'CJI की टिप्पणी से क्या हवा बदल जाएगी?' पटाखा बैन को लेकर दिए बयान पर संजय राउत का सवाल
Sanjay Raut on CJI: मुख्य न्यायाधीश के पटाखों पर प्रतिबंध संबंधी टिप्पणी पर शिवसेना यूबीटी ने 'सामना' में प्रतिक्रिया दी. संजय राउत ने पूछा कि क्या टिप्पणी से हवा बदलेगी?

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने स्वच्छ हवा के मद्देनजर पटाखों पर पाबंदी लगाने को लेकर बड़ी टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि पटाखों पर बैन केवल दिल्ली में ही क्यों हो? क्या बाकी शहरों में लोगों को साफ हवा का अधिकार नहीं? सीजेआई के इस बयान पर अब उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी की प्रतिक्रिया आई है.
शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में संजय राउत ने सीजेआई भूषण गवई के सामने कई सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने लिखा, "चीफ जस्टिस भूषण गवई ने राय व्यक्त की है कि पटाखों ने प्रदूषण की गंभीर समस्या पैदा कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है. इस पर चीफ जस्टिस की महत्वपूर्ण राय है कि स्वच्छ हवा का अधिकार केवल दिल्ली के नागरिकों तक ही सीमित क्यों होना चाहिए? देश के हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार है."
'टिप्पणी करने से देश की हवा बदल जाएगी?'- सामना संपादकीय
संजय राउत का कहना है कि चीफ जस्टिस ने कुछ भी गलत नहीं कहा, लेकिन क्या ऐन दिवाली के पहले चीफ जस्टिस द्वारा स्वच्छ हवा के अधिकार पर टिप्पणी करने से देश की हवा बदल जाएगी? मूल रूप से देश की हवा, पानी, आकाश और जमीन अब तानाशाहों के हाथों में है और तानाशाह हवा की दिशा, नदियों के प्रवाह को तय करते हैं. समान न्याय, संविधान के अनुसार न्याय यह अधिकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने प्रत्येक भारतीय को दिया था, लेकिन क्या यह न्याय आज वास्तव में दिया जा रहा है? न तो स्वच्छ हवा है और न ही निष्पक्ष न्याय.
'क्या गरीबों को आजीविका का दूसरा जरिया देगा सुप्रीम कोर्ट?'
संजय राउत ने तंज कसते हुए कहा कि जज आते हैं और प्रवचन झाड़कर चले जाते हैं. ऐसे में पटाखों पर प्रतिबंध और स्वच्छ हवा के अधिकार का और क्या होगा? देश भर में दिवाली के त्योहार पर पटाखे फोड़े जाते हैं. उत्सवों और विजय जुलूसों में पटाखों का इस्तेमाल होता है. देश के लाखों लोग पटाखा उद्योग पर निर्भर हैं. क्या पटाखा उद्योग पर प्रतिबंध लगाकर सुप्रीम कोर्ट सरकार को इन गरीब मजदूरों की आजीविका के लिए कोई योजना देने जा रहा है?
'केवल पटाखों से खराब नहीं होता पर्यावरण'
सामना में आगे लिखा गया है कि, "दूसरी बात, हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि केवल पटाखे ही प्रदूषण का कारण हैं. पिछले 10 साल में महाराष्ट्र समेत देश भर में व्यापारिक कारणों से वनों और पहाड़ों की कटाई हुई है, उतनी तो ब्रिटिश काल में भी नहीं हुई होगी. चंद्रपुर, गढ़चिरौली आदि महाराष्ट्र के कई हिस्सों में वैध और अवैध रूप से खनन उद्योग चल रहा है और ईमानदारी के साथ ऊपर से नीचे तक हफ्ताबाजी चल रही है. जो तबाही मचाई जा रही है, वह सरकारी संरक्षण के बिना संभव नहीं है."
Source: IOCL

























