G20 Summit: अफगानिस्तान संकट पर जी-20 की महत्वपूर्ण बैठक आज, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे शिकरत
G20 Summit: अमेरिका, फ्रांस, चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान समेत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश इटली की अगुवाई में हो रही अहम बैठक के लिए जमा होंगे.
G20 Summit: अफगानिस्तान पर तालिबानी नियंत्रण लगभग दो महीने पूरे करने जा रहा है. अमेरिकी सेनाओं की वापसी और बड़े पैमाने पर मची अफरा-तफरी के बीच तालिबानी निजाम ने काबुल के सत्ता की चाबी हाथ में तो ले ली. लेकिन अफगानिस्तान के तबियत सुधारने का तालिबान के पास न कोई नुस्खा है और न दवाई. ऐसे में अफगानिस्तान को गहराते मानवीय संकट से बचाने के उपायों पर मंथन के लिए 12 अक्टूबर को भारत समेत जी-20 समूह देशों के नेता विशेष बैठक के लिए जुट रहे हैं.
अमेरिका, फ्रांस, चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान समेत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश इटली की अगुवाई में हो रही अहम बैठक के लिए जमा होंगे. इस महीने के आखिर में रोम में होने वाली जी-20 शिखर बैठक से पहले दुनिया की 80 फीसद अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले मुल्क वर्चुअल बैठक के मंच पर मिलेंगे. खास तौर पर अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा के लिए बुलाई गई इस बैठक को पीएम मोदी भी संबोधित करेंगे.
जाहिर है जी-20 के इस वैश्विक मंच पर जहां भारत की कोशिश जहां अफगान लोगों के लिए सहानुभूति और मदद के हक में होगी. वहीं जोर इस बात पर भी होगा कि तालिबान को अल्पसंख्यकों और महिलाओं की हिफाजत समेत मानवाधिकारों पर जवाबदेह बनाया जाए. प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को दिए 24 सितंबर के अपने संबोधन से लेकर 17 सितंबर को दिए अपने अपने भाषण में सुरक्षा परिषद में पारित प्रस्ताव 2593 में तालिबान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई से लेकर समावेशी सरकार बनाने जैसे मुद्दों पर ठोस कदम उठाने के लिए कहता है.
ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जी-20 देशों की यह आपात और महत्वपूर्ण बैठक जहां अफगान लोगों के लिए गहरे मानवीय संकट में मदद के उपाय जुटाने का प्रयास करेगी. वहीं तालिबानी निजाम पर अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक बर्ताव करने का दबाव भी बनाएगी. सूत्रों का कहना है कि भारत अफगान लोगों के साथ खड़ा रहा है. ऐसे में सत्ता परिवर्तन और तालिबान के आने से उपजे अफगानिस्तान के मौजूदा हालात में भारत अफगान लोगों तक मदद मुहैया कराने का रास्ता लगातार तलाशता रहेगा. हालांकि यह भी स्पष्ट है कि मानवीय सहायता उपलब्ध कराने का मतलब राजनीतिक मान्यता या स्वीकार्यता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
महत्वपूर्ण है कि भारत ने बीते दो दश्कों में करोड़ों डॉलर की लागत वाली सहायता परियोजनाएं अफगानिस्तान में चलाई हैं. इनके तहत जहां कई अहम सड़क, बांध व बिजली परियोजनाएं बनाई गईं. वहीं सैटेलाइट से लेकर शिक्षा सुविधाओं तक अनेक मदद के मिशन चलाए. हालांकि बदले हालात में भारत के लिए बड़ा संकट सुरक्षा का है. स्वाभाविक तौर पर भारत अफगानिस्तान के मौजूदा हालात पर मुतमईन हो जाने तक मदद के उपायों के लिए अपने लोगों की जान जोखिम में डालने को तैयार नहीं है.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में चरमराई बैंकिंग सेवाओं से लेकर जरूरी सामान की किल्लत का संकट गहरा रहा है. तालिबान जहां अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और विभिन्न देशों से आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं. अमेरिका समेत कई देश फिलहाल सीधे तौर पर तालिबान राज को आर्थिक मदद देने के बजाए, गैर-सरकारी रास्तों से सहायता उपलब्ध कराने पर जोर दे रहे हैं. जापान, इटली, ब्रिटेन समेत कई देशों ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मदद के मिशन दोबारा शुरु करने पर रजामंदी जताई है.
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