बिहार की सियासत में नया समीकरण गढ़ रहे पवन सिंह? पूर्व मंत्री के साथ तस्वीर ने मचाई हलचल
Bihar Election 2025 Pawan Singh: भोजपुर से लेकर पटना तक चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आने वाले दिनों में पवन सिंह किसी बड़े दल से हाथ मिला सकते हैं. या अपनी स्वतंत्र राजनीतिक यात्रा को नए मोड़ पर ले जा सकते हैं.

भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार और बीते लोकसभा चुनाव से राजनीतिक सुर्खियों में आए पवन सिंह ने सोमवार को आरा में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से मुलाकात की. इस मुलाकात की तस्वीर खुद पवन सिंह ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट करते हुए लिखा, “एक नई सोच के साथ, एक नई मुलाकात”.
बिहार की राजनीति में हलचल
यह तस्वीर और पोस्ट सामने आते ही बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है. जानकार मान रहे हैं कि यह मुलाकात महज औपचारिक नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में बड़े राजनीतिक समीकरण का संकेत हो सकती है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शाहाबाद में पवन सिंह ने एनडीए को जिस तरह करारी शिकस्त दी, उससे उनके राजनीतिक कद में अचानक इजाफा हुआ है.
ऐसे में उनका आर.के. सिंह से मिलना यह संदेश दे रहा है कि वे राजनीति की गहरी बिसात बिछा रहे हैं. भोजपुरी सुपर स्टार पवन सिंह अब तक फिल्मों और मंच से जनता का दिल जीतते रहे हैं, लेकिन अब उनकी राजनीतिक सक्रियता और लगातार बढ़ती लोकप्रियता, उन्हें बड़े सियासी किरदार के रूप में स्थापित कर रही है.
भोजपुर से लेकर पटना तक चर्चाओं का बाजार गर्म है कि आने वाले दिनों में पवन सिंह किसी बड़े दल से हाथ मिला सकते हैं, या अपनी स्वतंत्र राजनीतिक यात्रा को नए मोड़ पर ले जा सकते हैं. फिलहाल, पवन सिंह और आर.के. सिंह की यह मुलाकात बिहार की राजनीति में संभावनाओं और अटकलों का नया दरवाजा खोल चुकी है.
भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह ने 2025 के लोकसभा चुनाव में भले ही जीत दर्ज न की हो, लेकिन उनके चुनावी असर ने शाहाबाद की सियासत की पूरी तस्वीर बदल दी. परिणाम साफ था, शाहाबाद की चारों लोकसभा सीटों पर एनडीए का खाता तक नहीं खुला.
आरा में ‘राजपूत इफेक्ट’
आरा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने चुनावी मैदान संभाला, लेकिन जैसे ही पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर प्रचार शुरू किया, भाजपा में बेचैनी बढ़ने लगी. आरके सिंह ने पवन सिंह का खुलकर विरोध किया और उन्हें पार्टी से बाहर करने तक की सिफारिश कर दी. चुनाव से कुछ दिन पहले भाजपा ने पवन सिंह को निष्कासित कर दिया. इस कदम ने राजपूत समाज को नाराज कर दिया, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा.
पवन सिंह ने काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा. यहां उन्होंने एनडीए समर्थित उपेंद्र कुशवाहा और सीपीआईएमएल के राजाराम सिंह को कड़ी टक्कर दी. पवन सिंह भले ही दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन उनके प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि वह वोटरों के बीच गहरी पैठ बना चुके हैं. काराकाट में पवन सिंह की आक्रामक मौजूदगी का असर आस-पास की सीटों पर भी दिखी.
एनडीए के हाथ से गईं थीं चार सीटें
सासाराम में भी भाजपा को करारी हार मिली, जबकि बक्सर में भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी भी चुनाव हार गए. पवन सिंह के प्रचार अभियान ने खासकर युवाओं और राजपूत वोटरों को प्रभावित किया, जिसका सीधा नुकसान एनडीए को हुआ. शाहाबाद की चारों लोकसभा सीटें आरा, काराकाट, बक्सर और सासाराम पर इस बार एनडीए हार गया.
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि इस करारी शिकस्त के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर पवन सिंह का ‘इफेक्ट’ रहा. भले ही पवन सिंह संसद तक का सफर तय न कर पाए हों, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि उनके समर्थन से कोई चुनाव जीत भी सकता है और विरोध से हार भी सकता है.
Source: IOCL





















