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तिब्बत के समर्थन में अमेरिका ने पास किया नया कानून, दलाई लामा चुनने में चीन की दखलंदाज़ी का किया कड़ा विरोध

ये नया कानून अमेरिका ने ऐसे समय में लागू किया है जब लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत और चीन के बीच टकराव चल रहा है. हालांकि, इस बिल को इस साल की शुरुआत में अमेरिकी संसद में पेश किया गया था लेकिन सोमवार देर रात इसे पारित किया गया.

नई दिल्ली: एलएसी पर भारत से चल रहे टकराव के बीच अमेरिका ने तिब्बत में दलाई लामा चुनने की प्रक्रिया में चीनी सरकार की दखलदांजी का कड़ा विरोध किया है. तिब्बत में धार्मिक-आजादी के समर्थन में अमेरिकी संसद ने एक नया कानून पारित किया है. नए कानून में साफ तौर से कहा गया है कि जब बौद्ध धर्म का पालन भारत, नेपाल, भूटान और मंगोलिया जैसे देशों में भी किया जाता है तो फिर चीन की कम्युनिस्ट सरकार ही क्यों धार्मिक-गुरू ('दलाई लामा') के चुनने की प्रक्रिया में टांग अड़ाती है.

सोमवार देर रात अमेरिकी संसद ने तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट को पारित कर दिया. इस बिल में तिब्बत में धार्मिक-अजादी के साथ-साथ लोकतंत्र को मजबूत करने, पर्यावरण सरंक्षण, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को बचाने का समर्थन किया गया है. साथ ही तिब्बत से एनजीओ आदि को फंडिंग देने पर जोर दिया गया है. नए अमेरिकी कानून में दलाई-लामा समर्थित लोकतांत्रिक सरकार को पूरी तरह से मंजूरी देते हुए तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर चीनी सरकार को बातचीत करने के लिए कहा गया है. ऐसा ना करने पर चीन पर पांबदियां लगाने तक के लिए इस नए कानून में कहा गया है.

नए कानून में साफ तौर से कहा गया है कि बौद्ध-धर्म भारत, नेपाल, भूटान, मंगोलिया, चीन रूस और अमेरिका इत्यादि देशों में माना जाता है, लेकिन तिब्बती बौद्ध-गुरू यानी दलाई-लामा चुनने की प्रक्रिया में सिर्फ चीनी सरकार ही दखलंदाजी करती है. कानून में कहा गया है कि तिब्बती बौद्ध धर्म में हालांकि नए दलाई लामा चुनने को लेकर साफ तौर से परंपरा के बारे में कहा गया है, इसके बावजूद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चायना (पीआरसी) की सरकार इसमें टांग अड़ाती है. इसके लिए बाकायदा चीन ने कानून बना रखा है.

आपको बता दें कि तिब्बत में दलाई लामा बौद्ध धर्म के सबसे बड़े गुरू माने जाते हैं और एक पंरपरा के तहत उन्हें चुना जाता है. लेकिन तिब्बत पर कब्जे के बाद से चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपनी मर्जी से पंचेन-लामा और दलाई लामा चुनने का दावा करती है.

नए अमेरिकी कानून में तिब्बत में मानवधिकारों पर भी जोर दिया गया है. इसके अलावा तिब्बत की राजधानी ल्हासा में अमेरिकी काउंसलेट खोलने की बात भी की गई है.

ये नया कानून अमेरिका ने ऐसे समय में लागू किया है जब लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत और चीन के बीच टकराव चल रहा है. हालांकि, इस बिल को इस साल की शुरुआत में अमेरिकी संसद में पेश किया गया था लेकिन सोमवार देर रात इसे पारित किया गया.

नए अमेरिकी कानून में तिब्बत में चीन द्वारा बांध और नदियों के दुरूपयोग पर भी सवाल खड़े किए गए हैं. कहा गया है कि तिब्बत में 'सस्टेनेबल-डेवलपमेंट' होना चाहिए.

आपको बता दें कि 1962 युद्ध के तुरंत बाद भी अमेरिका ने भारत को तिब्बती मूल के युवाओं की एक अलग फोर्स, एसएफएफ यानि स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (भारती सेना कि 'विकास रेजीमेंट) खड़ी करने में मदद की थी. इसके लिए इन एसएफएफ कमांडोज़ की ट्रेनिंग तक अमेरिका में सीआईए (अमेरिकी खुफिया एजेंसी) के सेंटर्स में कराई गई थी. हालिया एलएसी विवाद के दौरान इन्हीं एसएफएफ कमांडोज़ ने पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में कैलाश पर्वत श्रृंखला की कई पहाड़ियों (मुखपरी, गुरंग हिल,रेचिन ला इत्यादि) पर अधिकार जमाने में मदद की थी. इसी दौरान एक ऑपरेशन में लैंड माइन की चपेट में आने से तिब्बती मूल के एसएफएफ कमांडो नेयिमा तेनजिन वीरगति को प्राप्त हो गए थे.

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नीरज राजपूत वॉर, डिफेंस और सिक्योरिटी से जुड़े मामले देखते हैं. पिछले 20 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं और प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का अनुभव है. एबीपी न्यूज के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अनकट के 'फाइनल-असॉल्ट' कार्यक्रम के प्रेजेंटर भी हैं.
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