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परमवीर: करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को धूल चटा ऐसे 'टाइगर हिल' पर भारतीय जवानों ने फहराया था तिरंगा

इस युद्ध की वजह थी पाकिस्तान के जवानों और उसके समर्थित आतंकियों की एलओसी यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुसकर भारत की कई महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना कब्जा करना.

दुनिया की मुश्किल भरी लड़ाईयों में से एक था करगिल वॉर, जिसमें भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को ऐसी धूल चटाई को उसके बाद कभी दोबारा मुड़कर पीछे देखने की उसने हिमाकत नहीं की. इस युद्ध की वजह थी पाकिस्तान के जवानों और उसके समर्थित आतंकियों की एलओसी यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुसकर भारत की कई महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना कब्जा करना. लेह लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क पर अपना नियंत्रण कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत को कमजर कर राष्ट्रीय अस्मिता को खतरा पैदा करना.

करगिल वॉर में भारत ने चटाई पाक को धूल

दो महीने तक चली इस भीषण लड़ाई के दौरान कई ऐसे भारतीय रणबांकुरों ने इस देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी, जिसमें से कईयों ने अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे. 8 मई 1999 से शुरू हुई यह लड़ाई 26 जुलाई 1999 चली थी और भारतीय सेना की विजय के बाद इसे करगिल ‘विजय दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता है.

दुर्गम स्थानों पर पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों से कब्जा छुड़ाने में भारतीय सैनिकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. लेकिन, भारतीय जवानों की वीरता के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए और जान बचाते हुए भाग गए. इन्हीं वीर भारतीयों योद्धाओं से एक हैं- 18 ग्रेनेडियर्स के लेफ्टिनेंट बलवान सिंह.

कैसे बलवान सिंह के नेतृत्व में टाइगर हिल से पाक को भगाया?

करगिल की निर्णायक लड़ाई में लेफ्टिनेंट बलवान सिंह जो अब कर्नल हो चुके हैं, वे टाइगर हिल के 'टाइगर' थे. बलवान सिंह को टाइगर हिल पर दोबारा अपना नियंत्रण करने की जिम्मेदारी दी गई थी. 25 साल की उम्र में बलवान सिंह ने पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने के लिए 12 घंटे की यात्रा पर दुर्गम रास्तों के जरिए यात्रा की और घातक पलटून सैनिकों का नेतृत्व किया. 36 घंटे चले इस आपरेशन के लिए 18 ग्रेनेडियर के जवानों ने अपने खाना खाने के सामानों को कम करके उसकी जगह भी उनमें असलहा और बारूद ही भर लिया था.

हमले ने दुश्मनों को आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि भारत से इस तरह के कठिन रास्ते पर चलने की उम्मीद उसने नहीं की थी. 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए 18 ग्रेनेडियर ने 36 घंट तक ऑपरेशन चलाया था और करीब 44 जवानों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. इतने करीबी मुकाबले में लेफ्टिनेंट बलवान सिंह ने गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद चार दुश्मन के जवानों को मार गिराया.


परमवीर: करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को धूल चटा ऐसे 'टाइगर हिल' पर भारतीय जवानों ने फहराया था तिरंगा

इसके बाद बाकी पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय जवानों के इस गुस्सों का मुकाबला करने की बजाय वहां से भागना ही बेहतर समझा. बलवान सिंह ने टाइगर हिल पर भारत का तिरंगा लहराया और बाद में उन्हें उनकी इस अदम्य साहस और बहादुरी के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया. टाइगर हिल के लिए रवाना होने से पहले, लेफ्टिनेंट सिंह ने अपने सैनिकों के साथ एक प्रतिज्ञा ली: "टाइगर हिल पे तिरंगा फहराके आयेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए."

बलवान सिंह ने बताया- क्या मुश्किलें आयीं

मीडिया से बात करते हुए बलवान सिंह ने उस दिन को याद किया और कहा कि 3 जुलाई की रात थी और दुश्मन की गोलियां ऊपर से चल रही थी. काफी बर्फ भी पड़ रही थी. उन्होंने कहा कि इस दौरान छह भारतीय जवान शहीद हुए. योगेन्द्र यादव गंभीर रूप से घायल हुए. बलवान सिंह ने कहा कि मुझे भी गोली लगी, लेकिन हमने हार नहीं मानी और पाकिस्तानी फौज को टाइगर हिल से भगाया और वहां पर झंडा फहराया.

ये भी पढ़ें: परमवीर: 22 साल पहले भारतीय योद्धाओं के सामने पाकिस्तान ने ऐसे टेके थे घुटने, जानें वीरता की कहानी

राजेश कुमार पत्रकारिता जगत में पिछले करीब 14 सालों से ज्यादा वक्त से अपना योगदान दे रहे हैं. राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों से लेकर अपराध जगत तक, हर मुद्दे पर वह स्टोरी लिखते आए हैं. इसके साथ ही, किसी खबरों पर किस तरह अलग-अलग आइडियाज के साथ स्टोरी की जाए, इसके लिए वह अपने सहयोगियों का लगातार मार्गदर्शन करते रहे हैं. इनकी अंतर्राष्ट्रीय जगत की खबरों पर खास नज़र रहती है, जबकि भारत की राजनीति में ये गहरी रुचि रखते हैं. इन्हें क्रिकेट खेलना काफी पसंद और खाली वक्त में पसंद की फिल्में भी खूब देखते हैं. पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखने से पहले उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मास्टर ऑफ ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म किया है. राजनीति, चुनाव, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर राजेश कुमार लगातार लिखते आ रहे हैं.
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