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Benjamin Netanyahu: इजरायल में नेतन्याहू की वापसी के क्या हैं मायने? जानें फिलिस्तीनियों पर क्या होगा असर

Benjamin Netanyahu: इजरायल हमेशा से ही अपने दुश्मनों से घिरा रहा है, जो उसके लिए हमेशा से एक बड़ी चुनौती की तरह है, लेकिन पिछले कुछ सालों से देश में स्थिर सरकार को लेकर भी चिंता है.

Benjamin Netanyahu: इजरायल में एक बार फिर बेंजामिन नेतन्याहू प्रधानमंत्री का पद संभालने जा रहे हैं. उनके नेतृत्व वाले गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया है और दुनियाभर से तमाम बड़े नेता उन्हें बधाई दे रहे हैं. नेतन्याहू ने 120-सदस्यीय संसद में 64 सीट जीतकर बहुमत हासिल किया है. पिछले तीन साल में पांचवीं बार हुए चुनाव में नेतन्याहू की वापसी हुई है. प्रधानमंत्री याइर लापिड को चुनौती देते हुए नेतन्याहू ने एक बार फिर सत्ता अपने हाथ में ले ली. अब इजरायल के लोगों को उम्मीद है कि नेतन्याहू के नेतृत्व में उन्हें एक स्थिर सरकार मिलेगी. 

जब सत्ता से बाहर हुए थे नेतन्याहू
बेंजामिन नेतन्याहू लगातार 12 सालों से इजरायल की सत्ता पर काबिज थे, एक दौरा ऐसा था जब उनके टक्कर में कोई भी विपक्षी नेता नजर नहीं आता था, लेकिन साल 2021 में अचानक कुछ ऐसा हुआ कि नेतन्याहू के हाथों से कुर्सी छिन गई. ये वो दौर था जब नेतन्याहू कई तरह के आरोपों से घिर चुके थे. 2020 में पहली बार ऐसा हुआ कि एक प्रधानमंत्री के खिलाफ इजरायल में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज हुआ. उन पर आरोप था कि उन्होंने बड़े बिजनेसमैन और मीडिया दिग्गजों के साथ मिलकर रिश्वत और धोखाधड़ी का काम किया. इसी बीच विपक्षी गठबंधन के मजबूत होने के चलते नेतन्याहू को इस्तीफा देना पड़ा और प्रधानमंत्री के तौर पर यहां उनके सफर पर ब्रेक लग गया. 

पांचवीं बार मिलेगा प्रधानमंत्री पद
नेतन्याहू अब पांचवीं बार प्रधानमंत्री का पद संभालने के लिए तैयार हैं. याइर लापिड जिन्होंने एक साल पहले नेतन्याहू के खिलाफ पूरा माहौल तैयार किया था, अब उन्होंने भी नेतन्याहू को जीत की बधाई दी है. फिलहाल इजरायल में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. यानी अब नेतन्याहू के हाथ में इस ताकतवर देश की कमान होगी. नेतन्याहू इजराइल में सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं. उन्होंने लगातार 12 साल तक और कुल मिलाकर 15 साल तक देश पर शासन किया. जिसके बाद एक बार फिर उनका सफर शुरू हो रहा है. 

स्थिर सरकार देने की चुनौती
इजरायल हमेशा से ही अपने दुश्मनों से घिरा रहा है, जो उसके लिए हमेशा से एक बड़ी चुनौती की तरह है, लेकिन पिछले कुछ सालों से देश में स्थिर सरकार को लेकर भी चिंता है. साल 2018 के बाद से ही इजरायल में राजनीतिक अस्थिरता वाले हालात हैं. आलम ये है कि तीन साल में देश में पांच बार चुनाव हो चुके हैं. इसका सीधा कारण ये है कि यहां पूर्ण बहुमत के साथ किसी की भी सरकार नहीं बनती है, इसीलिए छोटे दलों के गठबंधन से सरकार बनाई जाती है. जो वक्त आने पर हाथ खींच लेते हैं और दोबारा चुनाव वाले हालात बन जाते हैं. अब नेतन्याहू के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वो कैसे इजरायल में स्थिर सरकार देते हैं. 

फिलिस्तीन का मुद्दा काफी अहम
अब इजरायल में नेतन्याहू की वापसी को फिलिस्तीन संघर्ष से भी जोड़कर देखा जा रहा है. बेंजामिन नेतन्याहू खुद फिलिस्तीनी विद्रोहियों के खिलाफ कहर बनकर टूटे हैं, वहीं इस बार वो इजरायल के नेता इतामार बेन ग्विर के साथ मिलकर सत्ता में आए हैं. बेन ग्विर वो नेता हैं जो खुले तौर पर फिलिस्तीन के खिलाफ हथियारों का इस्तेमाल करने का एलान भी कर चुके हैं. साथ ही उन्होंने इजरायल में फिलिस्तीनियों के लिए वफादारी परीक्षण की भी वकालत की है. ग्विर की पार्टी ने पिछले चुनाव की तुलना में इस बार काफी बेहतर प्रदर्शन किया है. 

खुश नहीं फिलिस्तीनी नेता 
फिलिस्तीनी राजनीतिक पार्टी फतह (Fatah) के प्रवक्ता ने अलजजीरा से बात करते हुए इस मामले को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि इस बार जो सरकार बन रही है उसमें पिछली से ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देता है, बस दोनों ही इस बात को लेकर कॉम्पिटिशन करते हैं कि इजरायल में अरब आबादी के प्रति कौन ज्यादा नस्लवादी है. पिछले साल पीएम बने याइर लापिड और नेतन्याहू में इस बात की भी प्रतिस्पर्धा है कि विवादित इलाके और लोगों पर कब्जे को बनाए रखने के लिए कौन ज्यादा कट्टरवादी है. उन्होंने बताया कि फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल की हिंसा लगातार बढ़ी है, इसीलिए याइर लापिड को उदारवादी नहीं कहा जा सकता है, कम वक्त में उनके हाथों ज्यादा खून से रंगे हैं. 

इजरायल में रहने वाले फिलिस्तीनियों पर कितना असर?
अब सवाल ये भी उठ रहा है कि बेंजामिन नेतन्याहू की वापसी के बाद इजरायल में रहने वाले फिलिस्तीनियों पर क्या असर होगा. करीब 45 लाख फ़िलिस्तीनी ऐसे इलाकों में रहते हैं, जो इजरायल की सेना के अधीन है. यानी इन हिस्सों पर इजरायल का ही पूरा कंट्रोल है. ये इजरायल के कब्जे वाला ईस्ट यरूशलम है. अब कट्टरवादी नेता बेन ग्विर का सरकार में शामिल होना इस पूरे इलाके के लिए चिंता की बात माना जा रहा है. आशंका है कि इस पूरे इलाके में विद्रोही एक बार फिर एक्टिव हो सकते हैं. इसका ताजा उदाहरण भी देखने को मिल गया है. नेतन्याहू की जीत के तुरंत बाद गाजा के लड़ाकों ने इजरायल की तरफ कई रॉकेट दागे हैं. जिसके बाद अब इजरायल भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है. 

ये भी पढ़ें- Imran Khan Attack: इमरान खान पर हमले के बाद पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात, सेना को सौंपी जा सकती है कमान

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