दिल्ली में GRAP-4 लागू होने से दिहाड़ी मजदूर बेरोजगारी और भूख से परेशान, सरकार से की ये अपील
Delhi News: दिल्ली में GRAP-4 लागू होने के बाद दिहाड़ी मजदूरों का रोज़गार ठप हो गया है, वे भूख और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के कारण जहरीली हो चुकी हवा से लोगों का सांस लेना भी दूभर हो चुका है. हालात दिन पर दिन और भी खराब होते जा रहे हैं. सरकार इस पर लगाम लगाने के लिए तमाम कवायदें कर रही हैं लेकिन वह अब तक कारगर साबित होते नहीं दिख रहे हैं. प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोशिश में सरकार ने GRAP-4 की पाबंदियां लागू कर दी है. जिसके लागू होते ही सभी निर्माण कार्य ठप पड़ गए हैं. जिसका सीधा असर उन हजारों दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है, जिनकी रोज़ी-रोटी ईंट, सीमेंट और कुदाल से चलती थी.
GRAP-4 लागू होते ही मजदूरों पर टूटी बेरोजगारी की मार
दिल्ली के नाकों पर खड़े ये मजदूर आज काम नहीं, सिर्फ़ उम्मीद और मायूसी लेकर लौट रहे हैं. हालांकि, सरकार ने पंजीकृत मजदूरों के लिए सहायता की घोषणा की है, लेकिन सवाल उन लाखों का है जो सिस्टम से बाहर रह गए हैं. हर तरह के कंस्ट्रक्शन कार्य पर रोक लगा दी गई है. इसका सबसे बड़ा खामियाजा दिहाडी पर काम करने वाले मजदूर भुगत रहे हैं. रोज़ कमाकर खाने वाले ये लोग अचानक पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं. न काम है, न आमदनी और न ही भविष्य की कोई स्पष्ट राह दिख रही है.
पंजीकृत और गैर-पंजीकृत मजदूरों की दुर्दशा
सरकार ने पंजीकृत मजदूरों को 10-10 हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है और अधिकारियों द्वारा इस पर अमल भी किया जा रहा है. लेकिन दिल्ली में लाखों की संख्या में ऐसे मजदूर हैं जो पंजीकृत नहीं हैं. इन्हें न तो प्रक्रिया की जानकारी है और न ही कोई मार्गदर्शन मिला. ऐसे में ये मजदूर खुद को पूरी तरह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. जिनसे बात कर उनकी वास्तविक स्थिति की जानकारी लेने ABP लाइव की टीम दिल्ली की विभिन्न चौक-चौराहों पर पहुंची. जहां उनके विषम हालातों में होने का पता चला.
रोजमर्रा की कठिनाइयों और मजदूरों की अपील
एबीपी लाइव की टीम जब वेस्ट दिल्ली के उत्तम नगर, विकासपुरी और पीपल चौक के नाकों पर पहुंच कर मजदूरों से बात की तो मजदूरों ने बताया कि वे पिछले एक महीने से रोज़ सुबह नाके पर आते हैं कि शायद कोई काम मिल जाए. लेकिन सैकड़ों लोगों की भीड़ को रोज ही सबको खाली हाथ लौटना पड़ता है. उम्मीद हर सुबह जन्म लेती है और शाम तक दम तोड़ देती है.
उत्तर प्रदेश के महोबा से आए मजदूर स्वरूप और छोटेलाल ने बताया कि वे पिछले पांच साल से दिल्ली में मजदूरी कर परिवार का पेट पाल रहे थे. लेकिन पिछले डेढ़ महीने से काम अनियमित हो गया है. बीते एक हफ्ते से तो बिल्कुल काम नहीं मिल रहा. जो पैसे परिवार को भेजने थे, वही अब खुद के खाने में खर्च करने पड़ रहे हैं.
हमीरपुर के रहने वाले युवा विक्की ने बताया कि वह कम पढ़ा-लिखा है और मजदूरी के अलावा कोई और काम नहीं कर सकता. निर्माण कार्य बंद होने से वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया है. खाने के लिए पैसे नहीं हैं. मंदिर, गुरुद्वारे और कभी-कभी लगने वाले लंगर से ही पेट भर पाता है. कई दिन ऐसे भी गुजरते हैं जब खाली पेट सिर्फ़ पानी पीकर सोना पड़ता है. उत्तर प्रदेश के बदायूं से आए विक्की और उंसके भाई सहवाग ने बताया कि वे कुछ महीने पहले दिल्ली आए थे. शुरुआत में काम ठीक चल रहा था. लेकिन अब रोज़ सुबह पांच बजे नाके पर आने के बाद घंटों इंतजार और फिर निराश होकर कमरे पर लौटना उनकी दिनचर्या बन गई है. दसवीं पास होने बावजूद उन्हें कोई और काम नहीं मिल रहा.
बिहार के भागलपुर और मोतिहारी से आए राजमिस्त्री संतोष कुमार शाह और तस्लीम ने बताया कि वे पंजीकृत मजदूर थे. लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन दो महीने पहले खत्म हो गया था और वे रिन्युअल नहीं करा पाए. कॉल आने के बावजूद अनपढ़ होने के कारण वे बात समझ नहीं सके. आज हालात बिगड़े तो अपनी इसी चूक का गहरा पछतावा हो रहा है. इन नाकों पर खड़े मजदूर केवल कंस्ट्रक्शन जैसे काम ही कर सकते हैं. मॉल या दुकानों में इन्हें काम मिलना लगभग असंभव है. प्रदूषण के चलते सारे काम बंद हैं. उधार लेने की गुंजाइश भी नहीं है क्योंकि उनके साथी मजदूर भी बेरोजगार हैं और सभी खाली हाथ हैं.
इन मजदूरों की एक ही मांग है कि सरकार गैर-पंजीकृत मजदूरों के बारे में भी सोचे. उन्हें नहीं पता कि पंजीकरण कहां और कैसे कराना है. राजधानी दिल्ली में लाखों ऐसे मजदूर हैं जो सिस्टम की जानकारी के अभाव में सहायता से वंचित रह जाते हैं. इनकी अपील है कि सरकार इन्हें भी पंजीकृत मजदूरों की तरह सहायता राशि दे, ताकि कम से कम वे और उनका परिवार भूखे न सोए.
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Source: IOCL























