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भारतीय सेना में बड़े अधिकारियों की वर्दी में क्यों हुआ बदलाव

भारतीय सेना अब 40 साल पुरानी प्रथा की तरफ एक बार फिर से लौट रही है. अब ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों की वर्दी एक जैसी वर्दी होगी.

सेना ने फैसला किया है कि एक अगस्त से ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों की एक जैसी वर्दी होगी, भले ही उनका पेरेंट कैडर और अप्वाइंटमेंट कुछ भी हो. सैन्य सूत्रों ने मंगलवार को ये जानकारी दी. सूत्रों ने बताया कि ये फैसला हाल ही में हुए सेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान विस्तृत चर्चा और सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया. 

न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक "भारतीय सेना ने रेजिमेंट की सीमाओं से परे, वरिष्ठ नेतृत्व के बीच सेवा मामलों में सामान्य पहचान और दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए ये फैसला लिया है. इस फैसले से भारतीय सेना की निष्पक्षता और न्यायसंगत संगठन और मजबूत होगी. 

अधिकारियों की कैप, कंधे पर बैज, गोरगेट पैच, बेल्ट और जूते का मानकीकरण किया जाएगा. फ्लैग-रैंक अधिकारी अब कोई पट्टा (कमरबंद) नहीं पहनेंगे. कर्नल और नीचे के रैंक के अधिकारियों की वर्दी में कोई बदलाव नहीं होगा. ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल रैंक के सभी अधिकारी अब एक ही रंग के बेरेट (टोपी), रैंक के सामान्य बैज, एक सामान्य बेल्ट बकल और एक जैसे जूते पहनेंगे.

बदलाव के बाद वर्दी देखकर अब किसी भी रेजिमेंट या कोर की पहचान नहीं हो सकेगी. उच्च रैंक सभी अधिकारी वर्दी का एक ही पैटर्न पहनेंगे.

वर्दी को लेकर सेना में मौजूदा स्थिति क्या है?

अब तक लेफ्टिनेंट से जनरल रैंक के सभी अधिकारी अपने रेजिमेंटल या कोर के अनुसार वर्दी (पोशाक या उपकरण ) पहनते हैं. अबतक इन्फैंट्री अधिकारी और सैन्य खुफिया अधिकारी गहरे हरे रंग के बेरेट पहनते हैं, बख्तरबंद कोर अधिकारी काले बेरेट पहनते हैं.

आर्टिलरी, इंजीनियर्स, सिग्नल, एयर डिफेंस, ईएमई, एएससी, एओसी, एएमसी और कुछ मामूली कोर अधिकारी गहरे नीले रंग के बेरेट पहनते हैं. पैराशूट रेजिमेंट के अधिकारी मैरून रंग के कपड़े पहनते हैं. आर्मी एविएशन कोर के अधिकारी ग्रे बेरेट पहनते हैं. गोरखा राइफल्स रेजिमेंट, कुमाऊं रेजिमेंट, गढ़वाल रेजिमेंट और नागा रेजिमेंट के अधिकारी एक तरह की स्लौच टोपी पहनते हैं जिसे बोलचाल की भाषा में तराई हाट या गोरखा हैट कहा जाता है.

हर इन्फैंट्री रेजिमेंट और कोर लैनयार्ड का अपना पैटर्न होता है जिसे वे कंधे के चारों तरफ पहनते हैं. इसे परंपरा के अनुसार दाईं या बाईं शर्ट की जेब में टांका जाता है. रैंक के बैज भी अलग-अलग होते हैं. राइफल रेजिमेंट रैंक काले रंग के बैज पहनते हैं, जबकि कुछ रेजिमेंट गिल्ट और सिल्वर रंग के बैज पहनते हैं. अलग-अलग रंग के बैकिंग हैं, जिन्हें रेजिमेंट या कोर की व्यक्तिगत परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार रैंक के इन बैज के साथ पहना जाता है.

वर्दी पर बटन रेजिमेंटल परंपरा के अनुसार भी अलग तरह के होते हैं. राइफल रेजिमेंट काले बटन पहनते हैं जबकि ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स के अधिकारी गोल्डन बटन पहनते हैं. बेल्ट में रेजिमेंटल परंपराओं के अनुसार अलग-अलग बकल हैं.

बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी ? 

सेना में रेजिमेंटल सेवा अधिकांश अधिकारियों के लिए कर्नल के पद पर समाप्त होती है. इसलिए उस खास रेजिमेंट या कोर के साथ यूनिफॉर्म में भी बदलाव अंतिम बदलाव होना चाहिए. ताकि किसी भी रेजिमेंट को उच्च रैंकों पर पदोन्नत न किया जाए. 

