क्या है फाइव आईज, सदस्य ना होने पर भी दिल्ली में खुफिया एजेंसियों की बैठक क्यों, भारत होगा शामिल?
Raisina Dialogue: PM नरेंद्र मोदी आज रायसीना डायलॉग का उद्घाटन करेंगे. तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में कई देशों के विदेश मंत्री शामिल होंगे.

Raisina Dialogue: अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर तुलसी गबार्ड, ब्रिटेन के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जोनाथन पॉवेल और न्यूजीलैंड के खुफिया प्रमुख एंड्रयू हैम्पटन रविवार को नई दिल्ली में विभिन्न देशों के खुफिया प्रमुखों के साथ बैठक में शामिल हुए. इस दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रॉ प्रमुख रवि सिन्हा और इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर तपन डेका उनकी मेजबानी कर रहे थे.
दिलचस्प बात यह है कि भारत फाइव आईज समूह का सदस्य नहीं है, फिर भी इस बैठक में इसके कुछ सदस्य देशों के प्रमुख मौजूद थे, जो वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती अहमियत को दिखाता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तुलसी गबार्ड और जोनाथन पॉवेल सोमवार से शुरू होने वाले रायसीना डायलॉग में भी हिस्सा लेंगे.
PM मोदी करेंगे रायसीना डायलॉग का उद्घाटन
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन और विदेश मंत्रालय के संयुक्त सहयोग से आयोजित होने वाला रायसीना डायलॉग तीन दिनों तक चलेगा, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन इस सम्मेलन में विशेष रूप से शामिल होने के लिए रविवार को नई दिल्ली पहुंचे हैं. वह उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि होंगे और उद्घाटन भाषण देंगे.
इस प्रतिष्ठित सम्मेलन में 125 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे, जिनमें विभिन्न देशों के मंत्री, पूर्व राष्ट्राध्यक्ष, सैन्य कमांडर, उद्योग जगत के प्रमुख, टेक्नोलॉजी लीडर्स, शिक्षाविद, पत्रकार, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ और अग्रणी थिंक टैंक से जुड़े विशेषज्ञ शामिल होंगे.
जानें क्यों है फाइव आईज समूह इतना अहम?
फाइव आईज गठबंधन में अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. हालांकि, भारत इसका हिस्सा नहीं है, लेकिन समय-समय पर इस समूह को और मजबूत करने के लिए भारत को शामिल करने की मांग उठती रही है. खासतौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव और संभावित खतरों को देखते हुए फाइव आईज के विस्तार की जरूरत लगातार जताई जाती रही है.
इस गठबंधन का मुख्य उद्देश्य खुफिया जानकारी साझा करना, आतंकवाद का मुकाबला करना और सदस्य देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है. फाइव आईज की नेटवर्किंग अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है, जिसमें इन पांच प्रमुख देशों की खुफिया एजेंसियां एक-दूसरे के साथ महत्वपूर्ण सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं.
क्या भारत को बनना चाहिए इसका हिस्सा?
विशेषज्ञों का मानना है कि फाइव आईज आतंकवाद का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा, साइबर सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी यह भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. खासकर, चीन और पाकिस्तान के खिलाफ खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में फाइव आईज से भारत को बड़ा लाभ मिल सकता है.
हालांकि द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके कुछ संभावित नुकसान भी हैं. भारत यदि इस गठबंधन में शामिल होता है, तो उसे अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से कुछ हद तक समझौता करना पड़ सकता है. इसके अलावा, फाइव आईज रूस के खिलाफ भी काम करता है, जिससे भारत-रूस संबंधों में खटास आने की आशंका हो सकती है. भारत हमेशा सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता है, जिसमें फाइव आईज से बाहर के देश भी शामिल हैं.
भारत की विदेश नीति अक्सर अमेरिका और पश्चिमी देशों से अलग होती है, जिससे कई जियो-पॉलिटिकल मुद्दों पर भारत और फाइव आईज के दृष्टिकोण में मतभेद हो सकते हैं. साथ ही, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर भी भारत के सामने कुछ चुनौतियां आ सकती हैं. फिर भी, विशेषज्ञों का मानना है कि इन मतभेदों को दूर रखते हुए भारत को फाइव आईज के साथ मिलकर काम करने पर विचार करना चाहिए, जिससे चीन और आतंकवाद के खिलाफ उसकी रणनीति को मजबूती मिलेगी.
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