20 मिनट की वो मुलाकात, जिसने अंग्रेजों को भारत से भगाने की रख दी नींव, जानें पहली बार कहां मिले थे गांधी-नेहरू?
देश के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी और पं. जवाहर लाल नेहरू का महत्वपूर्ण योगदान है. साल 1916 में दोनों महापुरुषों की पहली मुलाकात कांग्रेस अधिवेशन के दौरान हुई थी.

महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहली मुलाकात भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक बेहद खास पल था. यह मुलाकात छोटी जरूर थी, लेकिन यहीं से उस रिश्ते की शुरुआत हुई, जिसने आगे चलकर आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी और आजाद भारत की नींव रखी.
यह ऐतिहासिक मुलाकात 26 दिसंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुई थी. उस समय वहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन (लखनऊ कांग्रेस) चल रहा था. देश के कोने-कोने से बड़े नेता लखनऊ पहुंचे थे. गांधी भी उस समय दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद भारतीय राजनीति में धीरे-धीरे सक्रिय हो रहे थे.
चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई पहली मुलाकात
नेहरू और गांधी की यह पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई थी. यह कोई औपचारिक या लंबी मुलाकात नहीं थी, बल्कि दोनों के बीच लगभग 20 मिनट की एक सामान्य बातचीत थी. उस समय जवाहरलाल नेहरू के विचार उनके पिता मोतीलाल नेहरू जैसे उदारवादी नेताओं से प्रभावित थे, जबकि गांधी सत्याग्रह और जनआंदोलन के रास्ते पर चलने की बात कर रहे थे.
हालांकि इस पहली मुलाकात में कोई बड़ा निर्णय नहीं हुआ, लेकिन इससे नेहरू और गांधी एक-दूसरे के संपर्क में आ गए. शुरुआत में नेहरू गांधी के विचारों से पूरी तरह सहमत नहीं थे, लेकिन समय के साथ उन्होंने गांधीजी की सोच को समझा और उन्हें अपना मार्गदर्शक मान लिया.
स्टेशन के पास लगे शिलापट लिखी जानकारी
दोनों महान व्यक्तित्व की मुलाकात को यादगार बनाने के लिए रेलवे ने महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के पहली बार मिलने के प्रतीक के लिए स्टेशन के सामने ही उनकी शिलापट को संजोया है. यहां लगे शिलापट के अनुसार मार्च-अप्रैल 1936 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन फिर लखनऊ में आयोजित किया गया था. इस अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए भी महात्मा गांधी यहां दूसरी बार आए थे.
आगे चलकर, नेहरू गांधीजी के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक बन गए. गांधी ने जनता को जगाने का काम किया, तो नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण का सपना देखा. लखनऊ की वह छोटी सी मुलाकात, असल में भारत के भविष्य की बड़ी शुरुआत थी.
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