राज ठाकरे Vs उद्धव ठाकरे की वो कहानी, जो सबसे छिपाई गई!
Uddhav Raj Thackeray Alliance: बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टी में गठबंधन में हो गया है. 20 साल पहले राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी थी.

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब एक हैं. उद्धव की शिवसेना और राज की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के लोग अब एक हैं. इसकी वजह बीएमसी का वो चुनाव, जिसमें सियासी महत्वाकांक्षा पाले दोनों भाइयों की जीत पर करीब 74 हजार करोड़ रुपये का दांव है क्योंकि बीएमसी का यही सालाना बजट है. दोनो भाइयों के एक होने की खबर ने महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी सुर्खियां बटोरी हैं. लेकिन ऐसी ही सुर्खियां करीब 20 साल पहले भी अखबारों के पहले पन्नों, मैगजीन की कवर स्टोरी और टीवी चैनल के हर बहस-मुबाहिसे में भी शामिल की गई थीं जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे बनाने का ऐलान किया था.
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच खाई की असली कहानी!
तब भी इस खबर को राज ठाकरे की सियासी महत्वाकांक्षा के तौर पर ही पेश किया गया था, जो अधूरा सच था. क्योंकि पूरे सच में परिवार के उस अहम किरदार का नाम था, जिसका नाम लिए बिना ही राज ठाकरे ने सब कुछ बयान कर दिया था. आखिर क्या थी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच पनपी हुई खाई की असली कहानी, कौन था वो किरदार जिसने दो भाइयों को दूर करने में अहम भूमिका निभाई थी और आखिर कैसे परिवार में पनपी इस खाई को भी पहले परिवार के अंदर ही भरा गया, जिसने दोनों भाइयों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया?
27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे ने छोड़ी शिवसेना
27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे के घर के बाहर हजारों लोग इकट्ठा थे. राज ठाकरे ने माइक पकड़ा और बोले, "मेरा झगड़ा मेरे विट्ठल के साथ नहीं है बल्कि उनके आसपास के पुजारियों के साथ है. कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC नहीं समझते हैं. इसलिए मैं शिवसेना के नेता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं. बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे."
फिर एक और तारीख 18 दिसंबर 2005 आई. 36 साल के राज ठाकरे शिवाजी पार्क जिमखाना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. उन्होंने कहा, "मैंने तो सिर्फ इज्जत मांगी थी, लेकिन बदले में मुझे मिला तो सिर्फ तिरस्कार और अपमान." इस बयान के साथ ही राज ठाकरे ने बाल ठाकरे की बनाई शिवसेना से अपने रिश्ते खत्म कर लिए और एक नई पार्टी बनाने की राह पर चल पड़े.
लेकिन इस अलग रास्ते की शुरुआत उसी तारीख से हो गई थी, जिस तारीख को राज ठाकरे ने राजनीति में कदम रखा था. वो 1989 का साल था, जब राज ठाकरे ने शिवसेना की राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरू की. उसी साल उन्हें शिवसेना की यूथ विंग भारतीय विद्यार्थी परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन ये वही साल भी था, जब बाल ठाकरे के घर में बहू आईं.

