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कोरोना वैक्सीनेशन नीति में बड़ा बदलाव क्या सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुआ? जानिए कोर्ट में हुई सुनवाई का ब्यौरा

क्या केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर कोरोना वैक्सीनेशन पॉलिसी को बदला है, इस सवाल के जवाब के लिए शीर्ष अदालत में हुई सिलसिलेवार सुनवाई के जरिए यहां जानकारी मिल सकती है.

सोमवार, 7 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि 21 जून से केंद्र कोरोना टीकाकरण को अपने हाथों में ले लेगा. 18 से 44 साल आयु वर्ग के लोगों के लिए केंद्र राज्यों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करवाएगा. यानी वैक्सीन निर्माता कंपनियों से केंद्र खरीद करेगा और राज्यों को देगा. यह कहा जा रहा है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के दबाव में लिया गया है क्योंकि कोर्ट ने इस मसले पर सरकार से सख्त सवाल किए थे. सरकार ने सीधे तो इस पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन 'विश्वस्त सूत्रों' के हवाले से ऐसा दावा किया जा रहा है कि सरकार पहले से इस मसले पर विचार कर रही थी. 1 जून को ही यह प्रस्ताव पीएम के सामने रखा गया था. अब इसकी घोषणा की गई है.

हो सकता है कि आगे चल कर केंद्र सरकार अपनी वैक्सीनेशन नीति में इस बड़े बदलाव के पीछे के पूरे घटनाक्रम पर आधिकारिक जानकारी दे. इस लेख में हम टीकाकरण पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से जुड़ी कुछ मुख्य तारीखों का ब्यौरा आपके सामने रख रहे हैं. यह जानकारी सार्वजनिक है. इसे बस एक साथ आपके सामने रखा जा रहा है :-

30 अप्रैल - सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा कि वह कोविड टीकाकरण को पूरी तरह से अपने हाथ में क्यों नहीं ले रही है? कोर्ट ने पूछा कि केंद्र सरकार ने वैक्सीन का कुछ हिस्सा खरीदने के बाद आगे का मामला निर्माता कंपनियों और राज्य सरकारों के बीच क्यों छोड़ दिया? केंद्र क्यों नहीं 100 प्रतिशत वैक्सीन की खरीद कर उसे राज्यों में आवंटित कर रहा? कोर्ट ने सभी नागरिकों को मुफ्त में कोविड वैक्सीन लगाने पर विचार के लिए भी कहा.

2 मई - 30 अप्रैल को हुई सुनवाई के लिखित आदेश 2 मई को आया. कोर्ट ने कोविड वैक्सीन की अलग-अलग कीमत पर सवाल उठाया. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने 45 साल से अधिक उम्र के आयु के लोगों को मुफ्त वैक्सीन की सुविधा दी. लेकिन अब 18 से 44 साल की आयु के लोगों के टीकाकरण के का मसला राज्यों और वैक्सीन निर्माता कंपनियों के बीच छोड़ दिया गया है. ऐसे में हर राज्य अपनी वित्तीय स्थिति और नीति के हिसाब से वैक्सीन को लेकर अलग-अलग घोषणा कर रहा है. कोविड टीकाकरण जीवन के मौलिक अधिकार यानी संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा है. इससे जुड़ी नीति में समानता होनी चाहिए.

10 मई - केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर अपनी वैक्सीनेशन नीति को सही बताया. उसने कहा कि उसने नीति बहुत सोच-विचार कर बनाई है. सुप्रीम कोर्ट को नीतिगत मामलों में दखल से बचना चाहिए. सरकार ने यह भी कहा कि 45 से अधिक उम्र के लोगों पर खतरा अधिक है. उन्हें प्राथमिकता देते हुए उनके लिए राज्यों को मुफ्त वैक्सीन दी जा रही है.

31 मई - इस दिन फिर सुनवाई हुई. नीतिगत मामलों में दखल न देने की केंद्र की सलाह सुप्रीम कोर्ट को उचित नहीं लगी. कोर्ट ने कहा, "केंद्र यह न समझे कि सिर्फ उसे ही पता है कि सही क्या है. कोर्ट नीति नहीं बनाता. लेकिन किसी भी नीति की गलतियों को सुधारने के लिए हमारे हाथ बहुत मजबूत है. लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो तो कोर्ट चुप नहीं रहेगा." कोर्ट ने यह भी कहा कि 18 से 44 साल के लोगों का पूरा मामला राज्यों पर छोड़ देना सही नहीं लगता. केंद्र ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि राज्यों की आर्थिक स्थिति अलग-अलग है.

2 जून - 31 मई को हुई सुनवाई पर लिखित आदेश 2 जून को जारी हुआ. इस आदेश में कोर्ट ने केंद्र की वैक्सीनेशन पॉलिसी को मनमाना और अतार्किक कहा. कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने 45 से अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त टीका दिया. लेकिन 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के लिए राज्य सरकार और निजी हस्पताल को खरीद के लिए कहा. केंद्र इस नीति पर स्पष्टता दे. इस नीति को तय करने से जुड़े सभी दस्तावेज और फ़ाइल नोटिंग भी कोर्ट को सौंपे.आदेश में इस बात पर भी सवाल उठाए गए कि केंद्र ने वैक्सीन की अधिकतम कीमत तय करने के अपने वैधानिक अधिकार का उपयोग नहीं किया.

कोर्ट ने सरकार को जवाब के लिए 2 हफ्ते का समय देते हुए सुनवाई की अगली तारीख 30 जून तय की. कोर्ट ने न सिर्फ एक आयु वर्ग को मुफ्त वैक्सीन देने और दूसरे की ज़िम्मेदारी न लेने की नीति को मनमाना कहा, बल्कि उसे तय करने से जुड़े सभी कागज़ात पेश करने के लिए कहा. ऐसे में कोर्ट की समीक्षा सरकार के लिए और अधिक परेशानी का कारण बन सकती थी. हालांकि, इस बात की संभावना है कि सरकार के स्तर पर पहले से 18 से 44 के लोगों के लिए राज्यों को मुफ्त वैक्सीन देने पर विचार चल रहा हो. लेकिन ऐसी कोई बात साफ तौर ओर कोर्ट में नहीं कही गई थी. केंद्र के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने 31 मई को यह ज़रूर कहा था कि नीति में ज़रूरत के हिसाब से लगातार बदलाव किए जा रहे हैं. लोगों की बेहतरी के लिए नीति में बदलाव के सरकार खिलाफ नहीं है.

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