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असद एनकाउंटर: यूपी पुलिस का इंतजार कर रही है सुप्रीम कोर्ट की 'अग्निपरीक्षा', जानिए अब क्या होगा?

विपक्ष के सवाल के बीच यूपी पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की अग्निपरीक्षा से भी गुजरना होगा. भारत में फेक एनकाउंटर को देखते हुए साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन बनाया था.

उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी असद अहमद के एनकाउंटर के बाद सरकार यूपी पुलिस की पीठ थपथपा रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी एसटीएफ के प्रमुख अमिताभ यश और उनकी टीम की तारीफ की है. 48 दिन बाद पुलिस के आला अधिकारी राहत की सांस ले रहे हैं.

इसी बीच विपक्ष ने एनकाउंटर में पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठा दिया है. विपक्ष के सवाल के बीच यूपी पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की अग्निपरीक्षा से भी गुजरना होगा. भारत में फेक एनकाउंटर को देखते हुए साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में इसको लेकर कुछ नियम तय किए हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट की इसी गाइडलाइन का यूपी पुलिस के एसटीएफ को पालन करना होगा. सुप्रीम कोर्ट की इस अग्निपरीक्षा में अगर यूपी पुलिस फेल होती है, तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई भी हो सकती है. अगर एनकाउंटर मामले में यूपी एसटीएफ का कोई अधिकारी दोषी पाया जाता है, तो उन पर हत्या का केस भी चल सकता है.

इस स्टोरी एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के नियम और असद केस में उठ रहे सवालों के बारे में विस्तार से जानते हैं...

असद एनकाउंटर पर क्यों उठ रहा सवाल?

एनकाउंटर के वक्त पुलिस को खरोंच तक नहीं आई- कांग्रेस के कद्दावर नेता पीएल पुनिया ने एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए इसे संदिग्ध बताया है. पुनिया ने कहा कि एनकाउंटर के समय गोली दोनों तरफ से चलती है पर इस एनकाउंटर में किसी भी पुलिसकर्मी को कोई खरोंच तक नहीं आई है. 

उन्होंने कहा कि असद ग्रेजुएशन का छात्र था और उसके एनकाउंटर की जांच मानवाधिकार आयोग को करना चाहिए. यूपी पुलिस ने एनकाउंटर के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए दोनों तरफ से गोली चलने की बात कही थी, लेकिन कितने पुलिसकर्मी इसमें घायल हुए. इसका आंकड़ा नहीं दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में असद के दो गोली लगने की पुष्टि हुई है. 3 डॉक्टरों की टीम ने करीब 5 घंटे तक पोस्टमार्टम किया. इसके मुताबिक असद को एक गोली पीछे से पीठ में लगकर दिल और सीने को चीरते हुए बाहर निकल गई, जबकि दूसरी गोली सीने में लगी और गले में जाकर फंस गई.

पुलिस के इस एक्शन पर भी सवाल उठ रहे हैं. अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस को पहले उसके पांव पर गोली मारना होता है. 

उमेश हत्या के 3 आरोपी ढेर, 2 फरार- उमेश पाल हत्याकांड के 6 में से 3 आरोपी एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं. असद की मौत के बाद सोशल मीडिया पर सपा महासचिव रामगोपाल यादव का एक बयान वायरल हो रहा है. 

वीडियों में रामगोपाल कह रहे हैं- सरकार उमेश पाल की हत्या के असली दोषियों को सजा दिलाना नहीं चाहती है. इसलिए अब कुछ लोगों का एनकाउंटर करेगी. रामगोपाल ने अतीक बेटे के एनकाउंटर की भी भविष्यवाणी की थी.

ऐसे में सोशल मीडिया पर असद की हत्या पूर्व नियोजित कही जा रही है. हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे मजहब के आधार पर हत्या बताया है.

मरने वाले असद और गुलाम के हाथ में बंदूक कैसे- असद और गुलाम के एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर दोनों की तस्वीर वायरल हो रही है. तस्वीर में मृत पड़े असद और गुलाम के हाथ में विदेशी बंदूक है, जिसको लेकर सोशल मीडिया यूजर्स सवाल उठा रहे हैं. 

यूजर्स का कहना है कि दोनों ओर से गोलीबारी हुई और जब गोली लगी तो शरीर के नीचे गिरने के बावजूद बंदूक हाथ में कैसे रह गई? 

एनकाउंटर पर पुलिस की थ्योरी में क्या है?
असद एनकाउंटर के बाद यूपी पुलिस के 2 बड़े अधिकार एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार और एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया. प्रशांत कुमार ने बताया कि पुलिस को इनपुट मिला था कि असद कुछ लोगों के साथ अतीक के काफिले पर हमला कर उसे छुड़ा सकता है.

पुलिस को उसके झांसी में होने का इनपुट मिला, जिसके बाद एसटीएफ ने उसका पीछा किया. एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश ने कहा कि हम उसे जिंदा पकड़ना चाहते थे, लेकिन उधर से गोलीबारी हो गई, जिसमें असद और गुलाम ढेर हो गए.

अतीक का काफिला साबरमती से प्रयागराज जाने के दरम्यान झांसी होकर ही गुजरता है. झांसी यूपी और मध्य प्रदेश का बॉर्डर है.

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की 2 टिप्पणी, जो बढ़ा सकती है टेंशन

1. हम गणतंत्र को अपने ही बच्चों की हत्या की इजाजत नहीं दे सकते हैं. फेक एनकाउंटर को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर माना जाना चाहिए. (साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट)

2. हमारे अपराधिक न्याय प्रणाली में एक्स्ट्राज्यूडिशियल किलिंग कानूनी नहीं है और इसे राज्य पोषित आतंक के बराबर माना जाना चाहिए. (साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट)

एनकाउंटर को लेकर संविधान में क्या नियम है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ध्रुव गुप्त कहते हैं- संविधान और कानून में एनकाउंटर का कहीं भी जिक्र नहीं है. हां, सीआरपीसी की धारा 46 (2) में पुलिस को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है. 

