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लोकसभा चुनाव 2024: इन नेताओं में प्रधानमंत्री के पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार कौन?

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी एकता की बात जोरों पर है. लेकिन इस संयुक्त विपक्ष की ओर से नेता कौन होगा, ये एक बड़ा सवाल है. चेहरे कई हैं लेकिन किसका दावा कितना मजबूत है ये कैसे तय होगा.

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी एकता को लेकर दिल्ली से लेकर कई राज्यों में सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है. हालांकि विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा प्रधानमंत्री पद का चेहरा चुनने को लेकर है. 

इंदिरा गांधी के जमाने से लेकर साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक अगर नजर डालें तो हर बार मामला एक दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने पर ही अटक गया है. और कई बार तो सरकारें भी इसी मुद्दे पर गिरी हैं. 

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इस बार सभी विपक्षी दलों को इकट्ठा करने का जिम्मा लिया है और उनकी पार्टी के नेता उनको पीएम मटेरियल बता रहे हैं. साल 2019 को लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे की कवायद ममता बनर्जी ने भी की थी और खुद को राहुल गांधी से इतर पीएम पद का उम्मीदवार भी बताने की कोशिश की. 

इस बार टीएमसी की ओर से  नीतीश की कोशिश पर ज्यादा भाव नहीं मिल रहा है. पार्टी की ओर से मीडिया में आए बयान में कहा गया है कि उनकी नेता ये कोशिश कर चुकी हैं. इस बार सीटों के हिसाब से फैसला किया गया. यानी टीएमसी का साफ इशारा है कि चुनाव के बाद ही कोई फैसला होगा.

हालांकि विपक्ष की ओर से कई ऐसे चेहरे हैं जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं या फिर उनके पीएम मटैरियल कहा जा सकता है. लेकिन किसका दावा कितना मजबूत हो सकता है इसके लिए हमने उनकी पार्टियों के वोट प्रतिशत का डाटा निकाला है. 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी
ये सच्चाई है कि कांग्रेस इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. साल 2019 के झटके से पार्टी उबर नहीं पा रही है. नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक मजबूत अध्यक्ष की तलाश है. लेकिन इस सच्चाई को भी नहीं नकारा जा सकता है कि कांग्रेस ही देश में एक ऐसी पार्टी है जो बीजेपी को कम से कम 200 सीटों पर सीधे टक्कर दे सकती है. पार्टी की राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सरकार है. दक्षिण के राज्यों, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में कांग्रेस का अच्छा-खासा वोटबैंक है. बस दिक्कत इस बात की है कांग्रेस अभी अकेले इस स्थिति में नहीं है कि बीजेपी को अकेले दम पर टक्कर सभी जगहों पर टक्कर दे सके. यूपी-बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस का संगठन तक नदारद है. दूसरी ओर साल 2019 के चुनाव में ही ममता बनर्जी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था.

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 19.49 फीसदी वोट मिले थे. खाते में 52 सीटें आई थीं. वहीं बीजेपी को 37.36 फीसदी वोट मिले थे और 303 सीटें मिली थीं. वहीं तीसरे नंबर पर ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी थी जिसे 4.7 फीसदी वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी को 4.07 फीसदी और सपा को 3.63 फीसदी वोट मिले थे. 

एनसीपी नेता शरद पवार
विपक्ष की ओर से पीएम पद की दावेदारी के लिए शरद पवार सबसे सीनियर नेता हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार का लंबा राजनीतिक अनुभव है. और कई बार उनका नाम इस पद के लिए पहले भी आ चुका है. शरद पवार, ममता और नीतीश से काफी पहले विपक्ष की एकता की बात करते रहे हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी की ज्यादा सीटें होने के बाद भी महा विकास अघाड़ी सरकार बनाने में शरद पवार की रणनीति कारगर रही है. साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 16.71% वोट मिले थे. शिवसेना को 16.41 और 1 फीसदी वोट मिले थे. 

