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Gujarat Election 2022: मध्य गुजरात में क्या बैकफुट पर चली गई है कांग्रेस, बीजेपी के सामने बढ़त बनाए रखने की होगी चुनौती

Gujarat Election: मध्य गुजरात में बीजेपी के सामने बढ़त बनाए रखने की चुनौती होगी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं आदिवासी नेता के बीजेपी में शामिल होने से इस बार कांग्रेस बैकफुट पर दिखायी दे रही है.

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में 182 विधानसभा सीटों के करीब एक तिहाई या 61 सीटों वाले आठ जिलों में फैले मध्य क्षेत्र में आदिवासी और अत्यधिक शहरी इलाकों की मिश्रित संख्या है, जहां बीजेपी ने 2017 के चुनावों में कांग्रेस पर अच्छी-खासी बढ़त हासिल की थी. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के इस क्षेत्र से एक वरिष्ठ आदिवासी नेता के बीजेपी में शामिल होने से इस बार वह बैकफुट पर दिखायी दे रही है.

मध्य गुजरात में 2017 के आंकड़े
मध्य गुजरात क्षेत्र में बीजेपी ने 2017 के चुनावों में 37 सीटें और कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थीं जबकि दो सीटें निर्दलीयों के खाते में गयी थी. इस क्षेत्र में 10 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा तीन अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है.

बीजेपी ने अहमदाबाद और वडोदरा के शहरी इलाकों में अपने मजबूत समर्थन से सीटों की संख्या बढ़ायी थी और ये दोनों क्षेत्र खेड़ा, आणंद और एसटी बहुल पंचमहल जिले के साथ अब भी उसके गढ़ बने हुए हैं. मध्य क्षेत्र के आठ जिलों दाहोद, पंचमहल, वडोदरा, खेड़ा, महीसागर, आणंद, अहमदाबाद और छोटा उदयपुर में से कांग्रेस बमुश्किल चार जिलों में ही दिखायी दी.

बीजेपी ने 2017 में दाहोद जिले में चार में से तीन सीट जीती थी, पंचमहल में पांच में से चार, वडोदरा में 10 में से आठ, खेड़ा में सात में तीन, महीसागर में दो में से एक, आणंद में सात में से दो, छोटा उदयपुर में तीन में से एक और अहमदाबाद में 21 में से 15 सीटें जीती थी.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीटों पर विपक्षी दल का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा था. उसने ऐसी 10 में से पांच सीटें जीती थी. चार सीटें बीजेपी और एक निर्दलीय ने जीती थी. इस बार कांग्रेस बैकफुट पर दिखायी दे रही हैं क्योंकि आदिवासी समुदाय के उसके सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक और 10 बार के विधायक मोहन सिंह राठवा विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए. राठवा छोटा उदयपुर सीट से विधायक थे.

बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर अमित ढोलकिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि जहां तक आदिवासी सीटों का संबंध है तो नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल है लेकिन राठवा के कांग्रेस छोड़ने का निश्चित तौर पर असर पड़ेगा.

ढोलकिया ने कहा, ‘‘बीजेपी ने क्षेत्र में पकड़ बना ली है और वह महीसागर और दाहोद में कुछ सीटें जीतकर मजबूत साबित हुई इसलिए ऐसी सीटों पर दोनों दलों के पास समान अवसर है जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और उम्मीदवारों की निजी लोकप्रियता पर निर्भर करता है.’’ एसटी आरक्षित छोटा उदयपुर से बीजेपी के उम्मीदवार मोहन सिंह राठवा के पुत्र राजेंद्र सिंह राठवा ने कहा कि उनके क्षेत्र में लोग कुछ नेताओं को वोट देते हैं चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े हो. राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस के पास मजबूत आदिवासी चेहरा नहीं है और इसलिए वह इन आदिवासी क्षेत्रों में बैकफुट पर नजर आती है.

मध्य गुजरात में शहरी फैक्टर भी बीजेपी के पक्ष में है. दो अत्यधिक शहरीकृत जिले अहमदाबाद और वडोदरा के साथ ही खेड़ा, आणंद और पंचमहल जिले में भी बीजेपी की पकड़ है. त्रिवेदी ने कहा, ‘‘शहरी क्षेत्र बीजेपी के गढ़ हैं और रहेंगे. चुनाव जीतने के लिए आवश्यक नगर निगम, नेता, नेटवर्क और उम्मीदवार सभी मजबूती से बीजेपी के साथ हैं.’’ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था तो उन्होंने वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के साथ ही वडोदरा सीट को चुना था.

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