चूंकि अक्सर अलग-अलग रेजिमेंटल सैनिकों को उच्च रैंकों या कर्नल पद पर नियुक्त किया जाता है. ऐसे में अब ये सैनिक अपने रेजिमेंट की वर्दी के बजाय एक तरह की वर्दी में दिखेंगे. 

रिपोर्टस के मुताबिक ये फैसला लंबे और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद पिछले महीने सेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान लिया गया. हालांकि परिवर्तन के पीछे कई कारक हैं, महत्वपूर्ण यह है कि ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी बड़े पैमाने पर मुख्यालय में तैनात हैं. जहां पर सभी सेवाओं के अधिकारी एक साथ काम करते हैं.

ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक वाले अधिकारी वे हैं जिन्होंने पहले से ही इकाइयों या बटालियनों की कमान संभाली है और अब मुख्यालयों में तैनात किए गए हैं.  इस तरह एक तरह की वर्दी कार्यस्थल में एक तरह की पहचान स्थापित करेगी. साथ ही इससे भारतीय सेना में भावनात्मक तालमेल भी बैठेगा. वहीं सभी वरिष्ठ रैंक के अधिकारियों में एकरूपता होगी. कर्नल या उससे नीचे के रैंक के अधिकारियों की वर्दी पहले की ही तरह होगी. 

क्या यह पहली बार किया जा रहा है?

40 साल पहले सेना ने इस प्रथा को अपनाया था. उस दौरान सभी आला अधिकारियों को एक जैसी यूनिफॉर्म पहनने की कवायद ने जोर पकड़ा था.

लगभग 1980 के दशक के मध्य तक रेजिमेंटल सेवा लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक थी. कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों में सामान्य वर्दी पैटर्न और प्रतीक चिन्ह थे. कर्नल और ब्रिगेडियर ने अपने रेजिमेंटल प्रतीक चिन्ह को छोड़ दिया और अपने टोपी बैज पर अशोक प्रतीक पहननना शुरू कर दिया. बेरेट का रंग खाकी था.

हालांकि, 1980 के दशक के मध्य में एक बटालियन या रेजिमेंट की कमान को कर्नल के पद पर अपग्रेड करने का फैसला लिया गया था. इस तरह, कर्नल ने फिर से रेजिमेंटल प्रतीक चिन्ह पहनना शुरू कर दिया. इसके अलावा, ब्रिगेडियर को जनरल अधिकारियों की टोपी बैज पहनने की अनुमति दी गई थी जिसमें ओक के पत्तों की माला के साथ क्रॉस तलवार और बैटन शामिल थे.

दूसरे देश की सेनाओं में क्या परंपरा है?

बता दें कि भारतीय सेना का वर्दी पैटर्न और संबंधित हेराल्ड्री ब्रिटिश सेना से मिलता है. ब्रिटिश सेना में कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी को स्टाफ वर्दी के रूप में संदर्भित किया जाता है, ताकि इसे रेजिमेंटल वर्दी से अलग किया जा सके. 

पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेनाएं ब्रिटिश सेना के समान पैटर्न का पालन करती हैं. सभी रेजिमेंटल वर्दी को लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से परे छोड़ दिया जाता है. ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के सभी अधिकारी समान पैटर्न की वर्दी पहनते हैं.

इससे पहले बदली गई है भारतीय सेना की वर्दी

2022 में भारतीय सेना की वर्दी में बदलाव किया गया था. नई वर्दी की पहली झलक 15 जनवरी 2022 को सेना दिवस परेड दिखी थी. सैनिकों ने नई वर्दी में परेड ग्राउंड पर करतब दिखाया था. लंबे समय के बाद भारतीय सेना ने वर्दी बदलने का फैसला लिया था.

ये फैसला इंडियन आर्मी की नई कॉम्बेट यूनिफॉर्म  की सुरक्षा को देखते हुए लिया गया था. सेना के यूनिफॉर्म में खास तौर पर अलग रंगों का इस्तेमाल किया गया था. 2022 में भारतीय सेना ने करीब 13 लाख सैनिकों को नई वर्दी दी थी.

न्यू कॉम्बेट यूनिफॉर्म में खासियत क्या थी?

इस कॉम्बेट यूनिफॉर्म को सुरक्षा मामलों में काफी अहम माना गया था. इंडियन आर्मी की नई वर्दी में कई ऐसे रंगों का इस्‍तेमाल किया गया था जो सैनिकों को छिपने में मदद करेंगे. वर्दी में इस्तेमाल रंग ऐसे थे जो दुश्‍मन की नजर में आने से बच पाए. इस बदलाव के बाद पहले की तरह सैनिकों को वर्दी की नई शर्ट को पैंट के इन करने की जरूरत नहीं पड़ती. नई वर्दी का रंग प्रतिशत वही रखा गया था जो वर्तमान वर्दी में इस्तेमाल किया जाता रहा है. वर्दी में जैतून और मिट्टी सहित दूसरे रंगों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जो अभी भी बरकरार है. 

