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गीत गाकर सोते को जगाया जाता है यहां, जानिए कहां है ये परंपरा

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 बेटी का स्थान मिथिला में सर्वोपरि माना जाता आ रहा है कि हर कण में यहां बेटी है. चूंकि सीता का जन्म मिट्टी के गर्भ से हुआ था. अपनी बेटी के प्रति असीम अनुराग को व्यक्त करने के लिए 'समदाउन' गीत गाया जाता है. इस गीत के दौरान पुरुष हो या स्त्री सबके आंखों से आंसू बहने लगता है. यहां रोने-रुलाने के लिए भी गीत-संगीत है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
बेटी का स्थान मिथिला में सर्वोपरि माना जाता आ रहा है कि हर कण में यहां बेटी है. चूंकि सीता का जन्म मिट्टी के गर्भ से हुआ था. अपनी बेटी के प्रति असीम अनुराग को व्यक्त करने के लिए 'समदाउन' गीत गाया जाता है. इस गीत के दौरान पुरुष हो या स्त्री सबके आंखों से आंसू बहने लगता है. यहां रोने-रुलाने के लिए भी गीत-संगीत है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 आमतौर पर लड़के और लड़की के पिता को संबंधी कहा जाता है. संबंधी का स्थान काफी ऊंचा होता है. उनके साथ काफी हास्य-व्यंग्य किया जाता है. गाली को संगीत में पिरोकर संबंधी को सुनाया जाता है. जो बड़ा ही रोचक होता है. संगीतमय गाली शायद ही दुनिया के किसी कोने में होगी. इस गाली को बुरा नहीं माना जाता है बल्कि लुत्फ के साथ ठहाके लगाते हैं. यह जगह अपने आप में एक दर्शन है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
आमतौर पर लड़के और लड़की के पिता को संबंधी कहा जाता है. संबंधी का स्थान काफी ऊंचा होता है. उनके साथ काफी हास्य-व्यंग्य किया जाता है. गाली को संगीत में पिरोकर संबंधी को सुनाया जाता है. जो बड़ा ही रोचक होता है. संगीतमय गाली शायद ही दुनिया के किसी कोने में होगी. इस गाली को बुरा नहीं माना जाता है बल्कि लुत्फ के साथ ठहाके लगाते हैं. यह जगह अपने आप में एक दर्शन है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 अमूमन जन्म के तीन साल बाद पहली बार कैची से बाल काटने की परंपरा है और इसके लिए पूजा-अर्चना की जाती है. इस संस्कार में मुंडन गीत गाने की परंपरा है. इस गाने में पारंपरिक वाद्ययंत्र का भी प्रयोग किया जाता है. इनमें ढोलक का स्थान प्रमुख है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
अमूमन जन्म के तीन साल बाद पहली बार कैची से बाल काटने की परंपरा है और इसके लिए पूजा-अर्चना की जाती है. इस संस्कार में मुंडन गीत गाने की परंपरा है. इस गाने में पारंपरिक वाद्ययंत्र का भी प्रयोग किया जाता है. इनमें ढोलक का स्थान प्रमुख है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 यहां की जीवन शैली कुछ ऐसी है कि जिंदगी उत्सव मनाने जैसी है. विभिन्न अवसरों पर कई प्रकार के गीत गाये जाते हैं. बच्चों के जन्म पर शुभ आगमन को दर्शाते हुए 'सोहर गीत', फिर लड़का हो या लड़की उसके जन्म के छठे दिन पर छठियारी मनाई जाती है. इस अवसर पर छठियारी गीत गाया जाता है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
यहां की जीवन शैली कुछ ऐसी है कि जिंदगी उत्सव मनाने जैसी है. विभिन्न अवसरों पर कई प्रकार के गीत गाये जाते हैं. बच्चों के जन्म पर शुभ आगमन को दर्शाते हुए 'सोहर गीत', फिर लड़का हो या लड़की उसके जन्म के छठे दिन पर छठियारी मनाई जाती है. इस अवसर पर छठियारी गीत गाया जाता है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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सीता की धरती मिथिला की भाषा मैथिली है जो सीता का पर्याय भी है. इस भाषा को अंग्रेजी भाषाविद जार्ज ग्रियसर्न ने दुनिया की मधुरतम भाषा की संज्ञा दी थी. ग्रियर्सन ने भारत में भाषाई सर्वेक्षण पर बहुत बड़ा काम किया था मैथिली की मधुरता को बयां करते हुए उन्होंने लिखा था जब दो मैथिली महिलाएं किसी रंजिश वस आपस में झगड़ती हैं तो महसूस होता है कि वे गाना गा रही हैं. इस क्रिया में वे सूर्य व अग्नि को साक्षी बनाती हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
सीता की धरती मिथिला की भाषा मैथिली है जो सीता का पर्याय भी है. इस भाषा को अंग्रेजी भाषाविद जार्ज ग्रियसर्न ने दुनिया की मधुरतम भाषा की संज्ञा दी थी. ग्रियर्सन ने भारत में भाषाई सर्वेक्षण पर बहुत बड़ा काम किया था मैथिली की मधुरता को बयां करते हुए उन्होंने लिखा था जब दो मैथिली महिलाएं किसी रंजिश वस आपस में झगड़ती हैं तो महसूस होता है कि वे गाना गा रही हैं. इस क्रिया में वे सूर्य व अग्नि को साक्षी बनाती हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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भारत कृषि प्रधान देश है जहां मिथिला एक ऐसा हिस्सा है जहां पर कृषि बारिश पर आधारित है. यहां पर बारिश के लिए इंद्रदेव को गाना गाकर रिझाया जाता है जिस गीत को 'जटा-जटिन' कहते हैं वहीं प्रकृति पूजन के लिए अलग गीत है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
