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SCO Summit: समरकंद में मिलेंगे पीएम मोदी-शी जिनपिंग, मेज पर होगा सरहद का मुद्दा

समरकंद में होने वाली मुलाकात में दोनों ही नेताओं के बीच नियंत्रण रेखा पर सीमा विवाद बातचीत का अहम बिंदु होगा. दोनों नेताओं के बीच 2019 में हुई अनौपचारिक बैठक के बाद ये सीधी मुलाकात होगी.

Narendra Modi-Xi Jinping Meeting: उज्बेकिस्तान की राजधानी में 16 सितंबर को होने वाली SCO शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग रूबरू होंगे. करीब 34 महीने बाद दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले दो मुल्कों के यह नेता आमने-सामने होंगे.

इस मुलाकात से पहले पूर्वी लद्दाख में करीब 28 महीनों तक चला सीमा तनाव सुलझाने की कोशिश में चीन ने कुछ इलाकों से फौजें पीछे लेने पर रजामंदी भले ही जताई हो. लेकिन सीमा पर तनाव का यह मुद्दा मोदी-जिनपिंग मुलाकात की मेज पर जरूर मौजूद होगा.

पूर्वी लद्दाख के इलाके में चीन की आक्रामक मोर्चाबंदी और गलवान जैसी घटना के बाद दोनों देशों के सैनिक कई इलाकों पर आमने-सामने की स्थिति में करीब 28 महीनों तक रहे. इतना ही नहीं अभी भी जहां देपसांग के इलाके में चीन की मोर्चाबंदी नहीं टूटी है. वहीं उसकी तरफ से लद्दाख के इलाके में अपने सैनिक जमावड़े को अप्रैल 2020 की स्थिति तक कम नहीं किया है. जाहिर है ऐसे में भारत ने भी रक्षात्मक मोर्चाबंदी और सैनिक मौजूदगी को मुकम्मल रखा है.

'नियंत्रण रेखा पर शांति ही बेहतर संबंधों का आधार है'
सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर 2019 में मामल्लापुरम की अनौपचारिक शिखर बैठक के बाद समरकंद में संभावित मोदी-जिनपिंग मुलाकात में स्वाभाविक तौर पर सीमा तनाव का विषय बातचीत का एक अहम बिंदु होगा. इसे भारत उठाना भी चाहेगा. भारत की तरफ से कई बार यह दोहराया गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता ही भारत-चीन बेहतर संबंधों का आधार है.

ऐसे में इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि समरकंद में रूबरू होने पर दोनों नेताओं के बीच पिछली मुलाकातों की गर्मजोशी नदारद नजर आए. इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं की बॉ़डी लैंग्वेज काफी हद तक माहौल और नतीजों की गवाही देने को काफ़ी होगी.

गलवान में कब हुआ था दोनों देशों के बीच टकराव?
दोनों नेता पिछली बार ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया में 13 नवंबर 2019 को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे. भारत के मामल्लापुरम में हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता के महज डेढ़ महीने के भीतर दोनों नेताओं की यह दूसरी मुलाकात थी. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मीयता के साथ इस बात का ज़िक्र किया था कि 2014 से 2019 के दौरान, महज पांच सालों के भीतर, दोनों के बीच इतना विश्वास और मित्रता बनना अपने आप में बहुत बड़ी बात है.

हालांकि, चीन पर प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे को महज़ कुछ महीनों के भीतर ही घात मिला. मई 2020 में जहां भारत कोरोना संकट की पहली लहर से जूझ रहा था. वहीं चीन की सेनाएँ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब युद्धाभ्यास के बाद अपनी मोर्चाबंदी मजबूत करने में जुटी थी.

ज़ाहिर है चीन के इस पैंतरे का अंजाम टकराव में तब्दील होना ही था और इसका नतीजा बलवान के तौर पर नजर आया. जून 15 को दोनों सैनिकों के टकराव के बाद भारत के 20 सैनिक शहीद हुए. वहीं चीन को इससे कहीं अधिक का नुकसान उठाना पड़ा.

मामले को सुलझाने के लिए दोनों देशों के विदेश मंत्रियों का मॉस्को में मुलाक़ात हुई, रक्षा मंत्री मिले, वहीं 16 दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ताएं भी हुईं. करीब 28 महीने बाद चीन गोगरा और हॉट स्प्रिंग के पीपी15 से अपने सैनिकों को पीछे लेने पर राज़ी तो हुआ है. लेकिन यह उसका एक फ़ौरी पैंतरा हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.

समरकंद में क्या बात करेंगे दोनों देशों के नेता?
ज़ाहिर है ऐसे में होने वाली मोदी-जिनपिंग मुलाकात में भारत की अपेक्षा ठोस और भरोसेमंद कदमों की होगी. जिनके बिना भारत के लिए हाथ मिलाकर आगे बढ़ना मुमकिन नहीं होगा. इतना ही नहीं भारत की कोशिश होगी कि चीन अगर संबंधों की बेहतरी के लिए वाक़ई गंभीर है तो सीमा वार्ता पर भी प्रगति दिखाए जिसमें अब तक 20 से अधिक दौर हो चुके हैं. लेकिन मामला नक्शों की सहमति तक भी नहीं पहुंच पा रहा है.

चीन के लिए भारत क्यों है जरूरी?
हालांकि भारत के साथ संवाद और संबंधों को लेकर शी जिनपिंग की मजबूरी को भी समझना जरूरी है. खासतौर पर ऐसे में जबकि शी जिनपिंग को अगले महीने होने वाली पार्टी कांग्रेस में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए दावेदारी पर अनुमोदन की मुहर हासिल करना है. वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि को लेकर उठ रहे सवालों पर भी पार्टी के इस सबसे बड़े अधिवेशन में जवाब देने होंगे. साथ ही आर्थिक मंदी की चुनौती के बीच भारत जैसे बड़े बाजार को खोने का खतरा टालने की भी जुगत जिनपिंग करना चाहेंगे.

आंकड़े बताते हैं कि भारत के साथ सीमा तनाव के बीच चीन को न केवल द्विपक्षीय व्यापार में घाटे का सामना करना पड़ा है. बल्कि चीनी कंपनियों के लिए भी भारतीय बाजार में मुश्किलें बढ़ी हैं. इतना ही नहीं सरहद पर भारत के साथ चीन की दादागिरी ने कई पड़ोसी और लोकतांत्रिक देशों में भी उसके लिए परेशानी बढ़ाई है.

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