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राजनेताओं के निशाने पर अक्सर रहे हैं उत्तर भारतीय, पलायन क्यों है बड़ी समस्या

महाराष्ट्र से गुजरात तक और दिल्ली से मध्य प्रदेश तक उत्तर भारतीयों पर आरोप लगता रहता है कि वह बिहार से आकर उस राज्य विशेष के लोगों के संसाधनों और नौकरियों पर कब्जा कर लेते हैं.

नई दिल्ली: देशभर में उत्तर भारत के लोगों की चर्चा हमेशा से होती रही है. कभी उनके परिश्रम और ज्ञान को लेकर वह चर्चा का विषय बने रहते हैं तो कभी कुछ विवादों की वजह से भी. महाराष्ट्र से गुजरात तक और दिल्ली से मध्य प्रदेश तक उत्तर भारतीयों पर एक आरोप लगता रहता है कि वह बिहार से आकर उस राज्य विशेष के लोगों के संसाधनों और नौकरियों पर कब्जा कर लेते हैं. सोमवार को मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने कमलनाथ ने पद संभालते ही उत्तर भारतियों को लेकर एक विवादित बयान दिया. उन्होंने सूबे में स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने के लिए बाहरी लोगों को जिम्मेदार ठहराया है. इस दौरान उन्होंने खासतौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश का जिक्र किया.

कमलनाथ ने क्या कहा

कमलनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के लोग यहां आते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को जॉब नहीं मिल पाती है. उन्होंने कहा, ''हमारी छूट देने वाली नीति उन उद्योगों के लिए होगी, जहां 70 फीसदी रोजगार मध्य प्रदेश के युवाओं को दिया जाएगा.'' कमलनाथ ने कहा, ''उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से लोग मध्य प्रदेश आते हैं. लेकिन स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिल पाती है. मैंने इसी से संबंधित फाइल को मंज़ूरी दे दी है.'' कमलनाथ के इस बयान के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है.

पहले भी उत्तर भारतीयों पर दिया गया गया है विवादित बयान

अल्पेश ठाकोर

गुजरात में इसी साल अक्टूबर में एक 14 साल की बच्ची से रेप के मामले के बाद राज्य में अशांति फैल गई थी. इसके बाद उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया गया था. इस दौरान अल्पेश ठाकोर ने कहा था कि बाहरी लोगों के आ जाने की वजह से राज्य के लोगों को नौकरी नहीं मिलती. बता दें कि इस रेप की घटना के बाद भारी संख्या में उत्तर भारतीयों ने गुजरात से पलायन किया था.

गोवा सरकार के मंत्री विजय सरदेसाई का विवादित बयान

गोवा सरकार के शहरी और नियोजन मंत्री विजय सरदेसाई ने उत्तर भारतीयों पर विवादित बयान देते हुए उन्हें 'धरती पर गंदगी' बता दिया था. उन्होंने नार्थ इंडियन टूरिस्टों को बाढ़ जैसे बताते हुए कहा,"हम गोवा को दूसरा गुरुग्राम नहीं बनने देना चाहते. गोवा में आज जो भी समस्या है उसके लिए उत्तर भारतीय जिम्मेदार हैं. इन राज्यों से आने वाले लोग वास्तव में गोवा को हरियाणा बनाना चाहते हैं."

महाराष्ट्र में शिवसेना और मनसे दोनों के निशाने पर उत्तर भारतीयय

महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हमला कोई नई बात नहीं है. यहां आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं. कभी कोई मनसे कार्यकर्ता किसी यूपी-बिहार के सब्जी वाले को अपना निशाना बनाते हैं तो कभी किसी फल वाले को. शिवसेना तो खुलेआम उन्हें राज्य से भगाने की धमकी देती है.

शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की बात करें तो वह हमेशा मराठी लोगों का पक्ष लेकर अपना दबदबा कायम रखते रहे. बाल ठाकरे फ्री प्रेस जर्नल अखबार में पेशेवर कार्टूनिस्ट थे. उन्होंने नौकरी छोड़कर मराठी बोलने वाले स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया. पहले उन्होंने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ मुंबई में आंदोलन किया. मगर वक्त के साथ उनका विरोध उत्तर भारतीयों के खिलाफ हो गया. एक वक्त ऐसा भी था जब उत्तर भारतीयों के लिए मुबंई सबसे ज्यादा दहशत वाली जगह बन गई थी.

उन्हीं के कदमों पर चलकर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने भी 'मराठी मानुष' के एजेंडे के तहत उत्तर भीरतीयों को जमकर निशाना बनाया.

शीला दीक्षित का विवादित बयान

दिल्ली की मुख्यमंत्री रहते हुए शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली में गंदगी बिहार के लोगों की वजह से हुई. हालांकि उनके बयान के बाद काफी विवाद होने पर उन्होंने सार्वजनित तौर पर माफी मांग ली थी.

क्यों बिहार के लोग करते हैं पलायान

बिहार के लोग बड़ी संख्या में हर साल रोजगार की तलाश में अपना घरबार छोड़कर कभी मुंबई तो कभी दिल्ली की ओर जाते हैं. जब उन्हें अपने राज्य से बाहर हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है तो उन्हें मजबूर होकर वापस बिहार आना पड़ता है. ऐसे सुरक्षा को लेकर उनके मन में सुकून तो होती है लेकिन आर्थिक संकट को लकर चिंता भी होती है.

दरअसल इसमें बिहार सरकार की भी कमी मानी जात सकती है कि वह आबादी के हिसाब से रोजगार पैदा करने में असफल रही है. सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों तक सही तरीके से पहुंच नहीं पाता. पूंजीवादी शक्ति राज्य के गरीबों को आगे बढ़ने नहीं देती.

इतिहास के प्रोफेसर सज्जाद 1973 में सच्चिदानंद सिन्हा की आई किताब 'द इंटरनल कॉलोनी (आंतरिक उपनिवेश)' का जिक्र करते हुए कहते हैं, ''भारत की पूंजीवादी शक्तियों ने बिहार को आंतरिक उपनिवेश बनाकर रखा. उन्होंने बिहार को बैकवर्ड रखो इस सिद्धांत पर काम किया ताकि यहां से उन्हें सस्ता मजदूर मिलता रहे. हम राजनीतिक दलों को दोष दे सकते हैं. लेकिन भारत की पूंजीवादी शक्तियों ने शुरुआती दौर से बिहार का शोषण जारी रखा है. बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश को लेबर सप्लाई का सोर्स समझा गया.'' 'मुस्लिम पॉलिटिक्स इन बिहार' किताब के लेखक सज्जाद बिहार से पलायन होने के मुद्दे पर कहते हैं कि आज भी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है. सरकारों को जिस तेजी से काम करना चाहिए उन्होंने नहीं किया. वे कहते हैं, ''पलायन लंबी समस्या रही है. इसे तुरंत नहीं सुलझाया जा सकता है. इस प्रकार की घटना (गुजरात में गैर-गुजरातियों पर हमले) से भारत सबक ले. क्षेत्रिय असमानता आज काफी है. नेहरूवियन विजन ऑफ डेवलपमेंट में बैलेंस डिविजनल डेवलपमेंट एक बड़ा कंसर्न था. वो ज्यादा दिन तक तो नहीं रहे. लेकिन उसके बाद जो लोग सत्ता में आए उन्होंने इस क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं किया.''
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