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तालिबान के अतीत का जुूल्मभरा शासनकाल: महिलाओं पर थी कई कड़ी पाबंदियां, गैर-मुसलमानों के लिए था अलग ड्रेस कोड

बहुत से लोगों को भय है कि तालिबान शासन आने के बाद महिलाओं और जातीय अल्पसंख्यकों की आजादी समाप्त हो जाएगी और पत्रकारों और गैर सरकारी संगठनों के काम करने पर पाबंदियां लग जाएंगी.

नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान ने देश में शांति का नया युग लाने का वादा किया है, लेकिन अफगान इससे आश्वस्त नहीं हैं और उनके दिलों में तालिबान का पुराना बर्बर शासन लौटने का भय है. जिन लोगों को तालिबान का शासन याद है और जो लोग तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में रह चुके हैं वे तालिबान के भय से वाकिफ हैं. जिन इलाकों में तालिबान ने हाल में कब्जा किया है वहां सरकारी कार्यालय, दुकानें, स्कूल आदि अब भी बंद हैं और नागरिक छिपे हुए हैं या फिर राजधानी काबुल जा रहे हैं. जानिए 20 साल पहले तालिबान के दौर में अफगानिस्तान में कैसा शरिया कानून लागू था.

देश में तालिबान के कट्टर शरिया शासन लौटने की आहटें

देश में तालिबान के कट्टर शरिया शासन लौटने की आहटें सुनाई देने लगी हैं, जिसके तले देश की जनता ने 1996 से 2001 का वक्त बिताया था. 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से तालिबान शासन को समाप्त किया. बहुत से लोगों को भय है कि तालिबान शासन आने के बाद महिलाओं और जातीय अल्पसंख्यकों की आजादी समाप्त हो जाएगी और पत्रकारों और गैर सरकारी संगठनों के काम करने पर पाबंदियां लग जाएंगी.

15 साल तालिबान ने किया था क्रूर शासन

साल 1996-2001 के तालिबान के क्रूर शासन में महिलाओं को लगातार मानवाधिकारों के उल्लंघन, रोजगार और शिक्षा से वंचित किया गया, बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया गया और एक पुरुष ‘‘संरक्षक’’ या महरम के बिना उनके घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई.

सुन्नियों में कई संप्रदाय हैं, जिनमें मुख्य तौर पर चार इमाम बहुत ही अहम हैं, उनमें इमाम अबु हनीफा, इमाम मालिक, इमाम शाफी और इमाम अहमद बिन हंबल प्रमुख हैं. अफगानिस्तान के सुन्नियों में इमाम अबु हनीफा के मानने वाले हैं और तालिबान के दौर में भी इमाम अबु हनीफा का ही फिक्ह (शरिया कानून) लागू था.

महिलाओं पर पाबंदियां

इस कानून के मुताबिक देश का मुखिया कोई मुसलमान मर्द ही हो सकता था, औरत नहीं. महिलाओं के अकेले बाहर निकलने और काम करने पर पांबदी थी और उनको बुर्का में रहना अनिवार्य था. जरूरत पड़ने पर महिलाएं अपने महरम, जिनसे शादी नहीं हो सकती जैसे- पिता, भाई, चाचा, मामू, फूफा, दादा, नाना के साथ ही बाहर निकल सकती थीं. उस दौरान महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी थी. सिर्फ 8 साल की उम्र तक तालीम की इजाजत थी. महिलाओं के लिए हाई हील के जूते पहनने पर पाबंदी थी. साथ ही अस्पतालों में मर्द डॉक्टरों के काम करने पर भी पाबंदी थी.

क्रूर कानून-

  • चोरी पर हाथ काटने का आदेश था.
  • रेप पर संगसार यानि पत्थर से मार देने का आदेश था.
  • अल्पसंख्यकों के लिए अपने धर्म के मानने की इजाजत थी, लेकिन उनपर अलग ड्रेस कोड यानि पीला कपड़ा पहनने का आदेश था.

बता दें कि तालिबान ने लोगों को आश्वासन दिया है कि सरकार और सुरक्षा बलों के लिए काम करने वालों पर प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी और जीवन, संपत्ति और सम्मान की रक्षा की जाएगी. वे देश के नागरिकों से देश नहीं छोड़ने की भी अपील कर रहे हैं, लेकिन तालिबान की हालिया कार्रवाई कुछ और ही तस्वीर पेश करती है.

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जब तालिबान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को बेरहमी से मारकर बिजली के खंभे से लटका दिया था

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