'वर्दी पहनने के बाद धर्म-जाति से ऊपर उठ जाना चाहिए...', सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को लगाई फटकार
अकोला दंगों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस की आलोचना की है. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह दंगों में गंभीर रूप से घायल हो गया था. पुलिस ने हॉस्पिटल में उसका बयान लिया पर एफआईआर दर्ज नहीं की.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई व्यक्ति जब पुलिस की वर्दी पहनता है, तो उसे सभी प्रकार के धर्म और जाति जैसे पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ जाना चाहिए. उसे सिर्फ कानून के मुताबिक अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए. इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने 2023 के अकोला दंगों से जुड़े एक मामले में एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश दिया है. इस SIT में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे.
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने अकोला दंगों की जांच में महाराष्ट्र पुलिस की आलोचना की है. कोर्ट का फैसला एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर आया है, जिसने दंगों के दौरान हुई एक हत्या का चश्मदीद होने का दावा किया है. उसका आरोप है कि असली अपराधी के बजाय, कुछ मुस्लिम व्यक्तियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई.
13 मई 2023 को, महाराष्ट्र के अकोला शहर में पैगंबर मुहम्मद के बारे में एक आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. 17 साल के याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ का दावा है कि वह दंगों में गंभीर रूप से घायल हो गया था. पुलिस ने हॉस्पिटल में उसका बयान लिया लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की.
याचिकाकर्ता का दावा है कि उसने राजेश्वर पुल पर चार लोगों को एक व्यक्ति को तलवार और लोहे के पाइप से मारते हुए देखा था. बाद में इस व्यक्ति की पहचान विलास महादेवराव गायकवाड़ के रूप में हुई. गायकवाड़ की इस हमले में मृत्यु हो गई थी. पुलिस ने इस केस में एफआईआर दर्ज की, लेकिन उसके मामले में निष्क्रिय बनी रही. अगर पुलिस उसे भी पीड़ित के रूप में स्वीकार कर लेती तो हत्या वाले केस में पुलिस के झूठे और मनगढ़ंत सबूत उजागर हो जाते.
मोहम्मद अफजल ने पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने संदेह जताया था कि वह विलास गायकवाड़ की हत्या के आरोपियों की मदद करने के लिए ऐसा कर रहा है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर पुलिस याचिकाकर्ता की शिकायत की जांच नहीं कर रही थी, तो उसे सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से एफआईआर का आदेश हासिल करना चाहिए था.
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