गुप्ता आईपीसी की धारा 100 का भी जिक्र करते हैं और कहते हैं- इसी धारा के अंतर्गत पुलिस पर एनकाउंटर करने के बावजूद हत्या का केस दर्ज नहीं किया जाता है. पुलिस एनकाउंटर को खुद के बचाव में की गई प्रतिक्रिया बताती है.

हालांकि, फर्जी एनकाउंटर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में 16 लाइन का एक गाइडलाइन तैयार किया. एनकाउटंर के बाद इसका पालन करना अनिवार्य किया गया है.

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?

- किसी अपराधी के बारे में अगर कोई खुफिया जानकारी मिलती है तो उसे लिखित या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से आंशिक रूप में ही सही पर रिकॉर्ड अवश्य की जाए.

- सूचना के आधार पर पुलिस एनकाउंटर के दौरान हथियारों का इस्तेमाल करती है और ऐसे में संदिग्ध की मौत हो जाती है तो आपराधिक जांच के लिए एफआईआर अवश्य दर्ज की जाए.

- एनकाउंटर की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी करे, जो हत्या से जुड़े आठ बेसिक पहलुओं पर जरूर विचार करें.

- एनकाउंटर में हुई सभी मौतों की मजिस्ट्रियल जांच जरूरी है. जिलाधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे.

- एनकाउंटर के तुरंत बाद मौत के संबंध में तत्काल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य आयोग को सूचित करें.

- एनकाउंटर में अगर आरोपी घायल हो जाता है, तो तुरंत उसे मेडिकल सहायता मुहैया कराई जाए. यह अनिवार्य है.

- एनकाउंटर में मरने वाले या घायल होने वाले आरोपी के परिवार के लोगों को तुरंत इसकी सूचना दी जाए. 

- एनकाउंटर की जांच होने तक पुलिस अधिकारी और सिपाही का प्रमोशन नहीं होगा. कोई पुरस्कार नहीं मिल सकेगा.

- गलत या फर्जी एनकाउंटर में दोषी पाए गए पुलिसकर्मी को निलंबित कर उन पर उचित कार्रवाई की जाएगी. कार्रवाई और नियमों के पालन नहीं होने पर पीड़ित सत्र न्यायाधीश से इसकी शिकायत कर सकता है.

- दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों का हथियार जब्त कर लिया जाए. पुलिस को एक सरकारी वकील मिलेगा, जिसके जरिए वो कोर्ट में अपना पक्ष रख सकते हैं.

एनकाउंटर को लेकर मानवाधिकार का भी नियम सख्त
 एनकाउंटर को लेकर मानवाधिकार आयोग का भी नियम काफी सख्त है. आयोग ने अपने दिशा-निर्देश में कहा है कि एनकाउंटर के बाद लोकल थाना प्रभारी तुरंत मामला दर्ज कर जांच की संस्तुति आगे भेज दें.

आयोग के नियम के मुताबिक एनकाउंटर की जांच सीआईडी या किसी स्वतंत्र एजेंसी ही कर सकती है. आयोग ने कहा है कि चूंकि पुलिस एनकाउंटर में शामिल रहती है, इसलिए निष्पक्ष जांच नहीं हो पाएगी. 

असद एनकाउंटर में अब आगे क्या हो सकता है?
असद के अंतिम संस्कार के बाद जिलाधिकारी मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे सकते हैं. जिलाधिकारी के आदेश के बाद मजिस्ट्रेट सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन को देखते हुए सभी पहलुओं की जांच करेगा. जांच होने के बाद इसकी रिपोर्ट सरकार, मानवाधिकार आयोग और असद के परिवार को दिया जाएगा.

असद की मां ने सुप्रीम कोर्ट में पहले ही उसके एनकाउंटर की आशंका जताते हुए अर्जी दाखिल की थी. अगर अब फिर उसकी मां हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रूख करती हैं तो कोर्ट इस मामले में कोई फैसला कर सकता है.

2019 के हैदराबाद एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच बैठाई थी. इस एनकाउंटर को जांच एजेंसी ने फेक पाया था और इसमें शामिल अधिकारियों पर हत्या का केस दर्ज करने के लिए कहा था. 

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा है कि परिवार को हाईकोर्ट जाना चाहिए या हाईकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर इसकी जांच करानी चाहिए. असद के परिवार की ओर से एनकाउंटर पर कोई भी रिएक्शन अभी तक सामने नहीं आया है.

मां को हत्या का शक था, अतीक ने शेर बताया था
उमेश पाल केस में असद का नाम आने के बाद से ही उसकी मां शाइस्ता को एनकाउंटर का शक था. शाइस्ता ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. शाइस्ता के पति अतीक से भी उसके नाम आने पर नाराजगी जाहिर की थी. शाइस्ता का कहना था कि पुलिस अब उसे मार देगी.

लेकिन अतीक उमेश पाल हत्या केस में असद के नाम आने से खुश था. उसने बेटे को शेर बताया था और शाइस्ता को फटकार लगाई थी. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि असद अपने सभी भाइयों में सबसे आलसी था और उसके लिए अतीक हमेशा उसे डांटता था.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अतीक के डांट पड़ने के बाद ही उसने गुड्डू मुस्लिम के साथ रहने लगा और हथियार चलाना शुरू कर दिया. असद पिता के प्लान को पूरा करने के लिए उमेश पाल की हत्या के दिन खुद मोर्चा संभाला था.

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