नई लड़ाकू वर्दी में भी कंधे और कॉलर टैग काले रंग के रखे गए थे. कंधे की धारियों को रैंक के हिसाब से दर्शाते हुए इसे आगे के बटनों पर ले जाने का नियम बनाया गया. इस कॉम्बेट यूनिफॉर्म को तैयार करने के लिए नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्‍नोलॉजी (NIFT) से भी विचार विमर्श किया गया था. इसके साथ ही अन्‍य देशों की सेनाओं की यूनिफॉर्म पर भी शोध किया गया जा चुका है.

इंडियन आर्मी के यूनिफॉर्म के इतिहास पर एक नजर

जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में अपना शासन स्थापित किया, तो उन्होंने भारतीयों को अपनी सेना में अलग-अलग रैंकों में भर्ती करना शुरू कर दिया. उस समय सभी रैंकों के ऑफिसरों की वर्दी क्राउन की सेवा करने वाले अंग्रेजी सैनिकों द्वारा पहने जाने वाले स्कार्लेट ट्यूनिक से मिलती-जुलती थी.

लाल कोट ब्रिटिश साम्राज्य की मानक वर्दी थी और ये वर्दी आज भी क्वीन्स गार्ड्स पहनते हैं. ब्रिटिश भारतीय सेना ने इसे यूनियन जैक का प्रतीक और ब्रिटिश प्रभुत्व को दर्शाने के लिए अपनाया. कुछ रेजिमेंटों ने दूसरे रंगों को भी अपनाया.

कैसे शुरू हुआ खाकी वर्दी का चलन

ईस्ट इंडियन कंपनी ने भारतीय सैनिकों रंगीन वर्दी पहनाना शुरू कर दिया. चटकिले रंग की वजह से भारतीय सैनिक आसानी से टारगेट किए जाने का खतरा झेलते थे. सैनिकों को बड़े पैमाने पर जीवन का नुकसान हुआ. इसे देखते हुए ब्रिटिश भारतीय सेना ने खाकी वर्दी पहनाए जाने का फैसला लिया. ब्रिटिश भारतीय सैनिकों ने पहले और दूसरे विश्व युद्धों में इन वर्दी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया. इसके अलावा ब्रिटिश भारतीय सैनिकों को खाकी शॉर्ट्स भी पहनने का अधिकार दिया गया.

हरी छींटदार या कॉमबेट वर्दी का चलन

1947 में आजादी के बाद ब्रिटिश भारतीय सेना भारतीय सेना बन गई. उन्होंने पाकिस्तानी सेना से खुद को अलग करने के लिए जैतून-हरे रंग की लड़ाकू वर्दी को अपनाया, इसी फैसले ने आजतक खाकी वर्दी को बरकरार रखा है और  भारतीय सेना आज भी इसे अपनी औपचारिक वर्दी के रूप में इस्तेमाल करती है. आज जैतून-हरी वर्दी भारतीय सेना का पर्याय बन गई है. बाद में भारतीय सेना को कॉमबेट यूनिफॉर्म की जरूरत पड़ी जिसे चलन में लाया गया. लेकिन जैतून-हरे रंग का इस्तेमाल जारी रहा.

ब्रशस्ट्रोक पैटर्न वाली वर्दी को 1980 के दशक की शुरुआत में शामिल किया गया था. यह पहली बार था जब बल में एक कॉमबेट लड़ाकू वर्दी को शामिल किया गया था.

19 वीं शताब्दी में खाकी, ग्रे, और हरे रंग के मिश्रण को अपनाना शुरू किया. ये पैटर्न फ्रेंच वुडलैंड डीपीएम से प्रेरित था. ये पैटर्न अधिकांश भारतीय परिस्थितियों के लिए एकदम सही हैं. ये वर्दी जंगलों और घने उष्णकटिबंधीय जंगलों में सबसे प्रभावी है. 

भारतीय सेना की वर्दी में काले पतलून के साथ एक सफेद शर्ट का इस्तेमाल भी चलन में आया. राष्ट्रपति के अंगरक्षक कई मौकों पर लाल, सफेद और नीले रंग की वर्दी पहनते हैं. एनएसजी और बख्तरबंद कोर काली वर्दी पहनते हैं. आर्मी एविएशन कोर भारतीय वायु सेना की ही तरह की वर्दी पहनती है.

 

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