टीएमसी नेता ममता बनर्जी
टीएमसी नेता ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी हैं. ममता बनर्जी ने कभी कम्युनिस्ट पार्टियों के अजेय गढ़ को फतह किया है जिस पर वामदल 35 सालों से सत्ता पर काबिज थे. बात करें ममता बनर्जी की पार्टी के वोट प्रतिशत की तो साल 2021 के चुनाव में टीएमसी को 47 फीसदी से ज्यादा वोट मिला था और पार्टी ने 213 सीटें जीती थीं. इस राज्य में बीजेपी को 38.1 फीसदी वोट मिला था. कांग्रेस को 2.94 और लेफ्ट को 4 प्रतिशत के आसपास वोट मिले थे. इन दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई भी सीट नहीं मिली.

जेडीयू नेता नीतीश कुमार
जेडीयू नेता नीतीश कुमार बिहार के तीन बार सीएम रह चुके हैं. हालांकि उनकी पार्टी को कभी अपने दम पर कभी सरकार नहीं बना पाई है. 8 बार सीएम पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार को कभी बीजेपी तो कभी आरजेडी का सहारा लेना पड़ा. समाजवादी नेता नीतीश कुमार की पूरी राजनीति बिहार में लालू प्रसाद यादव के विरोध में रही है. लेकिन वो दो बार आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना चुके हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू का वोट प्रतिशत 15.4 फीसद, आरजेडी का 23.1, बीजेपी का 19.5 और कांग्रेस का 9.5 फीसदी रहा है. नीतीश कुमार को अब आरजेडी और कांग्रेस का समर्थन है. और वह विपक्ष के ओबीसी चेहरा भी हो सकते हैं जिस पर अभी बीजेपी ने लगभग पूरी तरह से कब्जा कर रखा है.  

के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर
तेलंगाना के सीएम केसीआर भी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं. 5 सितंबर को जब नीतीश कुमार दिल्ली में विपक्ष के नेताओं से मिल रहे थे उसी दिन केसीआर ने एक रैली में ऐलान कर दिया कि अगर केंद्र में गैर-बीजेपी की सरकार बनती है तो देश भर के किसानों को बिजली-पानी मुफ्त कर दिया जाएगा. आमतौर पर इस तरह क ऐलान पीएम पद के घोषित दावेदारों की ओर से किए जाते हैं. केसीआर यहीं नहीं रुकते हैं उन्होंने रैली में आई जनता से ये भी पूछा कि क्या उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहिए? इस सवाल के जवाब में लोगों के समर्थन पर उन्होंने कहा कि राष्ट्र के लिए लड़ाई तेलंगाना से शुरू होनी चाहिए.  साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में टीआरएस को 46.9%,  कांग्रेस को 28.4% और बीजेपी 7.1% वोट मिले थे. हालांकि 2019 के चुनाव में बीजेपी ने वोट प्रतिशत 19 फीसदी से ज्यादा बढ़ा लिया था. वहीं टीआरएस का वोट प्रतिशत 41 फीसदी हो गया था. इस चुनाव में टीआरएस को 9 और बीजेपी को 4 सीटें मिली थीं.

सपा नेता अखिलेश यादव
बिहार में नई सरकार बनने के बाद जब जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार को पीएम बनाने की बातें की जाने लगीं तो अखिलेश यादव ने इसको कुछ खास तवज्जो न देते हुए कहा कि पीएम पद का दावेदार तो यूपी से ही होना चाहिए. अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए दो बार सामने आ चुका है. लेकिन मुलायम सिंह की सेहत ठीक नहीं है तो ऐसे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश को इस पद पर जरूर देखना चाहेंगे. यूपी में हाल में हुए विधानसभा चुनाव और आजमगढ़-रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की हार के बाद कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी नीचे हो गया है. इसके साथ सपा गठबंधन भी पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो चुका है और चाचा शिवपाल ने भी डीपी यादव के साथ मिलकर अलग राह पकड़ ली है. 

अखिलेश यादव 2012 का चुनाव अपने दम पर लड़कर बहुमत पा चुके हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को 32.1 प्रतिशत वोट मिले थे और खाते में 111 सीटें आई थीं. वहीं बीजेपी 41.29, बीएसपी को 12 फीसदी वोट मिले थे. इस लिहाज से देखा जाए तो क्षेत्रीय दलों में अखिलेश यादव, ममता बनर्जी के बाद सबसे बड़े जनाधार वाले नेता हैं. यूपी से ही पीएम पद के दावेदारी की बात उन्होंने ऐसे ही नहीं कही है.

About the author मानस मिश्र

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