बिहार: छपरा में बाढ़ के पानी में बहता जा रहा है हजारों सालों का इतिहास
पानी की वजह से कटान वाली जगह पर भी कुछ पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं जैसे ईंटें, टूटे मिट्टी के बर्तन और पत्थर आदि बिखरे पड़े दिखे. इनको सुरक्षित रखने के नाम पर कोई कोशिश होती नहीं दिख रही है.

पटना: बिहार में आई बाढ़ से आम जनजीवन तो अस्त व्यस्त हुआ भी लेकिन इसके साथ ही कई ऐतिहासिक चीजों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. बिहार के छपरा जिले का चिरांद भी इन्हीं में से एक है. कुषाण काल का इतिहास अपनी मिट्टी में संजोए यह स्थान गंगा किनारे मौजूद है. माना जाता है कि यह स्थान नवपाषाण काल से मध्ययुगीन भारत के इतिहास को एक जगह पर पिरो कर रखने वाला देश का महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है.
गंगा, सोन और सरयू नदी के संगम वाले इस स्थान को यूं तो सरकार ने पर्यटन केंद्र घोषित करने के साथ साथ संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया हुआ है. बावजूद इसके हर साल गंगा नदी में उफान की वजह से इस ऐतिहासिक स्थान में कटान की वजह से मिट्टी और उसके अंदर दबी चीजें पानी के साथ बह जाती है, जिसकी वजह से यह स्थान और इसका महत्व धीरे-धीरे खुद इतिहास बनता जा रहा है.
एबीपी न्यूज़ की टीम जब बिहार के छपरा में बाढ़ का मुआयना करने पहुंची तो पाया कि बाढ़ से फिलहाल लोगों को राहत मिल रही है. गंगा के जलस्तर में बीते दो दिनों में दो मीटर तक कमी दर्ज की गई है. छपरा आरकेलॉजिकल सोसाइटी ने चिरांद में 1954 में उत्खनन किया और पाया कि यहां गंगा किनारे 2600 साल पहले की वस्तुएं मौजूद हैं. माना जाता है कि 600 ईसा पूर्व का इतिहास इस जगह मिट्टी में दफ्न है. ऐसे में सरकार ने इस स्थान को संरक्षित स्थल घोषित कर दिया. नीतीश कुमार सरकार ने चिरांद को पर्यटन स्थल घोषित करने के साथ यहां थीम पार्क बनाने की भी घोषणा की है.
हालांकि इन सबके बीच जिस तरीके से इस जगह हर साल कटान की वजह से इतिहास पानी में बहता जा रहा है, इससे सरकार और पुरातत्व विभाग पर उपेक्षा का आरोप लगना स्वाभाविक है. स्थानीय लोगों के मुताबिक हर साल पानी बढ़ने की वजह से अबतक इस स्थान का कम से कम 50 मीटर का हिस्सा पानी में बह चुका है. यानी एक किलोमीटर लंबे और करीब 500 मीटर चौड़े इस स्थान का लगभग 10वां हिस्सा अबतक नष्ट हो चुका है बावजूद उसके सरकार अभी भी इसे बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास करती नजर नहीं आ रही है.
पानी की वजह से कटान वाली जगह पर भी कुछ पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं जैसे ईंटें, टूटे मिट्टी के बर्तन और पत्थर आदि बिखरे पड़े दिखे. इनको सुरक्षित रखने के नाम पर कोई कोशिश होती नहीं दिख रही है. स्थानीय लोगों ने इस स्थान को सुरक्षित रखने के लिए चिरांद विकास परिषद नाम से एक संस्था का गठन किया, जो लगातार अपनी तरफ से इस जगह को सुरक्षित रखने के प्रयास करती रहती है लेकिन जाहिर है बिना सरकारी सहयोग के ये काम पूरी तरह मुमकिन नहीं है. संस्था के सचिव श्रीराम तिवारी ने बताया कि कैसे मिट्टी के अंदर महत्वपूर्ण वस्तुएं दबी हुई हैं और बाढ़ के सीजन में इस स्थान के कटान की वजह से इस जगह का विनाश होता जा रहा है.

चिरांद गांव के रहने वाले दिलीप ने घाटों पर महत्वपूर्ण चीजों के बारे में बताया कि यहां की ईंटें, पत्थर और पुरातात्विक महत्व के बर्तन यहां वहां बिखरे पड़े हैं लेकिन कोई इनकी सुध लेने वाला नहीं है. दिलीप ने कटान वाली जगह ले जाकर कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक वस्तुएं भी दिखाईं.
बताते चलें कि चिरांद गंगा, सोन और सरयू नदी के संगम पर बसा होने की वजह से इस जगह का हरिद्वार और काशी जैसा महत्व है. यहां रसिक शिरोमणि मंदिर में शाम को आरती होती है. हालांकि हरिद्वार और काशी जैसी भव्य आरती रोज यहां नहीं होती लेकिन त्योहारों के मौके पर होने वाली विशेष गंगा आरती में आसपास के हजारों लोग इकट्ठा होते हैं. यहां रसिक शिरोमणि मंदिर में शिव की उपासना के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. साथ ही यहां घाटों पर गंगा में स्नान करने वालों की अच्छी खासी तादाद है. हिंदुओं के त्योहारों में यहां भारी संख्या में स्नान करने वाले लोग इकट्ठा होते हैं. बावजूद इसके सरकार की उपेक्षा से यह जगह धीरे धीरे विनाश की तरफ बढ़ रही है और यही हाल रहा तो अपने अंदर इतिहास समेटकर रखने वाला यह स्थान कुछ सालों में खुद इतिहास बन जाएगा.
इस साल गंगा में उफान की बात करें तो फिलहाल गंगा का जलस्तर घटने लगा है. शुक्रवार से शनिवार तक में ही गंगा करीब डेढ़ मीटर घटी हैं. जबतक जलस्तर में बढ़ाव था, प्रशासन ने कटान रोकने के लिए मिट्टी और ईंट भरे बोरे घाटों पर स्थानीय लोगों की मदद से डलवाकर इतिश्री कर ली. इन सब प्रशासनिक जुगाड़ों के बीच इस साल भी दो से तीन मीटर तक गंगा घाट पर कटान देखने को मिला है. इसकी वजह से ऐतिहासिक चिरांद के उस हिस्से में भी कटान हुआ है जिसको सरकार ने संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है.
Source: IOCL

























