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बैंक का कर्ज न चुका पाने वालों के लिए आरबीआई की गाइडलाइन में बड़ी राहत क्या है?

बैंक लेट फीस के तौर पर ग्राहकों से उनकी ईएमआई का एक से दो फीसदी पेनाल्टी के तौर पर वसूल लेते हैं. लेकिन अब आरबीआई के इस प्रस्ताव के बाद कर्जदारों को उम्मीद है कि उन्हें इससे राहत मिल जाएगी.

अगर आपको अपनी ईएमआई की चिंता सताती है और हर महीने ये डर रहता है कि कहीं इंस्टॉलमेंट न छूट जाए और पेनाल्टी न देनी पड़ जाए तो ये खबर आपके लिए ही है. दरअसल हाल ही में रिजर्व बैंक ने एक नई गाइडलाइन जारी की है जिसके तहत ग्राहकों को लोन न चुका पाने पर लगाए जाने वाले जुर्माने से राहत मिल सकती है. 

आरबीआई ने दंडात्मक ब्याज दरों को लेकर कर्जदाताओं से ज्यादा चार्ज लेने के लिए बैंकों की खिंचाई की है और कर्जदाताओं को अनुचित ब्याज से बचाने के लिए प्रस्ताव लेकर आया है. इस प्रस्ताव के तहत कहा गया है कि जुर्माना शुल्क के रूप में लगाया जाना चाहिए न कि चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में वसूलना चाहिए. 

ग्राहकों की हितों को ध्यान में रखते हुए लाया गया प्रस्ताव

रिजर्व बैंक ने ग्राहकों को समय पर लोन नहीं चुका पाने पर लगाई जाने वाले पेनाल्टी से निजात दिलाने के लिए इसे खत्म करने का प्रस्ताव किया है. आरबीआई के अनुसार ये प्रस्ताव ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है. 

दरअसल कोई भी बैंक लेट फीस के तौर पर ग्राहकों से उनकी ईएमआई का एक से दो फीसदी पेनाल्टी के तौर पर वसूल लेते हैं. लेकिन अब आरबीआई के इस प्रस्ताव के बाद कर्जदारों को उम्मीद है कि जल्दी ही उन्हें जुर्माने से राहत मिल सकती है. 

महंगाई और ब्याज दर बढ़ जाने के कारण समय पर नहीं चुका पा रहे हैं लोन 

आरबीआई ने देश में बढ़ रही महंगाई को काबू करने के लिए पिछले एक साल में  रेपो रेट (Repo Rate) में भारी बढ़ोतरी की है. जिसके कारण बैंकों ने भी ब्याज दरों में बढ़ा दीं. यही कारण है कि लोगों की किस्त बढ़ गई है. किस्त के बढ़ने के कारण ग्राहक समय पर लोन के ईएमआई का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं और इसका फायदा उठाकर कई बैंक देरी से ईएमआई देने पर जुर्माना वसूल रहे हैं. पेनाल्टी के तौर पर बैंक ईएमआई का एक से दो प्रतिशत पैसा वसूलते हैं.  

अप्रैल में आए  आरबीआई के सर्कुलर में कहा गया कि ईएमआई चुकाने में हुई देरी पर जुर्माना ब्याज लिमिटेड है, इससे ज्यादा ब्याज वसूलना गलत है. सर्कुलर में कहा गया है कि पेनाल्टी लगाने के संबंध में अलग-अलग बैंकों ने अलग-अलग तर्क दिए हैं, जिससे ग्राहकों की शिकायतें और विवाद बढ़ गए हैं. संस्थाओं की ओर से इसके लिए कोई अलग से निर्देश जारी नहीं किया गया है. 

आरबीआई ने कहा कि पेनाल्टी चार्ज इसलिए लगाया जाता है ताकि कर्ज लेने वालों के बीच ऋण अनुशासन की भावना पैदा की जा सके. पेनाल्टी चार्ज, अनुबंधित ब्याज दर के अतिरिक्त कमाई करने का साधन नहीं होना चाहिए. 

