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‘बिजनेसमैन को राजनीति में नहीं होना चाहिए’, अपनी किताब के विमोचन पर केपी सिंह ने खोल सारे राज

Delhi News: DLF ग्रुप के चेयरमैन केपी सिंह ने अपनी किताब 'Why the heck Not' का विमोचन किया है. इस दौरान उन्होंने कहा, "मैंने बेतहाशा जोखिम नहीं बल्कि समझदारी भरा जोखिम लिया."

Delhi News: DLF ग्रुप के एमेरिटस चेयरमैन कुशाल पाल सिंह यानी केपी सिंह (KP Singh) की किताब 'Why the heck Not' का विमोचन दिल्ली के द लोधी होटल में हुआ. इस मौके पर केपी सिंह ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत की. जब उनसे पूछा गया कि किताब को 'Why the heck Not' नाम क्यों दिया गया है. इसपर उन्होंने कहा कि मैं ये समझता हूं जिंदगी में सभी के सामने मौके आते हैं. मौके को आप लेते हैं या जाने देते हैं सवाल बस यही है. इसलिए मैं कहता हूं वाई द हैक नॉट, मैने जिंदगी में कोई मौका नहीं छोड़ा.

रियल एस्टेट बिजनेस करने वाले लोगों को दी सलाह 
केपी सिंह से पूछा गया कि आप रियल एस्टेट बिजनेस को शुरू करने वाले नए लोगों को क्या सलाह देंगे. इसपर उन्होंने कहा कि मैंने बेतहाशा जोखिम नहीं बल्कि समझदारी भरा जोखिम लिया. रियल एस्टेट में जो भी काम आप करते हैं वो नियमों को सौ प्रतिशत मान कर करना चाहिए. DLF ने नियमों के अधीन ही काम किया है. रेगुलेटरी, टैक्स कंप्लायंस करना चाहिए सफल होने के लिए, बिज़नेस किस मॉडल से करते हैं ये बहुत जरूरी है. Ethics और Moral Values को ध्यान में रख कर काम करना है.

क्या राजनीति से मदद मिली या परेशानी हुई? 
वहीं जब सिंह से पूछा गया कि राजनीति कितना प्रभावित करती है. क्या राजनीति से मदद मिली या परेशानी हुई. इसपर उन्होंने कहा कि मैं यह मानता हूं कि बिजनेसमैन को राजनीति में नहीं होना चाहिए. मुझे कई बार मौका मिला. दोस्त आपके राजनीति में हो सकते हैं लेकिन दुश्मन नहीं. हमने किसानों के साथ बैठकर उनके साथ उनके हित में काम किया. जिन्होंने उस समय हमारा साथ दिया था उन किसानों को भी बहुत फायदा हुआ और आज उन किसानों की जमीन करोड़ों के दाम पर पहुंच गई है.

पुस्तक लिखने के लिए किस बात ने प्रेरित किया?
DLF ग्रुप चेयरमैन से सवाल किया गया कि आपको पुस्तक लिखने के लिए किस बात ने प्रेरित किया. इसपर उन्होंने कहा कि रिटायर्ड और थके हुए में अंतर होता है. मैं अपनी कार्यकारी भूमिका से रिटायर हो चुका हूं, लेकिन मैं थका हुआ नहीं हूं. मेरी याददाश्त बहुत तेज़ है, मुझे हर घटना याद है. मैंने सोचा कि दुनिया से जाने से पहले मैं अपना अनुभव साझा करूं. पहले मैं सेना था, फिर इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी के बिजनेस से जुड़ा. जिंदगी से सभी पहलुओं पर मैने खुलकर लिखा है.

‘एक भी नकारात्मक बात सुनने को नहीं मिली’
केपी सिंह के साथ उनकी किताब को लिखने वाली अपर्णा जैन को जब DLF के मालिक की कहानी में सहभागी के रूप में सह लेखक बनने का मौका मिला तो उन्होंने सबसे पहले यह जानना चाहा कि क्या उनकी छवि साफ-सुथरी है? ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर रियल एस्टेट उद्योग से जुड़े लोगों के ऊपर कोर्ट में केस चलते हैं या उनकी छवि समाज में खराब होती है. अपर्णा कहती हैं कि "मुझे संदेह था, हम सभी जानते हैं कि रियल एस्टेट उद्योग के लोगों की क्या छवि है. मैंने सोचा कि क्या वह मेरा सम्मान करेंगे, जिस तरह से मैं उसका सम्मान करती हूं? लेकिन उनके साथ लेखन की इस यात्रा के दौरान मुझे बहुत सम्मान मिला है. मुझे केपी सिंह के बारे में एक भी नकारात्मक बात सुनने को नहीं मिली. जिससे भी उनके बारे में पूछा, अच्छा ही सुनने को मिला. सभी ने कहा कि वह बहुत नैतिक और बहुत अच्छे इंसान हैं.

