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Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र के राज्यपाल किसकी सुनेंगे, क्या होगी विधानसभा भंग?

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे सरकार को बचाने का जोर लगा रहे हैं तो शिवसेना के बगावती एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट के लिए जा सकते हैं. ऐसे में राज्यपाल की भूमिका अहम हो जाती है.

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में सियासी संकट गहराता जा रहा है. सूबे के सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अपनी सरकार को बचाने की जुगत भिड़ा रहे हैं तो शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट के लिए जाने के आसार नजर आ रहे हैं. ऐसे में राज्य के राज्यपाल की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. अब जब बगावती तेवर वाले शिंदे के साथ सूबे के कुल 40 विधायक हैं. इनमें से 33 शिवसेना और सात निर्दलीय विधायक हैं. इन विधायकों ने लिखित में शिंदे को समर्थन दे दिया है. इस स्थिति में ये विधायक राज्यपाल को विधानसभा ( Legislative Assembly) में फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते हैं. हम यहां जानने की कोशिश करते हैं कि इस सियासी संकट पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) क्या स्टैंड ले सकते हैं. 

विधानसभा और राज्यपाल की शक्तियां

राज्यपाल की शक्तियों को जानने से पहले राज्य के विधानमंडल से रूबरू होना जरूरी है. राज्य विधानमंडल राज्यपाल, विधानसभा और विधान परिषद से बनता है. विधानसभा को निचला सदन है जो लोगों के चुने प्रतिनिधियों से बनता है और इसे इसको भंग किया जा सकता है. जबकि विधान परिषद उच्च सदन इसे भंग नहीं किया जा सकता है. राज्य विधान मंडल के संगठन, गठन, कार्यकाल, विशेषाधिकारों और शक्तियों के संबंध में भारतीय संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से 212 में लिखा गया है.

महाराष्ट्र के सियासी भूचाल और वहां राज्यपाल के स्टैंड को जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि राज्यपाल विधानसभा को किन परिस्तिथियों में भंग कर सकता है. सूबे में आम चुनाव के बाद विधानसभा बनती है और इसका कार्यकाल  पहली बैठक से लेकर 5 साल तक होता है. हालांकि पांच साल से पहले किसी भी वक्त राज्यपाल को विधान सभा भंग करने का हक है. इसके भंग होते ही सभी विधायकों का पद भी खुद ही खत्म हो जाता है. उनके भत्ते भी विधानसभा भंग होते ही बंद हो जाते हैं. हालांकि उन्हें पेंशन और अन्य तरह की सुविधाएं मिलती रहती है. सामान्यतः राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही विधानसभा को भंग कर सकता है. 

इन परिस्थितयों में भंग (Dissolve) हो सकती है विधानसभा

1.राज्यपाल  प्रदेश में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिलने और अन्य दलों के नेताओं मिलकर भी सरकार न बना पाने की स्थिति में विधानसभा को भंग कर सकते हैं. 

2. संविधान के अनुच्छेद 356 के मुताबिक, जब प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार के दिए गए निर्देशों के पालन में अपनी कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल करने में असफल रहती है. संविधान के बनाए गए नियमों की अवहेलना करती है. इस सूरत में प्रदेश के राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजते हैं. इसके बाद केन्द्रीय कैबिनेट की सलाह के मुताबिक राज्य की विधानसभा को भंग कर वे राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं.

3. जब राज्य की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ जाती है और अन्य दलों के पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत की कमी होती है तो ऐसी स्थिति में भी राज्यपाल फिर से चुनाव कराने के लिए विधानसभा को भंग कर सकते हैं. 

4. यदि विधानसभा चुनाव राज्य के विभाजन, बाहरी आक्रमण जैसे अपरिहार्य कारणों से रोक दिए जाते हैं तो भी राज्यपाल को विधानसभा को भंग करने का अधिकार है.

राज्यपाल के लिए भी है अनुमति जरूरी

भले ही राज्यों की  विधानसभाओं के विघटन की शक्ति राज्यपाल के पास है, लेकिन राज्यपाल के इस फैसले को 2 महीने के अन्दर संसद के दोनों सदनों में  मान्यता मिलता जरूरी है. विधानसभा भंग होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है. अगर कोर्ट की जांच में ये खुलासा हो जाता है कि राज्य की विधानसभा को झूठे या बेमतलब की वजहों को आधार बना कर भंग किया है तो कोर्ट इस पर रोक लगा सकता है. इस तरह से विधानसभा भंग करने का राज्यपाल का फैसला ही आखिरी नहीं होता इसके खिलाफ ही कोर्ट में अपील की जा सकती है. 

महाराष्ट्र के राज्यपाल का स्टैंड

सूत्रों की माने तो अगर शिवसेना विधानसभा भंग करने की मांग करती है तो राज्यपाल मौजूदा हालातों को देखते विधान सभा भंग करने का फैसला ले सकते हैं. दूसरी तरफ अगर अगर विपक्षी खेमा बहुमत साबित करने की अपील करता है तो राज्यपाल एकनाथ शिंदे वाले विपक्षी खेमे को फ्लोर टेस्ट के लिए बुला सकते हैं. देखा जाए तो महाराष्ट्र में विधान सभा भंग होने को लेकर अभी स्थिति पूरी तरह से साफ नहीं है.

बीजेपी का है पलड़ा भारी 

महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. शिवसेना विधायक रमेश लटके की मृत्यु से एक सीट खाली पड़ी है. शिवसेना (Shiv Sena) के फिलहाल 55 विधायक हैं, एनसीपी के 53 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं. सदन में 13 निर्दलीय हैं. इन निर्दलीय उम्मीदवारों में से छह बीजेपी के सपोर्ट में है, जबकि पांच शिवसेना के पक्ष में है. वहीं कांग्रेस और एनसीपी को एक-एक निर्दलीय विधायक से समर्थन है. अगर देखा जाए तो महाराष्ट्र के सियासी जंग में बीजेपी का पलड़ा भारी दिखता है, यदि बागी विधायक उसका साथ देने के लिए तैयार हो जाएं. बीजेपी के 106 विधायक हैं और उसे बहुमत के लिए 144 विधायकों की ज़रूरत है.  एकनाथ शिंदे 37 विधायकों का समर्थन पा जाते हैं तो बीजेपी उनका सहयोग लेकर सरकार बनाने की पहल कर सकती है. देखा जाए तो यह संख्या शिवसेना के विधायकों की संख्या 55 का दो तिहाई है और इस तरह से ये बगावती गुट विरोधी कानून के दायरे में आने से बच जाएगा और इनके गुट को मान्यता मिल जाएगी और इसका फायदा बीजेपी उठा सकती है. 

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