क्या कहती है नई गाइडलाइन 

नई गाइडलाइन में कहा गया है कि समय पर ईएमआई नहीं चुकाने पर लगने वाले जुर्माना पेनाल्टी ब्याज के रूप में लागू नहीं किया जाएगा. दंडात्मक शुल्क का कोई पूंजीकरण नहीं होगा यानी ऐसे शुल्कों पर आगे कोई ब्याज नहीं लगाया जाएगा. अभी तक कर्जदाताओं को जुर्माने के पैसे पर भी ब्याज का भुगतान करना होता है.  लोन पर ब्याज दरों को शर्तों सहित इस संबंध में जारी रेगुलेटरी नियम का सख्ती से नियंत्रित किया जाएगा. आरबीआई ने कहा कि आरई ब्याज दर में कोई अतिरिक्त चीज शामिल की जाएगी ताकि ग्राहक पर ज्यादा बोझ न पड़ सके. 

कई बैंक समय से पहले लोन चुकाने पर वसूलते हैं चार्ज

बता दें कि कई बैंक समय से पहले लोन चुकाने पर भी चार्ज वसूल करते हैं. ऐसे में अगर आप समय से पहले लोन चुका रहे हैं तो भुगतान से पहले बैंक या उस वित्तीय संस्था से जरूर बात कर लेना चाहिए. वहीं कई बैंक बची हुई लोन की राशि का 1 से 5 फीसदी तक चार्ज वसूल करते हैं. ताकि ब्याज पर होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई की जा सके. वहीं अगर आप होम लोन समय से पहले भरते हैं तो आपको ज्यादा नुकसान नहीं होगा. 

बैंक आपको किस आधार पर देती है लोन

अब सवाल उठता है कि बैंक किसी भी व्यक्ति को लोन कब और किस आधार पर देती है. अगर लोन लेने वाला व्यक्ति नौकरीपेशा है तो बैंक लोन जल्दी और आसानी से लोन दे देती हैं. 

कैसे की जाती है ईएमआई तय 

आरबीआई की गाइडलाइन के मुताबिक, ग्राहक को हर महीने मिलने वाली टेक होम सैलरी पर ही लोन दिया जाता है. कोई भी बैंक जब लोन देती है तो आपकी सैलरी जरूर देखती है. क्योंकि ग्राहक की सैलरी का 55 से 60 फीसदी राशि ईएमआई (EMI) चुकाने में इस्तेमाल होता है. 

बाकि बचे पैसों से वह रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का काम करता है. बैंक टेक होम सैलरी का सिर्फ 50 प्रतिशत हिस्सा EMI के रूप में तय कर सकती हैं. बैंक देखते है कि ग्राहक अपने रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने में कहीं लोन को डिफॉल्‍ट न कर दे.

ऐसे होता है तय 

आरबीआई के निर्देशानुसार कोई भी व्यक्ति अपनी कुल सैलरी का 60 गुना लोन ले सकता है. आसान भाषा में समझें तो अगर आपकी मासिक सैलरी 50 हजार रुपये है तो वह अधिकतम 30 लाख रुपये का लोन ले सकता है. वहीं अगर आप हर महीने 1 लाख रुपये कमाते हैं तो होम सैलरी पाने वाला व्यक्ति 50 लाख रुपये तक का लोन बैंक से ले सकता है.

ये है बेहद जरूरी 

होम लोन की एलिजिबिलिटी ग्राहक के क्रेडिट स्कोर, उम्र, वेतन, वर्तमान देयता आदि पर भी निर्भर होती है. अगर लोन के लिए अप्लाई करने वाले व्यक्ति के परिवार में एक से ज्यादा कमाने वाले लोग हैं तो लोन की राशि और बढ़ सकती है. इसमें सभी सदस्‍यों की कुल कमाई के आधार पर लोन की राशि बढ़ जाती है. 

लोन न चुकाने पर बैंक क्या करता है 

अगर आप किसी भी कारणवश लोन की दो ईएमआई नहीं दे पाते हैं तो सबसे पहले बैंक आपको रिमाइंडर नोटिस भेजता है. और अगर कर्जधारक तीन किस्तों का भी भुगतान नहीं कर पा रहे तो बैंक आपको कर्ज चुकाने के लिए एक कानूनी नोटिस भेजता है. 

