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China Taiwan Conflict: क्यों शी जिनपिंग ताइवान पर हमला करने के बारे में अभी सपने में भी नहीं सोच सकते, 10 बड़े कारण जान लीजिए
China Taiwan Conflict: रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भले ही चीन रूस के पक्ष में रहा हो, लेकिन उसने युद्ध के समर्थन के चलते अपने आर्थिक हितों पर आंच नहीं आने दी. साथ ही चीन के ताइवान से आर्थिक रिश्ते भी हैं.
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China Taiwan Controversy: चीन -ताइवान विवाद समय समय पर गर्माता रहता है. चीन ताइवान पर हमला कर देगा ऐसी धमकी वो लगातार देता रहता है. कई बार माहौल तनावपूर्ण हो जाता है जैसा कि हाल के दिनों में है. मीडिया रिपोर्ट्स में भी कई बार दावा किया गया है कि चीन ने ताइवान पर हमला करने का मन बना लिया है लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि क्यों चीन ताइवान पर जल्दी हमला नहीं करेगा.
आइये आपको कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारण बताते हैं जिस वजह से आपको भी लग जायेगा कि चीन ताइवान पर जल्दी हमला नहीं करेगा.
1- रूस-यूक्रेन का युद्ध अन्य देशों के लिए सबक की तरह है, दुनिया देख रही कि रूस जैसी महाशक्ति का सामना यूक्रेन कैसे तनकर कर रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध को करीब एक साल होने को हैं, बावजूद इसके जंग जारी है. ये उन बड़े देशों के लिए नसीहत है जो छोटे देशों को हल्के में लेते हैं. किसी भी युद्ध का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और चीन अपने आर्थिक हितों को सर्वोपरि रखता है.
2- चीनी की अर्थव्यवस्था COVID-19 महामारी के कारण चरमराई हुई है. ऐसे में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग युद्ध छेड़ अतरिक्त बोझ नहीं लेना चाहेंगे. साथ ही चीन पाकिस्तान के आर्थिक संकट को देख कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगा. गौरतलब है कि कोरोना ने हाल के दिनों में चीन की अर्थव्यस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है.
3- मालूम हों कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भले ही चीन रूस के पक्ष में रहा हो, लेकिन उसने युद्ध के समर्थन के चलते अपने आर्थिक हितों पर आंच नहीं आने दी. साथ ही चीन के ताइवान से आर्थिक रिश्ते भी हैं. ताइवान आज सबसे बड़ा चिप उत्पादक देश है. ऐसे में चीन नहीं चाहेगा कि वह ताइवान पर हमला करके यूरोप या अमेरिका के साथ अपने व्यापार को प्रभावित होने दे.
4- चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नहीं चाहेंगे की जल्दबाजी में कोई ऐसा फैसला लिया जाए जिसका खामियाजा भुगतना पड़े. ऐसे में वह कोई युद्ध नहीं छेड़ना चाहेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि युद्ध के मैदान में उतरने का मतलब पूरी ताकत के साथ लड़ना है.
5- सैन्य शक्ति के मामले में ताइवान कहीं से भी कमजोर नहीं है, यह बात चीन को पहले से ही पता है. ताइवान सैन्य ताकत के मामले में यूक्रेन से कहीं आगे है. ऐसे में चीन रूस वाली भूल नहीं करेगा. बता दें कि ताइवान में 100 से अधिक द्वीप हैं. ताइवान के बाहरी द्वीप मिसाइलों, रॉकेटों और तोपों से अटे पड़े हैं. जो किसी भी हमले को नाकाम करने के लिए काफी हैं.
6- चीन को इस बात का अंदेशा है कि ताइवान पर हमला के बीच अमेरिका रास्ते में आ सकता है. बता दें कि अमेरिका बलपूर्वक ताइवान को लेने को लेकर हमेशा से खिलाफत करता रहा है. खुद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन के अलावा किसी ने भी सीधे तौर पर इस मामले को लेकर सकारात्मक जवाब नहीं दिया है. साथ ही चीन-अमेरिका प्रतिस्पर्द्धा भी एक बड़ी वजह है, जिस कारण वाशिंगटन ताइवान के खिलाफ किसी भी सैन्य अभियान में बीजिंग को खुली छूट नहीं दे सकता.
7- जापान ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह ताइवान के साथ है. दिवंगत प्रधान मंत्री अबे ने संकेत दिए थे कि टोक्यो ताइवान की रक्षा करने में मदद करेगा. इस बात का खौफ चीन के मन में जरूर होगा क्योंकि अगर चाइना ताइवान पर हमले का प्रयास करता है तो ऐसे में अमेरिका और जापान ताइवान के साथ आ सकते हैं.
8- चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यूक्रेन संकट के दौरान पश्चिम देशों की एकजुटता से अच्छी तरह वाकिफ हैं. यूरोपीय संघ चीन का प्रमुख व्यापारिक भागीदार है. ऐसे में चीन कोई अनावश्यक जोखिम नहीं उठाना चाहेगा.
9- ताइवान को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हालिया अमेरिकी बहुपक्षीय सुरक्षा और व्यापार पहलों की श्रृंखला में शामिल नहीं किया जा सकता है लेकिन द्वीप को रक्षा तंत्र जैसे कि क्वाड, औकस, आदि के अभिन्न अंग के रूप में माना जाता है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने के लिए न केवल जापान बल्कि भारत और ऑस्ट्रेलिया ताइवान के बचाव में आ सकते हैं. ऐसे में चीन शायद तीन बड़ी सैन्य शक्तियों का एक साथ सामना करने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा.
10- बता दें कि आसियान चीन के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में उभरा है और उनका द्विपक्षीय व्यापार कुछ वर्षों में $1 ट्रिलियन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तैयार है. इसलिए इसकी बहुत कम संभावना है कि बीजिंग ऐसी कार्रवाई का सहारा लेगा जो दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को चीन को दुश्मन के रूप में देखने के लिए मजबूर करेगी.
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