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एक देश एक चुनाव के इस फॉर्मूले से 8 राज्यों में चली जाएगी विपक्ष की सरकार; पढ़िए बीजेपी को कैसे होगा फायदा?

लोकसभा चुनाव के वक्त एक देश- एक चुनाव का यह फॉर्मूला लागू होता है, तो एनडीए के मुकाबले इंडिया को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्यों, इस स्टोरी में विस्तार से जानिए.

चुनावी साल में वन नेशन, वन इलेक्शन की सुगबुगाहट फिर से तेज हो गई है. मोदी सरकार ने एक देश-एक चुनाव पर रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी है. साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी पैरवी की थी. 

वन नेशन- वन इलेक्शन का मतलब है- देश के सभी चुनाव एक साथ हो. पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत के मुताबिक 2014-15 में ही सरकार ने चुनाव आयोग से इस पर सुझाव मांगा था. रावत के मुताबिक एक देश-एक चुनाव के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून में आंशिक संशोधन करने की जरूरत है.

देश में 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं. वर्तमान में लोकसभा के साथ सिर्फ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा का चुनाव कराया जाता है.

लोकसभा चुनाव के 6 महीने पहले छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में और 6 महीने बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव कराया जाता है.

जानकार एक देश-एक चुनाव को लेकर 2 तरह के फॉर्मूले का जिक्र करते हैं.

  • ढाई-ढाई साल का स्लॉट आवंटित हो. यानी पहले ढाई साल के स्लॉट में लोकसभा के साथ कुछ राज्यों के चुनाव कराए जाएं और फिर दूसरे ढाई साल के स्लॉट में बाकी बचे राज्यों के चुनाव हो.
  • एक साथ सभी राज्यों के चुनाव कराए जाएं. अगर बीच में किसी राज्य में विधानसभा भंग होता है, तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर केंद्र शासन करे.  हालांकि, इस फॉर्मूले में कई पेंच भी है.

ढाई-ढाई साल के फॉर्मूला लागू हुआ तो क्या होगा?

1. INDIA शासित 8 राज्यों में समय से पहले चुनाव होंगे- ढाई साल रोस्टर वाला फॉर्मूला लागू हुआ तो लोकसभा के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, पुड्डुचेरी, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना. जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं.

अभी राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और दिल्ली में INDIA गठबंधन की सरकार है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़कर बाकी के 6 राज्यों की सरकार के पास 1 साल से अधिक का कार्यकाल बचा हुआ है.

दिल्ली में फरवरी 2025, बिहार में नवंबर 2025, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में मई 2026 में चुनाव प्रस्तावित है. इन 8 में 6 राज्यों में बीजेपी नंबर-2 की पार्टी  है.

दूसरी तरफ महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी और अरुणाचल में एनडीए की सरकार है, जहां 2024 में चुनाव पहले से ही प्रस्तावित है. मध्य प्रदेश में तो नवंबर 2023 में ही चुनाव होने हैं.

यानी एक देश- एक चुनाव का यह फॉर्मूला लागू होता है, तो एनडीए के मुकाबले इंडिया को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

इतना ही नहीं, आईडीएफसी इंस्टीट्यूट के एक सर्वे के मुताबिक 77 प्रतिशत मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त एक ही पार्टी को वोट करती है. ऐसे में जानकारों का कहना है कि यह मुद्दा अगर बीजेपी भुनाने में कामयाब रही, तो पार्टी को फायदा मिल सकता है.

2. यूपी, पंजाब और कर्नाटक में समय से पहले होंगे चुनाव- एक देश-एक चुनाव का रोस्टर फॉर्मूला अगर इसी लोकसभा चुनाव में लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, कर्नाटक पंजाब जैसे राज्यों में वक्त से पहले चुनाव हो जाएंगे.

रोस्टर फॉर्मूला के मुताबिक लोकसभा चुनाव के ढाई साल बाद बाकी के राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे. इसके हिसाब से 2026 के मध्य में बाकी बचे राज्यों में चुनाव हो सकते हैं.

पंजाब, यूपी विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2027, गुजरात-हिमाचल विधानसभा का कार्यकाल दिसंबर 2027 और कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2028 तक है.

आसान नहीं है इन 3 सवालों का जवाब ढूंढना

सवाल-1: क्या यह संवैधानिक अधिकारों का तो हनन नहीं?

वन नेशन- वन इलेक्शन का प्रस्ताव अगर पास होता है, तो कई राज्यों की विधानसभा को भंग करना पड़ेगा. कोविंद कमेटी यह देखेगी कि क्या ऐसा करना सही है? क्या यह संवैधानिक अधिकारों का तो हनन नहीं है?

विधानसभा भंग करने का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 176 में किया गया है. इसके मुताबिक पूर्ण बहुमत नहीं होने पर ही राज्यपाल समय से पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकता है.

जानकारों का कहना है कि राज्य अगर यह तर्क देता है कि समय से पहले पूर्ण बहुमत की सरकार को गिराना गलत है, तो वन नेशन- वन इलेक्शन को लागू करना मुश्किल हो सकता है.

सवाल-2: लोकसभा में ही बीच में भंग हो जाए, तो क्या होगा?
विधानसभा को लेकर अब तक कई फॉर्मूला सामने आ चुका है, लेकिन सवाल है कि लोकसभा ही बीच में भंग हो जाए, तो क्या होगा? देश में 1979, 1991, 1997, 1999 में लोकसभा समय से पहले भंग हो चुका है.

भविष्य में लोकसभा भंग होने पर क्या सभी विधानसभा को भी भंग किया जाएगा? अगर नहीं तो क्या एक देश-एक चुनाव का साइकिल मेंटेन रह पाएगा? अगर चुनाव के तुरंत बाद ही किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलती है, तो उस स्थिति में क्या होगा?

सवाल-3: निकाय और एमएलसी चुनाव का क्या होगा?
एक देश और एक चुनाव की जद में क्या सिर्फ लोकसभा और विधानसभा चुनाव है? क्योंकि निकाय और एमएलसी चुनाव को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा रहा है, जबकि अकेले उत्तर प्रदेश में ही 1 महीने में निकाय चुनाव संपन्न होता है.

इसी तरह अन्य राज्यों का भी हाल है. एमएलसी के भी चुनाव बूथ पर कराए जाते हैं और इसके लिए आचार संहिता भी लगती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इनका भी फॉर्मूला बदलेगा?

जानकारों का कहना है कि कोविंद कमेटी के लिए इन 3 सवालों का जवाब ढूंढना आसान नहीं होगा.

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