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Shiv Sena MLAs Row: शिवसेना विधायकों की अयोग्यता पर आ गया फैसला, जानें- किसे राहत, किसे झटका?
Shiv Sena MLA Disqualification: महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों के योग्य या अयोग्य पर फैसला आ चुका है. जानिए राहुल नार्वेकर के इस फैसले से किसे झटका लगा है और किसे राहत मिली है.
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Shiv Sena MLA Disqualification Verdict: शिवसेना विधायकों की अयोग्यता को लेकर विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपना फैसला सुना दिया है. राहुल नार्वेकर ने उद्धव गुट को बहुत बड़ा झटका दिया है. स्पीकर नार्वेकर का फैसला शिंदे गुट के पक्ष में आया है. राहुल नार्वेकर ने विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी है. उद्धव गुट की मांग को स्पीकर ने खारिज कर दिया है. विधानसभा अध्यक्ष ने अपने फैसले में बताया कि, 'एकनाथ शिंदे गुट ही असली शिवसेना है.'
शिवसेना का 1999 का संविधान ही मान्य
राहुल नार्वेकर ने फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शिवसेना का 1999 का संविधान ही मान्य है. EC रिकॉर्ड में सीएम शिंदे गुट असली पार्टी है. मैंने EC के फैसले को ध्यान में रखा है. मैं EC के रिकॉर्ड से बाहर नहीं जा सकता. उद्धव गुट दलील में दम नहीं है. शिवसेना अध्यक्ष को शक्ति नहीं है. शिंदे को नेता पद से नहीं हटा सकते थे. उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे को नहीं हटा सकते थे और उद्धव ठाकरे अकेले निर्णय नहीं ले सकते थे. कार्यकारिणी की बैठक नहीं बुलाई गई. बहुमत का फैसला लागू होना चाहिए था. 2018 का फैसला संविधान के अनुसार नहीं था.'
क्या बोले राहुल नार्वेकर?
ABP माझा के अनुसार, राहुल नार्वेकर ने कहा, "पार्टी के संविधान को लेकर दोनों गुटों के बीच मतभेद की शिकायत चुनाव आयोग में दाखिल की गई है. संविधान का आधार यह बताने के लिए लिया गया है कि असली शिवसेना कौन है. चुनाव आयोग का फैसला पार्टी के संविधान पर आधारित है. 2018 में संविधान में जो संशोधन हुआ, उसका पूरा विचार पार्टियों को था. उस वक्त जो संविधान संशोधन हुआ, वह सभी की सहमति से हुआ है. लेकिन चूंकि चुनाव आयोग के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है इस संबंध में, इस संविधान को ध्यान में नहीं रखा जाएगा, बल्कि 1999 के पुराने संविधान को ध्यान में रखा जाएगा."
2022 में शिवसेना बंट गई थी
महाराष्ट्र की राजनीति के लिए आज बड़ा दिन है. शिंदे के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के चलते जून 2022 में शिवसेना विभाजित हो गई थी. उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाने की समय-सीमा 31 दिसंबर, 2023 तय की थी, लेकिन उससे कुछ दिन पहले 15 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने अवधि को 10 दिन बढ़ाकर फैसला सुनाने के लिए 10 जनवरी की नयी तारीख तय की गई थी.
समझिये विद्रोह की पूरी कहानी
जून 2022 में, शिंदे और कई अन्य विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसके कारण शिवसेना में विभाजन हो गया और महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई थी. महा विकास आघाडी में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस भी शामिल थी. शिंदे और ठाकरे गुटों द्वारा दलबदल रोधी कानूनों के तहत एक दूसरे के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए याचिकाएं दायर की गईं. राहुल नार्वेकर ने कहा है कि, ‘‘फैसले का महत्वपूर्ण हिस्सा आज सुनाया जाएगा, जबकि विस्तृत आदेश बाद में दोनों समूहों को दिया जाएगा.’’
जब उद्धव गुट को लगा था झटका
दोनों गुटों के पदाधिकारियों ने कहा कि विधानसभाध्यक्ष के प्रतिकूल फैसले की स्थिति में वे सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे. जून 2022 में विद्रोह के बाद शिंदे भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे. पिछले साल जुलाई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अजित पवार गुट उनकी सरकार में शामिल हो गया था. निर्वाचन आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को 'शिवसेना' नाम और ‘तीर धनुष’ चुनाव चिह्न दिया, जबकि ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को शिवसेना (यूबीटी) नाम और चुनाव चिह्न ‘जलती हुई मशाल’ दिया गया.
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