सुप्रीम कोर्ट ने उप्र में संपत्तियों के ध्वस्तीकरण का सामना कर रहे याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह का अंतरिम संरक्षण दिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह एक सप्ताह के लिए अंतरिम संरक्षण प्रदान कर रहा है क्योंकि आंशिक रूप से ध्वस्तीकरण पहले ही हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में संपत्तियों के ध्वस्तीकरण का सामना कर रहे दो याचिकाकर्ताओं को गुरुवार (4 दिसंबर, 2025) को एक सप्ताह के लिए अंतरिम संरक्षण प्रदान किया और निर्देश दिया कि तब तक पक्षकारों द्वारा यथास्थिति बनाए रखी जाए.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे उचित आदेश के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके आवासीय या विवाह हॉल परिसर का आंशिक विध्वंस पहले ही प्राधिकारियों द्वारा किया जा चुका है.
बेंच ने कहा कि वह एक सप्ताह के लिए अंतरिम संरक्षण प्रदान कर रही है क्योंकि आंशिक रूप से ध्वस्तीकरण पहले ही हो चुका है. कोर्ट ने कहा, 'उपर्युक्त तथ्य पर विचार करते हुए हम आज से एक सप्ताह की अवधि के लिए अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हैं और तब तक पक्षकारों द्वारा यथास्थिति बनाए रखी जाएगी.'
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उसके द्वारा दी गई अंतरिम सुरक्षा याचिका पर विचार करने तथा उसके गुण-दोष के आधार पर स्थगन अर्जी पर सुनवाई करने में हाईकोर्ट पर असर नहीं डालेगी. पीठ ने यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया जिसमें अधिकारियों को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ताओं के आवासीय या विवाह हॉल संरचनाओं को और अधिक ध्वस्त करने से रोकने का अनुरोध किया गया है.
सुनवाई शुरू होने पर पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील से पूछा कि उन्होंने पहले उच्चतम न्यायालय का रुख क्यों किया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया. वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर न्याय के मुद्दे पर विचार किया था.
पीठ ने कहा, 'अदालत पहले ही विस्तृत फैसला दे चुकी है. फिर उच्च न्यायालय का रुख करें और उस फैसले का लाभ उठाएं. यह क्या है? आपको हर बार (अनुच्छेद) 32 का सहारा क्यों लेना पड़ता है?' पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट तात्कालिकता पर विचार नहीं करता. आपको इसका उल्लेख करना होगा.'
Source: IOCL






















