व्यभिचार के लिए सिर्फ मर्द को सज़ा क्यों? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी कानून की समीक्षा
कोर्ट ने इस मामले को बेहद अहम बताते हुए इसे 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया.

नई दिल्ली: विवाहित महिला किसी गैर पुरुष से शारीरिक संबंध बनाए तो सिर्फ उस पुरुष को सज़ा क्यों? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इससे जुड़े कानून की समीक्षा करेगी. कोर्ट ने इस मामले को बेहद अहम बताते हुए इसे 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया.
औरत को मुकदमे से छूट हासिल है
दरअसल, एडल्ट्री यानी व्यभिचार की परिभाषा तय करने वाली आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ पुरुष को सज़ा का प्रावधान है. किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्ज़ी के बिना संबंध बनाने वाले पुरुष को 5 साल तक की सज़ा हो सकती है. लेकिन महिला पर कोई कार्रवाई नहीं होती. याचिकाकर्ता ने इसे भेदभाव भरा कानून बताया है.
महिला को संपत्ति की तरह देखना गलत
केरल के जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना ये कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है. ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी. इसलिए, व्यभिचार के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया.
याचिकाकर्ता की दलील थी कि आज औरतें पहले से मज़बूत हैं. अगर वो अपनी इच्छा से दूसरे पुरुष से संबंध बनाती हैं, तो मुकदमा सिर्फ उस पुरुष पर नहीं चलना चाहिए. औरत को किसी भी कार्रवाई से छूट दे देना समानता के अधिकार के खिलाफ है.
बेंच ने इस दलील से सहमति जताते हुए कहा, "आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता. लेकिन ये धारा एक अपवाद है. इस पर विचार की ज़रूरत है." कोर्ट ने ये भी कहा कि पति की मंजूरी से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना भी दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है.
पत्नी को शिकायत का अधिकार नहीं
याचिकाकर्ता ने बताया कि 1971 में लॉ कमीशन और 2003 में जस्टिस मलिमथ आयोग IPC 497 में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं. लेकिन किसी भी सरकार ने कानून में संशोधन नहीं किया.
कोर्ट में ये सवाल भी उठा कि IPC 497 के तहत पति तो अपनी पत्नी के व्यभिचार की शिकायत कर सकता है, लेकिन पति के ऐसे संबंधों की शिकायत पत्नी नहीं कर सकती. कोर्ट ने माना कि मौजूदा हालात में ये कानून कहीं पुरुष से तो कहीं महिला से भेदभाव करता है.
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट IPC 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है. ये फैसले 3 और 4 जजों की बेंच के थे. इसलिए नई याचिका को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया है.
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