भारत कृषि प्रधान देश है जहां मिथिला एक ऐसा हिस्सा है जहां पर कृषि बारिश पर आधारित है. यहां पर बारिश के लिए इंद्रदेव को गाना गाकर रिझाया जाता है जिस गीत को 'जटा-जटिन' कहते हैं वहीं प्रकृति पूजन के लिए अलग गीत है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 बच्चों के जन्म से लेकर व्यक्ति के मृत्यु पर गीत गाने की अनोखी परंपरा है. जीवन के हर क्षण व उत्सव के लिए अलग-अलग सुर-ताल गीत और संगीत है. घर में मेहमान आने पर स्वागत गीत की परंपरा है. साथ ही मेहमान के जाने पर विदाई गीत, भोजन और मेहमानवाजी के लिए अलग गीत होता है. 12 महीनों के लिए गीत माला बना हुआ है जिसे बारहमासा कहते है जिसे बदलते ऋतु के हिसाब से इस्तेमाल में लाया जाता है. वसंत में सुर लय ताल बदल जाते हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
बच्चों के जन्म से लेकर व्यक्ति के मृत्यु पर गीत गाने की अनोखी परंपरा है. जीवन के हर क्षण व उत्सव के लिए अलग-अलग सुर-ताल गीत और संगीत है. घर में मेहमान आने पर स्वागत गीत की परंपरा है. साथ ही मेहमान के जाने पर विदाई गीत, भोजन और मेहमानवाजी के लिए अलग गीत होता है. 12 महीनों के लिए गीत माला बना हुआ है जिसे बारहमासा कहते है जिसे बदलते ऋतु के हिसाब से इस्तेमाल में लाया जाता है. वसंत में सुर लय ताल बदल जाते हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 यहां अनपढ़ लोगों में गाने के प्रति उत्सुकता दिखती हैं. जबकि साक्षरता दर पिछले एक दशक की तुलना में काफी बढ़ी है. यहां की गायन परंपरा सही मायने में अद्भुत और देखने सुनने योग्य है. यह गीत-संगीत की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी से चलती आ रही है. इसे संरक्षित करने में बड़े बुजुर्गों का बहुत बड़ा हाथ है लेकिन जो मिथिला से बाहर रह रहे हैं उनके बीच इस परंपरा का चलन कम हो गया है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
यहां अनपढ़ लोगों में गाने के प्रति उत्सुकता दिखती हैं. जबकि साक्षरता दर पिछले एक दशक की तुलना में काफी बढ़ी है. यहां की गायन परंपरा सही मायने में अद्भुत और देखने सुनने योग्य है. यह गीत-संगीत की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी से चलती आ रही है. इसे संरक्षित करने में बड़े बुजुर्गों का बहुत बड़ा हाथ है लेकिन जो मिथिला से बाहर रह रहे हैं उनके बीच इस परंपरा का चलन कम हो गया है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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 मिथिला के लोगों की दिनचर्या कुछ ऐसी है कि सूर्योदय से पहले अपने बिस्तर छोड़ देते हैं और गीत संगीत की दैनिक क्रिया शुरू हो जाती है. मानो यहा हर घर अपने आप में गायन का केंद्र है गीत-संगीत व चित्रकला यहां के लोगों की सांसों में रच बस गया है. इसी कारण से यह एक जीवन शैली बन गई है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
मिथिला के लोगों की दिनचर्या कुछ ऐसी है कि सूर्योदय से पहले अपने बिस्तर छोड़ देते हैं और गीत संगीत की दैनिक क्रिया शुरू हो जाती है. मानो यहा हर घर अपने आप में गायन का केंद्र है गीत-संगीत व चित्रकला यहां के लोगों की सांसों में रच बस गया है. इसी कारण से यह एक जीवन शैली बन गई है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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दुनिया में मिथिला ही ऐसा क्षेत्र है जहां पर एक दूसरे को गीत गाकर सुबह जगाने की परंपरा है. इसे पराती कहते है और इस परंपरा को बचाने में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का योगदान कहीं ज्यादा है. पराती का मतलब है सुबह की अगवानी में गाया जाने वाला गीत. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
दुनिया में मिथिला ही ऐसा क्षेत्र है जहां पर एक दूसरे को गीत गाकर सुबह जगाने की परंपरा है. इसे पराती कहते है और इस परंपरा को बचाने में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का योगदान कहीं ज्यादा है. पराती का मतलब है सुबह की अगवानी में गाया जाने वाला गीत. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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