टीम इंडिया को 2011 वर्ल्ड कप विजेता बनाने वाले कोच ने बताया नेशनल और फ्रेंचाइजी टीम में क्या है फर्क
कोच को टीम में मौजूद हर तरह के खिलाड़ियों को सफलतापूर्वक संभालना आना चाहिए ताकि हर खिलाड़ी को आगे बढ़ने का मौका मिले. कोच पर टीम में ऐसा माहौल बनाने की जिम्मेदारी होती है जिससे उच्च स्तर का प्रदर्शन निकल सके.
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कोच और टीम इंडिया को साल 2011 में वर्ल्ड कप विजेता बनाने वाले कोच गैरी कर्स्टन ने कहा है कि लीडरशिप पॉजिशन के लिए आपको पहले एक टीम और फिर एक खिलाड़ी को समझना पड़ता है. ऐसे में आसपास कैसा वातावरण है ये भी आपको समझने की जरूरत होती है. साल 2011 में गैरी कर्स्टन की कोचिंग में ही टीम इंडिया ने मुंबई में श्रीलंका को वर्ल्ड के फाइनल में मात देकर खिताब पर कब्जा किया था.
डेली सन ने कर्स्टन के हवाले से लिखा है, "कोच को काफी सारी स्किल्स आनी चाहिए जो उसे एक पेशेवर टीम को हर विभाग में पूरी तरह से देखने का मौका दे."
उन्होंने कहा, "इसमें सेशन और टूर्नामेंट्स की तैयारी, मैन-मैनेजमेंट, टीम कल्चर बनाना, संबंध बनाना, चयन, रणनीति और सपोर्ट स्टाफ, अभ्यास, ट्रेनिंग सुविधा, मीडिया, जैसी चीजें शामिल हैं जो एक टीम को अच्च स्तर पर अच्छा करने वाली पेशेवर टीम बनाती है."
52 साल के इस कोच ने कहा, "कोच को टीम में मौजूद हर तरह के खिलाड़ियों को सफलता पूर्वक संभालना आना चाहिए ताकि हर खिलाड़ी को आगे बढ़ने का मौका मिले. कोच पर टीम में ऐसा माहौल बनाने की जिम्मेदारी होती है जिससे उच्च स्तर का प्रदर्शन निकल सके. कोच पर टीम की सफलता की जिम्मेदारी होती है सिर्फ खिलाड़ियों की नहीं."
नेशनल और फ्रेंचाइजी टीम की कोचिंग में क्या अंतर पर इसपर कर्स्टन ने कहा कि दोनों टीमों में काफी कुछ फर्क है. एक तरफ जहां नेशनल टीम में आपको लगातार ट्रेवल करना पड़ता है, आपका परिवार आपके साथ नहीं रहता. तो वहीं फ्रेंचाइजी टीम में आपके पास सबकुछ करीब रहता है. उसकी मदद से आप 8 हफ्तों के भीतर ही बेहतरीन रिजल्ट दे सकते हैं.
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