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पीएम मोदी को लिखी विपक्ष की चिट्ठी में नीतीश कुमार का नाम क्यों नहीं, क्या फिर यू-टर्न!

वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क के मुताबिक नीतीश कुमार जब भी पलटी मारते हैं, तो उससे पहले साइलेंट मोड में चले जाते हैं. हाल के दिनों में नीतीश ने कई मुद्दों पर फिर से चुप्पी साध ली है.

2024 से पहले विपक्षी एकता का राग अलाप रहे बीच नीतीश कुमार ने आरजेडी, एनसीपी, सपा समेत 8 पार्टियों को बड़ा झटका दिया है. विपक्षी नेताओं पर केंद्रीय एजेंसी के दुरुपयोग को लेकर विपक्षी नेताओं ने एक पत्र प्रधानमंत्री मोदी को लिखा है.

पत्र में विपक्षी नेताओं ने सिलसिलेवार तरीके से बताया है कि कैसे केंद्रीय एजेंसी बड़े नेताओं को परेशान करती है. यह लेटर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद लिखा गया है. 

पत्र में तृणमूल कांग्रेस के ममता बनर्जी, टीआरएस के के चंद्रशेखर राव, आरजेडी के तेजस्वी प्रसाद यादव, शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे, एनसीपी चीफ शरद पवार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, आप के अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान के साथ ही सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का हस्ताक्षर है.

आरजेडी ने लालू यादव पर लैंड फॉर स्कैम घोटाले में शुरू हुई कार्रवाई के खिलाफ इस पत्र पर साइन किया है. ममता के अणुब्रत मंडल और पार्थ चटर्जी अभी भी जेल में बंद हैं, जबकि आप के सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर हाल ही में सीबीआई-ईडी ने शिकंजा कसा है.

सेंट्रल एजेंसी की रडार पर विपक्षी नेता, 2 प्वॉइंट्स

1. लोकसभा में सरकार ने बताया कि 2014 से लेकर 2022 तक यानी कुल 8 साल में ईडी ने 3010 रेड की और इस दौरान लगभग एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच किया गया. यह आंकड़ा 2004 से 2014 के मुकाबले काफी कम है. 

2004-2014 में सिर्फ 112 रेड ईडी ने किया था और 5346 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी. सरकार की दलील है कि कार्रवाई जमाखोरों पर की जा रही है. इससे भ्रष्टाचार पर नकेल कसेगा.

2. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने 2022 में एक डेटा जारी किया था. इसके मुताबिक 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं के केस ईडी के पास है. इनमें से 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं. फीसदी में यह आंकड़ा 95 के आसपास है.

यह आंकड़ा भी 2004-2014 के मुकाबले काफी कम है. 2004-14 के दौरान सिर्फ 26 राजनेताओं की जांच ईडी ने की थी, जिसमें से 14 नेता विपक्षी पार्टी के थे. 

नीतीश लेंगे यूटर्न या वजह कुछ और?
नीतीश कुमार लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ हो रहे कार्रवाई को लेकर सेंट्रल एजेंसी पर कई दफे सवाल उठा चुके हैं. इसके बावजूद पीएम को लिखे पत्र पर उन्होंने साइन क्यों नहीं किया, इसको लेकर सियासी अटकलें तेज हो गई है. आइए इसे विस्तार से जानते हैं...

1. क्लीन इमेज को दांव पर नहीं लगाना चाहते- विपक्ष में जदयू अभी एकमात्र पार्टी है, जिसके कोई भी बड़े नेता सेंट्रल एजेंसी के रडार पर नहीं है. नीतीश कुमार के ईमानदारी की तारीफ बीजेपी के दिग्गज भी कर चुके हैं. 

ऐसे में भ्रष्टाचार की जद में आए नेताओं के बचाव में साइन कर नीतीश अपनी इमेज दांव पर नहीं लगाना चाहते हैं. नीतीश कई बार कह चुके हैं कि न तो हम किसी को बचाते हैं और न ही फंसाते हैं. 

जिन नेताओं को लेकर पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी गई है, उन सभी का मामला कोर्ट में है. नीतीश नहीं चाहते हैं कि मामले में दखल देकर किरकिरी करवाई जाए.

2. प्रेशर पॉलिटिक्स भी बड़ी वजह- विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार कई बार खाका तैयार करने का प्रस्ताव दे चुके हैं, लेकिन अब तक इसको लेकर कोई पहल नहीं हुई है. ऐसे में नीतीश अन्य दलों पर प्रेशर बनाना चाहते हैं. 

