipur History: उदयपुर की बसावट समुद्रतल से लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर है. अरावली पर्वत श्रृंखला से चारों और घिरा होने के कारण उदयपुर सबसे सुरक्षित स्थान रहा है.

Udaipur News: झीलों की नगरी उदयपुर इतिहास और खूबसूरती के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. अरावली पर्वत श्रृंखला से चारों ओर घिरा होने के कारण उदयपुर सबसे सुरक्षित स्थान रहा. मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की सुरक्षा के लिए महाराणाओं ने चारों दिशाओं में 5 ऐतिहासिक दरवाजे बनाए थे. जनार्दन राय नागर विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी के साहित्य संस्थान की शोध पत्रिका के अनुसार प्राचीन उदयपुर शहर और राजमहल अण्डाकार (उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व) घाटी में बसाए गए हैं. उदयपुर की बसावट समुद्रतल से लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर है.

मेवाड़ की राजधानी उदयपुर के चारों ओर ऊंची पहाड़ियों को महाराणाओं ने बाहरी सुरक्षा के लिए दीवार की तरह इस्तेमाल किया. 300-400 मीटर तक ऊंची पहाड़ियों की श्रृंखला होने से उदयपुर बेहद सुरक्षित स्थान था. पहाड़ी श्रृंखलाओं में उत्तरी पूर्वी और दक्षिणी भाग में दर्रे को बंद कर सुरक्षा को मजबूत किया गया. घसियार, चीरवा का घाटा (उत्तर में), देबारी मल्लों का गुड़ा (पूर्व में) और केवड़े की नाल (दक्षिण में) नाम से प्रसिद्ध प्रवेश द्वार राजमहलों से लगभग 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. अर्थात् सिसोदिया राजवंश के राजाओं ने 16वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य उदयपुर को राजधानी और नागरिकों की सुरक्षा के लिए अरावली की पहाड़ियों को सुरक्षा दीवार के तौर पर इस्तेमाल किया.

घसियार प्रवेश द्वार

घसियार प्रवेश द्वार वर्तमान उदयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में घसियार नामक गांव में है. इसके आस पास किले की सुरक्षा दीवार अब नष्ट हो चुकी है. नजदीक पहाड़ियों में अभी भी प्राचीन सुरक्षा दीवार के अवषेश नजर आते हैं. इसकी निर्माण शैली शहर कोट के दीवार के समान है. प्रवेश द्वार के पास श्रीनाथ का प्राचीन मंदिर है. मंदिर के चारों ओर सुरक्षा दीवार भी बनाई गई है. प्रवेश द्वार के निकट से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 76 गुजरता है.

चिरवा का घाटा प्रवेश द्वार

उदयपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर उत्तर में चीरवे के घाटे में एक मजबूत प्रवेश द्वार है. इसके दोनों और दीवार अब नष्ट हो चुकी है. प्रवेश द्वार को संरक्षित करने की आवश्यकता है. राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 08 प्रवेश द्वार के नीचे सुरंग बनाया गया है. प्रवेश द्वार पर उकेरी गई सूचना के अनुसार महाराणा कर्ण सिंह (1620-1628 ईस्वी) और महाराणा जगत सिंह (1620-1652 ईस्वी) के शासन काल में निर्मित किया गया. इस स्थल पर मुगल शासक औरंगजेब के साथ मेवाड़ की सेनाओं का युद्ध हुआ. शहरकोट के अन्य प्रवेश द्वारों की तरह ये भी बेहद मजबूत और लगभग 8 मीटर ऊंचा है. प्रवेश द्वार की मोटाई 6 मीटर और चौड़ाई शहरकोट के प्रवेश द्वारों की तरह 3.80 मीटर है. लकड़ी के दरवाजे को अन्दर से बन्द करने के लिए विशाल वर्गाकार भागल लगाई गई होगी. इसके लिये प्रवेश द्वार के दोनों ओर 25x25 सेमी वर्गाकार आलिये बने हुये हैं. 