अगर आप फिर भी लोन नहीं चुका पा रहे हैं तो बैंक पहले नोटिस के 5 महीने के बाद दूसरी नोटिस भेजता है. इस नोटिस में जिसमें स्पष्ट रूप से इस बात का जिक्र किया जाता है कि आपके के पास जितनी प्रॉपर्टी है, उसकी कुल वैल्यू इतनी है और इस प्रॉपर्टी को इतने तारीख को नीलाम किया जाएगा. बैंक द्वारा इस तरह की कार्रवाई प्रॉपर्टी लोन के क्षेत्र में अधिक होती है क्योंकि ज्यादातर लोग बैंक से लोन लेने के लिए अपनी संपत्ति के डॉक्यूमेंट सिक्योरिटी के रूप में जमा कर लोन लेते है. 

बता दें कि बैंक लोन को लेकर साल 2002 में संसद में बिल पास किया था, जिसके तहत अगर कोई भी व्यक्ति बैंक लोन नहीं चुका पा रहा है या वह बैंक लोन वापस करने में पूरी तरह से असमर्थ है, तो ऐसी स्थिति में बैंक कर्ज धारक की संपत्ति को नीलाम कर अपनी राशि को वसूल करने का अधिकार रखता है.

हालांकि बैंक संपत्ति की नीलामी से पहले कर्ज धारक के ऊपर नोटिस भेजकर दबाव बनाया जाता है ताकि वह लोन वापस कर दे. लेकिन इन दवाबों के बाद भी कर्ज धारक लोन नहीं चुका पाता है तो उसकी संपत्ति की नीलामी की प्रक्रिया को शुरू कर दी जाती है. 

संपत्ति की नीलामी होने के बाद क्या 

लोन नहीं चुका पाने वाले व्यक्ति की संपत्ति को नीलाम करने के बाद तो बैंक को अपने फंसे हुए पैसे को वसूल करने में आसानी होती है. हालांकि कई ऐसे भी मामले सामने आते हैं जिसमें कर्जधारक की संपत्ति लोन के पैसे से कम होती है. मतलब उस कर्जधारक नें अपनी कुल संपत्ति से काफी ज्यादा कर्ज ले रखा है.

ऐसी स्थिति में नीलामी के बाद मिली धनराशि को उस राशि को बैलेंस राशि में कम कर दिया जाता है और जो भी राशि बचती है, उसे बैंक को अपनी तरफ से भरना पड़ता है. जिससे बैंक को काफी नुकसान होता है. 

वहीं अगर ग्राहक की संपत्ति लोन के पैसे से ज्यादा हो तो बैंक लोन राशि को काटने के बाद जो भी पैसे बचते हैं, उसे कर्ज धारक के बैंक खाते में जमा कर देती है. यही कारण है कि लोन लेने वाले व्यक्ति को इस बात की जानकारी होना बेहद जरूरी है, कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस तरह के नियम बनाये गये है. 

भारतीय रिजर्व बैंक क्या है?

आरबीआई भारत का केंद्रीय बैंक है और जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के तहत 1 अप्रैल, 1935 को परिचालन शुरू किया था. यह बैंक देश में वित्तीय स्थिरता बनाने के लिए मौद्रिक नीति का उपयोग करता है, और इसे देश की मुद्रा और क्रेडिट सिस्टम को विनियमित करने का आरोप लगाया जाता है.

आरबीआई अधिनियम की धारा 7(1) के तहत केंद्र सरकार रिज़र्व बैंक के गवर्नर से परामर्श कर बैंक को ऐसे दिशा-निर्देश दे सकती है, जो जनता के हित के लिए जरूरी हों.

सेक्शन 7(2) के तहत इस तरह के किसी भी दिशा-निर्देश के बाद बैंक का काम एक केंद्रीय निदेशक मंडल को सौंप दिया जाएगा. यह निदेशक मंडल बैंक की सभी शक्तियों का उपयोग कर सकता है और रिज़र्व बैंक द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों को कर सकता है.

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