गुजरात: 'आज अपने ही गांव में आजादी महसूस की', पहली बार नाई की दुकान पर बाल कटवाकर बोला दलित युवक
Gujarat News: गुजरात के बनासकांठा जिले के आलवाड़ा गांव में दलितों को पहली बार नाई की दुकानों में बाल कटवाने का अधिकार मिला. यह ऐतिहासिक बदलाव पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव पर निर्णायक विराम है.

गुजरात के बनासकांठा जिले के आलवाड़ा गांव में 7 अगस्त को इतिहास रच गया जब 24 साल के खेत मजदूर किरण चौहान गांव के नाई की दुकान में बाल कटवाने वाले पहले दलित बने. यह घटना केवल एक हेयरकट भर नहीं रही, बल्कि पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार पर जीत के तौर पर दर्ज हो गई.
लंबे संघर्ष और प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद गांव की सभी 5 नाई की दुकानें अनुसूचित जाति समुदाय के लिए खोल दी गईं. यह कदम दलित समाज के लिए असल मायने में स्वतंत्रता दिवस लेकर आया है.
अपने ही गांव में आजादी का एहसास हुआ- कीर्ति चौहान
भावुक होते हुए कीर्ति चौहान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए बयान में कहा, "मैं यहां बाल कटवाने वाली पहली दलित हूं. जब से मुझे याद है, हमें बाल कटवाने के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता था. अपने जीवन के 24 सालों में, आखिरकार मुझे अपने ही गांव में आजादी और स्वीकृति का एहसास हुआ."
पीढ़ियों से चला आ रहा भेदभाव अब खत्म
आलवाड़ा गांव की कुल 6,500 की आबादी में करीब 250 दलित परिवार रहते हैं. इन्हें दशकों से स्थानीय नाई सेवा देने से इंकार करते थे और साधारण हेयरकट के लिए भी उन्हें दूसरे गांवों जाना पड़ता था. कई बार अपनी पहचान छिपाकर बाल कटवाने जैसी मजबूरी भी सामने आती थी.
58 वर्षीय छोगाजी चौहान ने कहा, “मेरे पिता को आजादी से पहले यह अपमान सहना पड़ा और मेरे बच्चे भी आठ दशक बाद तक यही सहते रहे. आज जाकर बदलाव आया है.” बदलाव की यह प्रक्रिया महीनों चली बातचीत, सामाजिक जागरूकता और लगातार संघर्ष के बाद संभव हो सकी.
संघर्ष, प्रशासन और समाज की भूमिका
दलित समाज की मांग को स्थानीय कार्यकर्ता चेतन दाभी ने नेतृत्व दिया. उन्होंने नाई और ऊंची जातियों को समझाने की कोशिश की कि यह प्रथा असंवैधानिक और अमानवीय है. जब समझाने से बात नहीं बनी तो पुलिस और जिला प्रशासन को दखल देना पड़ा. गांव के सरपंच सुरेश चौधरी ने कहा, “एक सरपंच के रूप में मुझे इस प्रथा पर शर्म महसूस होती थी. मुझे गर्व है कि मेरे कार्यकाल में यह खत्म हुई.”
वहीं मामलतदार जनक मेहता ने बताया कि प्रशासन ने भेदभाव की शिकायतें दूर कर आपसी सहमति से समाधान कराया. नाई समुदाय भी अब बदलाव का स्वागत कर रहा है. 21 वर्षीय पिंटू नाई, जिन्होंने किरण को ऐतिहासिक हेयरकट दिया, बोले, “पहले समाज की परंपरा माननी पड़ती थी. अब बदलाव से हमें भी राहत और कारोबार में फायदा हुआ है.”
आगे और भी हैं चुनौतियां
दलित समुदाय इसे “छोटा कट, बड़ा बदलाव” बता रहा है. यह सामाजिक बराबरी की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है. हालांकि अभी भी कुछ भेदभाव की परतें बची हुई हैं. दलित किसान ईश्वर चौहान ने कहा, “अब नाई की दुकान में तो बराबरी मिली, लेकिन सामूहिक भोज में हमें अब भी अलग बैठाया जाता है. उम्मीद है यह परंपरा भी जल्द खत्म होगी.” पाटीदार समाज के प्रकाश पटेल ने कहा, "मेरी किराना दुकान पर सब आते हैं. तो नाई की दुकान पर भेदभाव क्यों? यह गलत प्रथा खत्म होना खुशी की बात है."
Source: IOCL






