Udaipur: उदयपुर की सुरक्षा के लिए महाराणाओं ने बनाए थे 5 दरवाजे, शहर से 15 KM दूर आज भी हैं मौजूद

देबारी प्रवेश द्वार

उदयपुर शहर से लगभग 12 किलोमीटर पूर्व में बड़ा मगरे के दर्रे पर एक मजबूत प्रवेश द्वार है, जिसे देबारी कहा जाता है. यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 76 गुजरता है. कुछ विद्वानों ने इसे देववारी के नाम से भी उद्धृत किया है. प्राचीन समय में देवड़ा राजपूतों का निवास था. इसलिए इसे देवड़ा बारी भी कहा जाता है. इस ऊंचे प्रवेश द्वार के दोनों ओर किले की मजबूत कपिशष युक्त दीवारों के अवशेष हैं. पोल पर दीवार की चौड़ाई 5.50 मीटर है. दक्षिणी भाग की दीवार उदयपुर-चित्तौड़ राजमार्ग निर्माण के कारण नष्ट कर दी गई है, जबकि उत्तरी दीवार पहाड़ी में लगभग 500 मीटर तक बची हुई है. दीवार में प्रवेश द्वार के निकट अन्दर की ओर से सीढियां बनी हुई हैं, जो दीवार के ऊपर तक पहुंचाती हैं. दीवार और प्रवेश द्वार को तराशे विशाल पत्थरों से बनाया है और उसमें मजबूती के लिए सूख और चूने का मिश्रण लगाया गया है. प्रवेश द्वार का निर्माण महाराणा उदय सिंह ने किया लेकिन शहजादा खुर्रम ने प्रवेश द्वार को गिरवा दिया था. इस प्रवेश दीवार को अकबर और जहांगीर ने भी नुकसान पहुंचाया. महाराणा राज सिंह प्रथम ने दोबारा इसे बनवाकर इसका आकार बड़ा किया और किवाड़ लगवाकर मजबूती प्रदान की. 


Udaipur: उदयपुर की सुरक्षा के लिए महाराणाओं ने बनाए थे 5 दरवाजे, शहर से 15 KM दूर आज भी हैं मौजूद

भल्लो का गुड़ा प्रवेश द्वार

भल्लो का गुड़ा प्रवेश द्वार बड़ा मगरा के दक्षिणी भाग में पहाड़ी की पूर्वी ढलान पर लगभग 10 मीटर ऊंचा है. जर्जर अवस्था होने के कारण कभी भी ढह सकता है. इसका ऊपरी भाग आंशिक रूप से नष्ट हो चुका है. प्रवेश द्वार में लगे लकड़ी के दरवाजे भी नष्ट हो चुके हैं. इस द्वार को दोनों ओर से गोलाकार बुर्ज बनाकर मजबूती प्रदान की गई है. यह अर्धतराशे व अनगढ़ पत्थरों से निर्मित है. यह प्रवेश द्वार एक छोटे किले का हिस्सा था, जो उत्तर-दक्षिण में लगभग सात सौ मीटर लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम में दो सौ मीटर चौड़ा था. किले के दक्षिणी छोर से पहाड़ी के ऊपर लगभग पन्द्रह सौ मीटर लम्बी एक दीवार थी. किले की पूर्वी तथा दक्षिणी दीवार में बुर्ज थे. इस किले को भी पहाड़ी के दर्रे में निर्मित किया गया ताकि कोई बाहरी हमलावर असानी से बस्ती के अन्दर प्रवेश न कर सके. 

केवड़े की नाल प्रवेश द्वार

उदयपुर शहर से 15 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में और बड़ा मगरा के पश्चिम में केवड़े की नाल है. केवड़े की नाल में पहाड़ी से लगभग 2 किलोमीटर नीचे उतर कर एक प्रवेश द्वार था, जिसके मात्र अवशेष रह गए हैं. प्रवेश द्वार राजधानी को दक्षिणी भाग से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया. केवड़े की नाल में घना जंगल है. इस नाल में साल भर ठंडा पानी बहता है. 

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