Exclusive: पाकिस्तान ने बहुत पहले रच ली थी भारत के खिलाफ साजिश
पाकिस्तान का ऐसा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में विस्थापित युवा, चरमपंथी ताकतों के उकसावे की चपेट में आ सकते हैं और साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकते हैं.
नई दिल्ली: भारत में आज छाए मातम के हालात की साजिश पाकिस्तान ने बहुत पहले से ही रच ली थी. शहीदों के जनाज़े बड़ी तादाद में उठें इसकी तैयारी बाक़ायदा मानों सोचे समझे तरीक़े से पाकिस्तान के हुक्मरानों ने की. अक्टूबर 2016 में पाकिस्तान की सीनेट की एक रिपोर्ट में प्रकाशित कुछ बिंदुओं से ये एकदम स्पष्ट हो जाता है कि कैसे मोदी सरकार को विकास के रास्ते से भटकाकर, पाकिस्तान लगातार विश्व का ध्यान कश्मीर पर बनाए रखना चाहता है.
ऐसा करने की पीछे उसने इस रिपोर्ट में अपना इरादा लिखकर ज़ाहिर किया. पाकिस्तान के उठाए इन क़दमों के पीछे उसका इरादा है कि ना केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में कश्मीर की स्थिति बिगड़ी हुई दिखाई दे.
सबसे घातक बात जो रिपोर्ट में लिखी गई है उसके अनुसार, पाकिस्तान का ऐसा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में विस्थापित युवा, चरमपंथी ताकतों के उकसावे की चपेट में आ सकते हैं और साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकते हैं. यहां सीनेट की उस रिपोर्ट में प्रकाशित कुछ बिंदुओं को पढ़कर ही तस्वीर और पाकिस्तान का इरादा साफ़ हो जाता है.
रिपोर्ट में दूसरे बिंदु के मुताबिक़, ''एक मीडिया कोऑर्डिनेशन कमेटी (MCC) का गठन किया गया है, जिसमें चयनित पत्रकारों और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि, सूचना, संसद और इंटेलिजेंस के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो भारत के खिलाफ फैक्ट शीट और एक काउंटर-प्रचार अभियान तैयार करें और लगातार हाइलाइटिंग के लिए मीडिया रणनीति तैयार करें और कश्मीरी स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा दें.''
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इसी तरह रिपोर्ट का आठवां प्वाइंट प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के ख़िलाफ़ और आग उगलता नज़र आता है. इस बिंदु के मुताबिक़, ''अलग-थलग पड़े मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों और दलितों के साथ-साथ बढ़ते माओवादी विद्रोह में भी भारत सरकार की गलती को उजागर किया जाना चाहिए.
इस संदर्भ में, दो आधिकारिक थिंक टैंकों की सेवाएं जिनका प्रमुख कार्य भारत का अध्ययन करना है, इस्लामाबाद नीति अनुसंधान संस्थान (IPRI) और क्षेत्रीय अध्ययन संस्थान (IRS), पाकिस्तान की संसद की संबंधित समितियों से जुड़ सकते हैं. मोदी और हिंदुत्व की उनकी आरएसएस की विचारधारा को निशाना बनाया जाना चाहिए.''
सीनेट की इस रिपोर्ट में बिल्कुल साफ़ तौर पर लिखा गया है कि पाकिस्तान का कश्मीर को लेकर किन बातों पर मुख्य ज़ोर रहना चाहिए:-
पहली: भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र चार्टर अध्याय 1 के अनुच्छेद 1 और 2 का उल्लंघन जोकि आत्मनिर्णय के अधिकारों की गारंटी देता है. दूसरी: भारत द्वारा कश्मीर में मानवाधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय घोषणा का उल्लंघन, जिसमें जनसंख्या और सैनिकों का अनुपात सबसे अधिक 1: 5 है. तीसरी: जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन जहां कैदियों और घायलों को कुछ मौलिक अधिकार हैं. चौथी: पाकिस्तान की पूर्वी सीमा के साथ भारत के सीमा उल्लंघन पाकिस्तान को आतंक पर युद्ध लड़ने के लिए नियोजित सैनिकों को खींचने के लिए मजबूर करेंगे.
ऐसा लगता है कि रिपोर्ट पर पूरा अमल हुआ है और ना केवल इसमें पाकिस्तान की संसद और सीनेट की रज़ामंदी और ताक़त लगती है बल्कि रिपोर्ट के ही मुताबिक़ कई अन्य प्रकार के तबक़ों की मदद लिए जाने की सिफ़ारिश की गई है.
रिपोर्ट का छठा बिंदु इसी ओर इशारा करता है कि कैसे, ''सरकार को अंतरराष्ट्रीय लॉबीस्ट और रणनीतिक संचार फर्मों को नियुक्त करना चाहिए और वैश्विक दृष्टिकोण को बदलने के लिए विदेशों में रह रहे पाकिस्तानी समुदाय को फिर से सक्रिय करना चाहिए.''
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