अपर्णा जैन ने कहा कि किताब में विशेष खंड भी दिया गया है जिसमें टाइटल "के.पी. बोलते हैं" लिखा गया है. इस खंड मे संक्षेप में बताया गया है कि वह वास्तव में क्या कहना चाहते हैं, वह वास्तव में क्या मानते हैं. वह अपने जानने वाले को क्या संदेश देना चाहते हैं. वह किस तरह की परिस्थितियों में रहे हैं, जिसमें उनकी गिरफ़्तारी और उन्होंने जो जोखिम उठाए, शामिल हैं. मुश्किल समय में भी केपी के अंदर ये विश्वास कायम था कि वो इस समय से निकल सकते हैं और सब कुछ सम्भाल लेंगे. 

‘मैंने सरकार की नीतियों का पालन किया’
वहीं जब केपी सिंह से पूछा गया कि Urban Land (Cealing and regulation) act  1976 ने किस तरह से DLF के लिए चुनौती खड़ी की और कैसे सरकार से मदद ली गई. इसपर उन्होंने कहा कि आपको सरकार को यह समझाना होगा कि आप जो कह रहे हैं वह जनहित में है, न कि स्वार्थी रूप से अपने लाभ के लिए है, लिहाज़ा मैंने सरकार की नीतियों का पालन किया. जब मैंने रियल एस्टेट में प्रवेश किया तो Urban Land (Cealing and regulation) act  1976 को अच्छी तरह से पढ़ा और समझा. 2-3 वर्षों तक मैंने रियल एस्टेट की बारीकियों को समझने की कोशिश की, जिसे 1976 में शहरी भूमि (सीलिंग और विनियमन) अधिनियम कहा जाता है, जो DLF के लिए एक बॉम्बशेल था, इसके तहत जिस किसी के पास 500 गज की खाली जमीन है, वह जमीन अनिवार्य रूप से सरकार को मुफ्त में दी जाएगी.

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर आपके पास 500 गज का घर और बगीचा है तो वह सरकार को जाएगा. इसका सीधा असर डीएलएफ पर पड़ा. मैंने खुद कानून पढ़ा जिसमें कहा गया था कि "अगर इस कानून का कोई भी पहलू किसी आम आदमी को कठिनाई में डालता है तो सरकार अधिसूचना द्वारा उसे छूट दे सकती है" मैंने इसे समझा और सरकार को समझाया कि यह असल में जनहित में है. यह एक बड़ा मुद्दा था क्योंकि अंततः इसका निर्णय इंदिरा गांधी के स्तर पर होना था और अंतत कैबिनेट द्वारा पास किया जाना था.

क्या किताब में केपी सिंह की आत्मकथा है? 
सिंह से पूछा गया कि क्या ये किताब उनकी आत्मकथा है. इसपर उन्होंने कहा कि आत्मकथा आपके जीवन का वर्णन होती है, जिसमें कोई निष्कर्ष नहीं होता है जिससे कोई सबक नहीं मिलता है. लेकिन यह एक अलग किताब है. ईश्वर के आशीर्वाद से मैं सफल हुआ और इसे साझा करना अच्छा है. मैंने चीजों को अलग-अलग नजरिए से देखने की कोशिश की है और किताब के कई चैप्टर आपको एहसास कराएंगे कि हर लाइन में एक सबक है.

पत्नी की मृत्यु पर क्यों लिखा 21 पन्नों का पत्र?
जब सिंह की पत्नी की मृत्यु 65 वर्ष की उम्र में हुई, तो उन्होंने अपने परिवार को 21 पन्नों का पत्र लिखा. इसपर उन्होंने कहा कि जब मेरी दिवंगत पत्नी 65 वर्ष की उम्र में चल बसीं तो मुझे लगा कि कोई भी यह याद नहीं रखेगा कि उन्होंने मुझ पर क्या योगदान किया है, मैं आज जो हूं उसका श्रेय मेरी पत्नी को भी जाता है. मैंने इसे अपने बच्चों, नाती-नातिनों के लिए सहेजने के लिए लिखा था. मैंने शाम को 9:30 बजे पत्र को लिखना शुरू किया और सुबह 4 बजे तक पूरा किया.

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