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JNU PG Admission: जेएनयू के टीचर्स को नहीं भा रहा पीजी एडमिशन के लिए प्रश्नों का MCQ पैटर्न, इस मुद्दे पर जतायी चिंता
Delhi News: स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज की प्रोफेसर वी सुजाता ने कहा कि सामाजिक विज्ञान में MCQs केवल किताबों और लेखकों के नाम और घटनाओं की तारीखों पर आधारित होते हैं न का वैचारिक समझ पर.
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Delhi News: जेएनयू के अध्यापकों ने पीजी कोर्सेज में प्रवेश के लिए परीक्षा पैटर्न को बहुविकल्पीय प्रश्न(MCQs) करने के विचार पर आपत्ति जताई है. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' कि रिपोर्ट के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (JNUTA) ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया पर कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डाला. प्रत्येक सेमेस्टर को 18 सप्ताह से घटाकर 6 सप्ताह करने की संभावना के खतरे के अलावा प्रोफेसरों ने कहा कि पोस्ट ग्रेजुएट और शोध स्तरों पर प्रवेश केवल विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न(MCQs) पैटर्न पर आधारित नहीं हो सकते हैं.
MCQs से नहीं चलता छात्र की वैचारिक समझ का पता
स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज की प्रोफेसर वी सुजाता ने कहा कि सामाजिक विज्ञान में MCQs केवल किताबों और लेखकों के नाम और घटनाओं की तारीखों पर आधारित होते हैं न का वैचारिक समझ पर. उन्होंने कहा कि MCQs में अत्यधिक व्यक्तिपरक, गलत, द्विआधारित(बायस्ड) और हास्यास्पद प्रश्न और उत्तर विकल्प भी शामिल हो सकते हैं.
प्रश्नों के उत्तर देना महत्वपूर्ण नहीं, छात्र की समझ जरूरी
उन्होंने कहा कि हम पीएचडी के लिए एक ऐसा प्रश्नपत्र विकसित करना चाहते हैं जहां एमसीक्यू को भी पैसेज के रूप में शामिल किया जाए. हालांकि इसमें व्यक्तिपरक प्रश्नों को भी मिलाया जाना है. यह कहते हुए कि आम धारणा के विपरीत, विज्ञान के लिए भी एक व्यक्तिपरक परीक्षा आवश्यक है, भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर देबाशीष घोषाल ने कहा कि प्रश्नों के उत्तर देना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि छात्र प्रश्नों के उत्तर किस समझ के साथ दे रहा है.
प्रवेश प्रक्रिया में देरी से गड़बड़ाया एकेडमिक कैलेंडर
वहीं जेएनयूटीए की अध्यक्ष बिष्णु प्रिया दत्त ने कहा कि प्रवेश में देरी से एकेडमिक कैलेंडर अस्त-व्यस्त हो गया है.सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ की प्रोफेसर रमा बारू ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ कार्यक्रम में परास्नातक प्रोग्राम में विभिन्न पृष्ठभूमि के छात्र शामिल होते हैं.
उन्होंने कहा कि छात्रों की विभिन्न पृष्ठभूमि को देखते हुए हमें हमें एक मजबूत शिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता है, और कैलेंडर को छोटा करने से हमें इसके आधार को बनाने के लिए समय नहीं मिलेगा. घोष ने आगे कहा कि अब तक स्नातक के छात्रों ने दो महीने की पढ़ाई पूर कर ली होगी और यह अपराध है कि वे घर बैठे हैं.
असमंजस की वजह से छात्रों की प्रवेश दर में आई कमी
वहीं जेएनयूटीए की सचिव प्रेफेसर सुचरिता सेन ने कहा कि हमें बिल्कुल पता नहीं है कि सेमेस्टर कब शुरू होंगे, इसी वजह से हमने देखा है कि छात्रों के यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने की दर में कमी आई है.
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