SC-ST एक्ट: सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं है तो सामने आकर बात करें पासवान- शिवसेना
एससी-एसटी एक्ट के विवाद पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने अपने एडीए सहयोगी रामविलास पासवान पर हमला बोला है. उन्होंने कहा है कि पासवान की राजनीति जाति आधारित है जबकि शिवसेना देश और समाज की बात करती है.

मुंबई: एससी-एसटी एक्ट को लेकर नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) में घमासान मचा हुआ है. शिवसेना के सांसद संजय राउत ने बिहार की राजनीतिक पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के रामविलास पासवान के आरोपों पर जवाब देते हुए कहा है कि पासवान की राजनीति जाति आधारित है जबकि शिवसेना देश और समाज की बात करती है.
राउत ने कहा, "हमने कहा है कि दलितों को एक खरोंच तक नहीं आनी चाहिए. लेकिन अत्याचार दूसरी जातियों पर भी होता है. सभी जाति-धर्म के लिए एक कानून होना चाहिए." उन्होंने आगे कहा कि हमारा संविधान बहुत मजबूत है. हमारी पार्टी जाति नहीं मानती.
राउत ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एससी-एसटी एक्ट कमजोर नहीं हुआ है. इस कानून का दुरुपयोग हुआ है. उन्होंने कहा कि पासवान को अगर ये मंजूर नहीं है तो सामने आकर बात करें. इस कानून का कैसा दुरुपयोग होता है ये महाराष्ट्र में आकर देखिए. लोग सालों से जेल में पड़े हैं.
पासवान ने इसलिए किया शिवसेना पर हमला दरअसल सरकार ने मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की बात कही है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सरकार के इस फैसले की निंदा की थी जिसके जवाब में पासवान ठाकरे की आलोचना की थी. केन्द्रीय मंत्री पासवान ने ठाकरे पर हमला करते हुए कहा था कि इससे उनकी दलित और पिछड़ा विरोधी मानसिकता जाहिर होती है. उन्होंने आगे कहा था कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां अंबेडकर का जन्म हुआ है वहां का नेता इस तरह का बयान दे रहा है.
आपको बता दें कि शिवसेना प्रमुख ने अपनी पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में मोदी सरकार पर हमला बोला था. आपको ये भी बता दें कि केंद्र सरकार ने दलितों के खिलाफ अत्याचारों पर मूल कानून को बरकरार रखने के लिए एक बिल को मंजूरी दी है. इसी सिलसिले में ठाकरे पर हमला करते हुए पासवान ने कहा था, "अंबेडकर ने संविधान लिखा लेकिन ठाकरे जैसे नेताओं ने इसे नहीं पढ़ा है."
SC-ST act पर सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज नहीं होगी...पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा.
-अब केंद्र ने तय किया है कि एफआईआर दर्ज करने के लिए प्राथमिक जांच की जरूरत नहीं...मंजूरी भी जरूरी नहीं. -कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी...सरकारी कर्मियों की गिरफ्तारी के लिए सक्षम अथॉरिटी की मंजूरी और गैर सरकारी कर्मी को अरेस्ट करने के लिए एसएसपी से मंजूरी लेने को कोर्ट ने जरुरी बताया था. -संशोधित बिल में कहा है कि गिरफ्तार करने या नहीं करने का अधिकार जांच अधिकारी से नहीं छीन सकते। यह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत मिला है, जिसमें प्राथमिक जांच का प्रावधान नहीं है. -कोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत का अधिकार दिया था लेकिन नए विधेयक में आरोपी अग्रिम जमानत नहीं ले सकते. जल कहर: भारी बारिश और सैलाब की दिल दहला देने वाली 25 तस्वीरें, देखें वीडियो Source: IOCL





















