समाजवादी पार्टी में शुरू हुआ बैठकों का दौर, सोशल इंजीनियरिंग और इलेक्शन एजेंडा पर अखिलेश करेंगे मंथन
अखिलेश यादव ने 9 अप्रैल को समाजवादी पार्टी के पिछड़ी जाति के नेताओं की बैठक बुलाई है. गोरखपुर और फूलपुर में पार्टी ने नS सोशल इंजीनियरिंग के फ़ार्मूले को आज़माया. दोनों उप चुनाव में जीत हुई.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (एसपी) में 9 अप्रैल से बैठकों का दौर शुरू हो गया है. 2019 के लोक सभा चुनाव के लिए पार्टी कोई चूक नहीं करना चाहती है. बीएसपी से गठबंधन के बाद कौन कहॉं से लड़ेगा ? चुनावी एजेंडा और नारे क्या होंगे. ज़मीन पर बीएसपी समर्थकों के साथ तालमेल कैसे बनाया जाए ? इस पर चर्चा के लिए अखिलेश यादव ने अलग अलग समाज के नेताओं की अलग अलग मीटींग बुलाई है.
अखिलेश यादव ने 9 अप्रैल को समाजवादी पार्टी के पिछड़ी जाति के नेताओं की बैठक बुलाई है. गोरखपुर और फूलपुर में पार्टी ने नS सोशल इंजीनियरिंग के फ़ार्मूले को आज़माया. दोनों उप चुनाव में जीत हुई. गोरखपुर में पार्टी ने निषाद और फूलपुर में पटेल जाति को टिकट दिया था.अखिलेश यादव अब यादवों के अलावा बाकी पिछड़ी जातियों को भी पार्टी से जोड़ने में जुटे है. ये काम आसान नहीं है.
यादवों के दबदबे के कारण अन्य पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी से कभी मन से नहीं जुड़ पाईं. लेकिन अखिलेश अब अपनी पार्टी का सामाजिक समीकरण बदलना चाहते हैं. एमवाई यानी मुस्लिम और यादव के फ़ार्मूले के विस्तार के लिए वे रास्ता ढूंढ़ रहे हैं. मौर्य, कुशवाह, निषाद, कश्यप, राजभर, लोध. प्रजापति, सैनी और गुर्जर जैसी जातियों को जोड़ने के एजेंडे पर हैं अखिलेश. पिछले लोक सभा और विधान सभा चुनाव में ग़ैर यादव पिछड़ों ने बीजेपी का साथ दिया। लेकिन सत्ता में भागीदारी को लेकर इनका मोह भंग होने लगा है.
अगले दिन यानी 10 अप्रैल को यादव बिरादरी के नेताओं की बैठक बुलाई गई है। पिछले कई दशकों से इस समाज के लोग पहले मुलायम सिंह के साथ रहे। अब सब अखिलेश यादव का झंडा ढो रहे हैं. पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यादव और बीएसपी के दलित कार्यकर्ताओं के दिल मिलाने की है. 23 सालों तक दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे. समाजवादी पार्टी ने मायावती राज में एससी एसटी एक्ट के बहाने यादवों पर झूठा केस कराने को बड़ा मुद्दा बनाया.लेकिन बदले हुए हालात में अखिलेश बदल गए हैं.पर सवाल ये है कि क्या दलित और यादव बिरादरी के लोग सब भुला कर गले मिल पायेंगे ?
एसपी के मुस्लिम नेताओं की मीटिंग 11 अप्रैल को होगी. इस समाज का वोट एसपी, बीएसपी और कांग्रेस में बंटता रहा है. वैसे तो बीते 26 सालों से एसपी मुसलमानों की पहली पसंद रही है. लेकिन कुछ इलाक़ों में वे बीएसपी के हाथी पर ही सवार रहे. अब जब बीएसपी और एसपी का गठबंधन हो चुका है.ऐसे हालात में इस समाज के वोटों के बंटवारे की चिंता ख़त्म हो गई है. लेकिन ये भी सच है कि ग़ैर यादव पिछड़ो और मुसलमानों में समन्वय बनाने में पार्टी नेताओं को मेहनत करनी पड़ेगी.
बीजेपी ने भी कोटे में कोटा का दांव चल दिया है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने पिछड़ों और दलितों के लिए आरक्षण में आरक्षण की बात कही है. मतलब यहां भी बिहार की तरह पिछड़े-अति पिछड़े और दलित-महादलित का बंटवारा हो सकता है. लेकिन अखिलेश ने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया. वे हर हाल में लोक सभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए एक नया सामाजिक समीकरण तैयार कर लेना चाहते हैं. बुआ मायावती का आशीर्वाद तो उन्हें पहले ही मिल चुका है.
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