बिहार में भी आरजेडी 2024 से पहले नीतीश पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का दबाव बना रही है. नीतीश के इस दांव से यह प्रेशर भी कम हो सकता है. फिर से मुश्किल में घिरी आरजेडी को सरकार जाने का डर सता सकता है. 

इस दांव से बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ आरजेडी नेताओं की बयानबाजी कम हो सकती है. 

3. कांग्रेस से अलग राह अपना रहे दलों को भाव नहीं- नीतीश कुमार पहले भी कह चुके हैं कि कांग्रेस के बिना कोई गठबंधन सफल नहीं हो सकती है. कांग्रेस से भी कई बार गठबंधन तैयार करने की अपील नीतीश कर चुके हैं.

चिट्ठी पर जिन 8 दलों ने हस्ताक्षर किए हैं, उनमें से तृणमूल कांग्रेस, टीआरएस और सपा पहले ही कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने की बात कह चुकी है. इन दलों का अपने-अपने राज्य में बड़ा जनाधार भी है. 

पीएम को लिखी इस चिट्ठी से कांग्रेस और डीएमके ने दूरी बना ली है. नीतीश कुमार की रणनीति कांग्रेस के साथ जाने की है, इसलिए उन्होंने भी चिट्ठी से दूरी बना ली है. नीतीश को उम्मीद है कि कांग्रेस गठबंधन में उन्हें बड़ी भूमिका मिल सकती है. 

यही वजह है कि इन दलों के साथ जाकर नीतीश कुमार भविष्य का खतरा मोल नहीं लेना चाहते हैं.

4. बीजेपी से गठबंधन का स्कोप भी खत्म नहीं करना चाहते- 2015 में लालू यादव के साथ चुनाव जीत चुके नीतीश 2017 में बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन में शामिल हो गए. 

नीतीश कुमार जब भी किसी पार्टी से गठबंधन तोड़ते हैं, तो फिर से आने की संभावनाएं भी बनाए रखते हैं. ऐसे में सियासी गलियारों में नीतीश के इस कदम को भी इसी रूप में देखा जा रहा है. 

क्या फिर यू टर्न लेंगे नीतीश कुमार?

नीतीश कुमार फिर यू टर्न ले सकते हैं? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क कहते हैं- इस पूरे मामले में 2 चीजें हैं, जिसे समझने की जरूरत है. पहला, इस पत्र पर साइन करने के लिए विपक्षी दलों ने नीतीश को कहा या नहीं? क्योंकि अब तक यह बात सामने नहीं आई है कि उन्हें विपक्षी दलों की ओर से कहा गया, लेकिन उन्होंने हस्ताक्षर किया नहीं.  विपक्षी दलों में नीतीश कुमार की पलटी मार राजनीति विश्वसनीय नहीं है. यही वजह है कि कोई भी दल नीतीश को गंभीरता से नहीं लेते हैं. बिहार में चूंकि आरजेडी को सरकार चलानी है, इसलिए आरजेडी साथ है. दूसरा, नीतीश कुमार को अब लगने लगा है कि विपक्षी एकता की बात फिजूल है. क्योंकि पिछले कुछ महीनों में ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव जैसे दिग्गज अकेले चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं.

पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का दावा है कि कांग्रेस नीतीश कुमार की बात नहीं सुन रही है. कमलनाथ पीएम दावेदार में राहुल के नाम को आगे बढ़ा चुके हैं. इसे कांग्रेस हाईकमान ने भी खारिज नहीं किया. ऐसे में नीतीश कुमार आने वाले दिनों में कुछ भी फैसला कर सकते हैं. वैसे भी नीतीश कुमार जब पाला बदलते हैं तो पूरे साइलेंट मोड में चले जाते हैं.  पिछले कुछ दिनों से यह देखा भी जा रहा है. लालू-राबड़ी से सीबीआई की पूछताछ पर भी उन्होंने चुप्पी साध रखी है. 

10 साल में 4 बार पलटी मार चुके हैं नीतीश कुमार
2013 से लेकर 2023 तक यानी 10 साल में नीतीश कुमार 4 बार पलटी मार चुके हैं. 2013 में नीतीश ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा. 2015 में आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़े और जीतकर सरकार बनाई. 2017 में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आरजेडी से भी राह अलग कर लिया और बीजेपी से जा मिले. 2022 में फिर बीजेपी से गठबंधन तोड़कर आरजेडी से हाथ मिला लिया. 

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