रश्मि ठाकरे हुआ करती थीं रश्मि पाटनकर
उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे कभी रश्मि पाटनकर हुआ करती थीं. एलआईसी में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करती थीं. रश्मि को रश्मि पाटनकर से रश्मि ठाकरे बनाने में भी राज ठाकरे के परिवार का अहम योगदान था. क्योंकि एलआईसी में ही ठाकरे परिवार की एक और लड़की काम करती थी, उनका नाम जयवंती ठाकरे था.
जयवंती और रश्मि पाटनकर की कैसे हुई दोस्ती?
जयवंती, बाला साहेब ठाकरे के बड़े भाई श्रीकांत ठाकरे की बेटी और राज ठाकरे की सगी बहन थीं. काम करने के दौरान ही जयवंती और रश्मि की दोस्ती हो गई. घर आना-जाना भी हो गया. इस दौरान जयवंती ने अपनी दोस्त रश्मि को अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से मिलवाया, जो तब एक फोटोग्राफर हुआ करते थे. अपनी एक एडवरटाइजिंग एजेंसी चलाते थे. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी और 13 दिसंबर 1989 को उद्धव ठाकरे ने रश्मि पाटनकर से शादी कर ली.
परिवार के अंदर बहुत कुछ चल रहा था!
वक्त बीता. राज ठाकरे राजनीति में सक्रिय रहे और उद्धव ठाकरे अपनी फोटोग्राफी और एडवरटाइजिंग एजेंसी में व्यस्त रहे. परिवार के शीर्ष पर निर्विवाद तौर पर बाल ठाकरे मौजूद थे ही. कहीं कोई गड़बड़ नहीं दिखती थी. लेकिन ये सब ऊपर-ऊपर ही था. परिवार के अंदर बहुत कुछ ऐसा चल रहा था, जिसकी खबर बाहर आने तो लगी थी लेकिन कोई उसकी बात नहीं कर रहा था. इसकी कुछ वाजिब वजहें भी थीं, जिन्हें समझने के लिए आपको बाल ठाकरे और उनके पूरे परिवार को समझना पड़ेगा.
बाल ठाकरे के परिवार को जानें
बाल ठाकरे कुल दो भाई और 6 बहन थे. अभी हम सिर्फ दो भाइयों की बात करते हैं. बाल ठाकरे और उनके भाई श्रीकांत ठाकरे की. श्रीकांत ठाकरे के दो बेटे राज ठाकरे और रमेश ठाकरे हैं. राज ठाकरे की पत्नी का नाम शर्मिला ठाकरे है.वहीं बाल ठाकरे के बेटे बिंदु माधव, जयदेव और उद्धव हैं. बिंदु माधव की 20 अप्रैल 1996 को एक सड़क हादसे में मौत हो गई. उनकी पत्नी माधवी ठाकरे, जिनकी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी. जयदेव की पत्नी का नाम स्मिता ठाकरे हैं, जो पहले परिवार और राजनीति में दखल देती थीं. जयदेव की अपने परिवार से कभी बनी नहीं और खास तौर से बाल ठाकरे से, तो वो अलग हो गए. जयदेव पत्नी से भी अलग हो गए. लेकिन पत्नी स्मिता ठाकरे मातोश्री में ही रहती थीं.
घर की बात बाहर आ गई!
1995 के सितंबर महीने में जब बाल ठाकरे की पत्नी मीनाताई का निधन हुआ तो बाल ठाकरे की देखरेख का जिम्मा रश्मि ठाकरे ने ही उठाया. उस दौरान शिवसेना में स्मिता ठाकरे की ठीक-ठाक चलती थी और पार्टी में भी उनका दखल हुआ करता था. 1995 से 1999 के बीच शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज थी, तो उस वक्त सरकार में स्मिता ठाकरे की पकड़ हुआ करती थी. वहीं राज ठाकरे की पत्नी शर्मिला ठाकरे भी रश्मि ठाकरे के आड़े आ रही थीं. घर के अंदर सबको खबर थी कि रश्मि की शर्मिला या फिर स्मिता से बनती नहीं है. लेकिन ये बात घर के बाहर नहीं आ पाई थी. आखिर वो दिन भी आया, जब घर की बात बाहर आ गई.
वो तारीख थी 30 जनवरी 2003. उस दिन महाबलेश्वर में शिवसेना का अधिवेशन था. मंच पर बाल ठाकरे के साथ-साथ राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे भी मौजूद थे. शिवसैनिक राज ठाकरे को स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानने लगे थे, क्योंकि राज एक दशक से भी ज्यादा वक्त से बाल ठाकरे के साथ काम कर रहे थे. वहीं कुछ लोग बाल ठाकरे के बेटे उद्धव को उत्तराधिकारी मानते थे, क्योंकि उद्धव बेटे थे. हालांकि साल 2002 में जब बीएमसी के चुनाव हुए थे तो उस चुनाव प्रचार की पूरी जिम्मेदारी उद्धव ठाकरे के ही पास थी, जो अपनी एड एजेंसी का काम बंद करके, फोटोग्राफी वाला कैमरा अलमारी में रखकर पिता बाला साहेब के साथ राजनीति के गुर सीखने लगे थे.
उद्धव ठाकरे की राजनीति में कैसे जगी दिलचस्पी?
परिवार के ही लोग बताते हैं कि उद्धव में राजनीति के प्रति दिलचस्पी पत्नी रश्मि ठाकरे ने जगाई, जो तब तक बाला साहेब की तबीयत खराब रहने के बाद उनकी देख-रेख में खुद को समर्पित करके परिवार में एक अलग मुकाम हासिल कर चुकी थीं. पत्नी की इच्छा से सियासत में उतरे उद्धव ठाकरे को उनके पिता बाल ठाकरे ने 30 जनवरी 2003 को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाना तय किया. पार्टी में कोई बगावत न हो, इसके लिए बाल ठाकरे ने राज ठाकरे से ही कहा कि वो उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित करें. ऐसा ही हुआ भी. राज ठाकरे ने उद्धव के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकृत कर लिया गया.

जब राज ठाकरे ने स्वीकारा उद्धव ठाकरे का नेतृत्व
हालांकि उस बैठक के बाद जो नेशनल एग्जीक्यूटिव कमेटी घोषित हुई, उसमें राज ठाकरे को भी जगह दी गई. उस नेशनल एग्जीक्यूटिव में बाल ठाकरे के अलावा तब के लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे, सुधीर जोशी, मधुकर सरपोतदार, लीलाधर डाके, सुभाष देसाई, सतीश प्रधान, दत्ताजी नलवाड़े, प्रमोद नावलकर और दिवाकर रावते के साथ ही दोनों चचेरे भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को भी जगह दी गई. उस वक्त राज ठाकरे के पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था. मजबूरी में ही सही, उन्हें भी उद्धव ठाकरे का नेतृत्व स्वीकार करना ही पड़ा.
लेकिन 27 नवंबर, 2005 को सब कुछ बदल गया. राज ठाकरे ने उस दिन पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया. हजारों समर्थकों की मौजूदगी में राज ठाकरे ने एक भावुक भाषण दिया और कहा, "कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC नहीं समझते हैं. इसलिए मैं शिवसेना के नेता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं."
इसके बाद 15 दिसंबर, 2005 वो तारीख थी, जब राज ठाकरे की मुलाकात बाल ठाकरे से हुई. लेकिन बात बनी नहीं और राज ठाकरे ने 18 दिसंबर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में वो कह दिया, जिसने पार्टी से ज्यादा परिवार के झगड़े को चारदीवारी से बाहर ला दिया.
राज ठाकरे ने कहा, "मैने तो सिर्फ इज्जत मांगी थी, लेकिन बदले में मुझे मिला तो सिर्फ तिरस्कार और अपमान." राज ठाकरे ने अपने बयान में किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारा साफ था कि परिवार के अंदर ही सब ठीक नहीं था, पार्टी तो बाद की बात थी.
9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने बनाई अपनी पार्टी
इसके बाद साल 2006 में 9 मार्च को राज ठाकरे ने शिवाजी पार्क में अपनी नई पार्टी बनाई और नाम दिया महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना. मराठी मानुष के नाम पर बनाई गई इस पार्टी को शुरुआत में आंशिक सफलता मिली, लेकिन धीरे-धीरे करके राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र की राजनीति में कमजोर पड़ते गए.
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