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Explained: ड्रैगन की क्या है 'वन चाइना पॉलिसी' और ताइवान के साथ कैसा है बीजिंग का संबंध

Nancy Pelosi Taiwan Visit: अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को चीन वन चाइना पॉलिसी का उल्लंघन बता रहा है. आखिर क्या है वन चाइना पॉलिसी, आइए जानते हैं.

One China Policy: अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान (Taiwan) यात्रा को लेकर चीन (China) भड़का हुआ है. वह लगातार अमेरिका (America) को अंजाम भुगतने की धमकी दे रहा है और इसी के साथ उसने ताइवान की सीमा के पास समुद्री इलाके में अपनी सेना को युद्धाभ्यास (China War Drill) के लिए उतार दिया है. नैंसी के ताइवान दौरे को चीन वन चाइना पॉलिसी (One China Policy) का उल्लंघन बता रहा है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है वन चाइना पॉलिसी, कैसे यह अस्तित्व में आई और ताइवान के साथ बीजिंग (Beijing) कैसा संबंध रखता है.

वन चाइना की पॉलिसी एक चीनी शासन को राजनयिक मान्यता देती है. इस पॉलिसी के पीछे इतिहास जानना जरूरी है. 1644 में चीन में चिंग वंश शासन करता था. चिंग वंश ने चीन का एकीकरण किया. इसका शासन 1911 में चिन्हाय क्रांति तक चला. इस क्रांति के चलते चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इससे बाद चीन में राष्ट्रवादी क्यूओमिनटैंग पार्टी, जिसे कॉमिंगतांग पार्टी भी कहा जाता है, उसकी सरकार बनी. चिंग वंश के अधीन वाले सारे इलाके क्यूओमिनटैंग सरकार के अधीन चले गए. चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली क्यूओमिनटैंग सरकार के शासनकाल में ही चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना पड़ा. 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने क्यूओमिनटैंग सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और परिणाम स्वरूप चीन में गृह युद्ध छिड़ गया. गृहयुद्ध में क्यूओमिनटैंग लोगों की हार हुई. इसके बाद हारे हुए लोग ताइवान चले गए और इस हिस्से में अपनी सरकार बना ली. वहीं, जीते हुए कम्युनिस्टों ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से मुख्यभूमि पर शासन शुरू कर दिया. दोनों ही तरफ के लोग दावा करने लगे कि वे पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं. 

वन चाइना पॉलिसी की शुरुआत

1949 में चीन में जब गृहयुद्ध खत्म हुआ और मुख्यभूमि पर कम्युस्टों का शासन हो गया तो इसी के साथ वन चाइना पॉलिसी अस्तित्व में आई. इस पॉलिसी के मुताबिक, चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. चीन ने तब से धमकी दे रखी है कि अगर कभी भी ताइवान ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित किया तो वह बल प्रयोग करेगा. यही नहीं, चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत हांगकॉन्‍ग, तिब्‍बत और शिनजियांग को भी अपना क्षेत्र मानता है. चीन अपनी नीतियां इसी वन चाइना पॉलिसी के ध्यान रखते हुए बनाता है. ताइवान को भी आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता है. चीन से राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को ताइवान से संबंध तोड़ने पड़ते हैं. अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर देश ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दे पाए हैं. इसी कारण ताइवान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कटा हुआ है. 

वन चाइना पॉलिसी के तहत अमेरिका को लेना पड़ा था ये फैसला

कई वर्षों बाद 1979 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने बीजिंग के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए तो अमेरिका को ताइवान के साथ कई समझौते तोड़ने पड़े और ताइपेई स्थित अमेरिकी दूतावास को भी बंद करना पड़ा. इसी साल अमेरिका ने ताइवान रिलेशन एक्ट पारित किया. इस एक्ट के मुताबिक, अमेरिका ताइवान की मदद की गारंटी लेता है. एक्ट में कहा गया है कि ताइवान अपनी रक्षा कर सके, इसके लिए अमेरिका को उसकी मदद जरूर करनी चाहिए. इसी के मद्देनजर अमेरिका इस द्वीपीय देश को हथियार बेचता रहता है. अमेरिका वकालत करता है कि चीन और ताइवान को मतभेदों को हल शांतिपूर्ण तरीके से निकालना चाहिए और रचनात्मक संवाद  को बढ़ावा देना चाहिए. अमेरिका ताइपेई में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ ताइवान के तहत यहां अपनी अनौपचारिक उपस्थिति रखता है और इसके माध्यम से वह राजनयिक गतिविधियों को अंजाम देता है.

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ताइवान के साथ बीजिंग का संबंध

बीजिंग ने वन चाइना पॉलिसी से काफी लाभ उठाया है. इस पॉलिसी की वजह से चीन ताइवान को कूटनीतिक दायरे से बाहर निकाल रखा है. ताइवान के साथ चीन की सांस्कृतिक और भाषाई समानता है. इस वजह से भी चीन उसे अपना इलाका बताता है. हालांकि, ताइवान के साथ बीजिंग के संबंध हमेशा से तनावपूर्ण बताए जाते हैं. इस द्वीपीय देश के साथ बीजिंग के संबंध के बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आती है. यह जरूर देखा जाता है कि कभी-कभी चीन ताइवान के साथ नरम रुख भी दिखाता है. वहीं, ताइवान की जनता खुद को चीनी नागरिक मानने की बजाय ताइवानी ही मानती है. चीन के विरोध के कारण ताइवान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है. ताइपेई अक्सर इसके लिए विरोध जताता है.

चीन के विरोध के कारण कोरोना महामारी के शुरुआती दो वर्षों में वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली से ताइवान को ऑब्जर्वर के रूप में अलग रखा गया था. ताइपेई ने इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की आलोचना की थी. हालांकि, जी 7 समूह के देशों ने डब्ल्यूएचओ फॉरम में ताइवान को शामिल करने के लिए कहा था. ताइवान चालीस से ज्यादा संगठनों में सदस्य का दर्जा रखता है, उनमें से ज्यादातर क्षेत्रीय हैं जैसे कि एशियन डिवेलपमेंट बैंक, एशिया इकोनॉमिक पेसिफिक कोऑपरेशन फॉरम और विश्व व्यापार संगठन. ताइवान कई निकायों में ऑब्जर्वर या अन्य स्थिति रखता है. केवल 4 देश ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध रखते हैं. किसी भी सरकार ने कभी भी चीन और ताइवान, दोनों देशों से एक साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं बनाए हैं.

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